"वसुधैव कुटुंबकम्"
"वसुधैव कुटुंबकम्"
दिपावली के त्यौहार पर लक्ष्मी पूजन के दूसरे दिन अचानक ही मेरी बहन का फोन आया कि वह शाम को मिलने आ रहें हैं। इस त्यौहार को मनाने के लिए सफाई का काम करके थकावट हो जाती है, तो मैं मन ही मन सोच रही थी कि क्या स्पेशल बनाया जाए? जबकि दूसरे दिन मेरे बच्चों को भी पुणे जाना था।
इतने में मेरी बेटी और बेटे ने योजना बनाई कि पाव भाजी, चटनी व गाजर का हलवा बनाते हैं मम्मी। बस फिर क्या था, मैं, मेरे पति और बच्चों ने मिलकर एक घंटे तक सब बना लिया और बहन, जिजाजी व बच्चों के साथ सबने मिलकर बड़े चाव से खाया और यही वो पल था जब मैं बहुत खुश थी क्योंकि, आपसी सहयोग से हर कार्य सम्भव व सफल होते हैं। मुझे मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि मिली और यकीन हो गया कि बच्चे जीवन में हर कार्य को आसानी से कर सकते हैं।
इसी तरह से देश में भी 'वसुधैव कुटुंबकम्' के महत्व को सार्थक करते हुए सभी लोग चाहे किसी भी धर्म या जाति के हों कोई फर्क नहीं पड़ता, बस सब अपने मनोबल से एकत्रित होकर टीम भावना से हर कार्य को करने का प्रयास करेंगे तो सफलता अवश्य ही कदम चूमेगी।