व्रत
व्रत
"बेटा जल्दी से नाश्ता कर लो तुम्हारे पापा भी इंतजार कर रहे हैं......."
"सॉरी मम्मी, आज मुझे देर हो गई है, मैं ऑफिस में कुछ खा लूंगा।" यह कहकर विशाल ऑफिस जाने के लिए बाहर निकल गया।
"देख रहे हैं आप, कुछ समझ में आया ?" विशाल की मम्मी ने अपने पति से कहा।
"देर हो गई है, इसमें समझने वाली क्या बात है? ऑफिस में खा लेगा, कोई बच्चा तो है नहीं वो।" विशाल के पापा बोले।
"बहुत बड़ा हो गया यही तो समझा रही हूँ आपको......."
"पिछले दस साल से देख रही हूँ शादी के बाद से ही करवा चौथ के दिन ऐसे ही देर हो जाती है, और विशाल ऑफिस में खा लेगा बोल कर चला जाता है, जैसे कि हम कुछ समझते नहीं है। एक आप हैं इस दिन तो दो गुना, तीन गुना खाते हैं।"
"अरे ये आज-कल के बच्चे क्या समझेंगे हमारे प्रेम को, मैं तो इसलिए दो गुना, तीन गुना खाता हूँ ताकि तुम को भूख ना लगे, मेरी अर्धांगिनी हो ना, मेरे खाने से तुम्हारा पेट भर जाएगा।"
"हा हा यह भी खूब कही आपने......."
"ऐ मेरी जोहरा जबी तुझे मालूम नहीं........" विशाल के पापा गाना गाने लगे।
"अरे आप भी न.....बहू सुन लेगी, आपको कोई लिहाज नहीं है; बिल्कुल सठिया गए हैं...."
"मम्मी जी मैंने कुछ नहीं सुना, गाने दीजिए ना पापा जी को......" निशा अंदर रसोई से बोली।
सब जोर से हँस पड़े मम्मी शर्मा गईं और सोच में पड़ कि उसका धीर-गंभीर बेटा विशाल, प्रेम के वशीभूत इसलिए व्रत करेगा क्योंकि उसकी अर्धांगनी निशा आज उसके लिए करवा चौथ का व्रत रख रही है।