वक़्त की बयार
वक़्त की बयार


इख़्तियार...इज़ाज़त....इल्ज़ाम....
"ये जो लफ़्ज़ है न, इजाज़त वाला।हाँ,हाँ,वही।"
"क्या हुआ है इसे?"
"अरे इससे ही तो हमे बाहर जाने का इख़्तियार मिल गया है।"
"वैसे तुम देखो,ये लफ़्ज़ कितनी सारी चीजों को कंट्रोल करता है,नही?"
"हमेशा निगेटिव!"
"अरे,नहीं। ये तुम्हारी हिफ़ाज़त भी तो करता है।"
"वह एक लफ़्ज़ भर नही है। इससे ये साबित हो जाता है की हम औरतें तुम मर्दों की मिल्कियत है।"
"अरे बाबा, पता नहीं तुम फेमिनिस्ट टाइप की औरतों को क्या हो जाता है? कुछ भी सोचती रहती हो।"
"क्या कहा, ऐसा नही है?"
"नही, बिल्कुल भी नही।आदमी औरतों की केयर करते है इसलिए वे चाहते है की उन्हें पता हो की वे कहाँ जा रही है? और तुम्हें पता तो है आजकल का?"
"क्यों, क्या हो गया आज कल में?"
"क्यों तुम ने अखबार पढ़ना और टीवी देखना क्या बंद कर दिया ?मेरा मतलब औरतों के साथ अत्याचार के केसेस बढ़ते जा रहे है।"
"अब बताओ,लड़कियाँ देखी नहीं की राल टपकती है तुम आदमियों की। ना लिहाज और ना ही शर्म.... "
थोड़ा रुक के वह फिर बोलने लगी,"गुड़ियों से खेलती लड़कियाँ तक को तुम आदम ज़ात छोड़ते नहीं हो और ऊपर से शोर मचाते हो की हमारी संस्कृति खतरे में है?वाह रे संस्कृति के रक्षक !!!"
वह उठ खड़ा हुआ और सर्द लहज़े में बोलने लगा,"चलो, बंद करो ये सब। अपना काम करो..... आजकल ऐसा नहीं लग रहा की तुम कुछ ज्यादा ही बोलने लगी हो? जब से तुम्हारा कॉलेज जाना हुआ तब से देख रहा हूँ मैं ये सब।"
उसने भी तुनककर कहा,"आप मुझ पर इल्ज़ाम लगा रहे है।"
"ज़बान संभाल कर बोलो तुम। बहुत हो गया यह सब। इसके आगे मैं तुम्हें बोलने की इजाज़त नहीं दूँगा।"
तभी माँ कमरे में आयी,और बेटी से कहने लगी,"हो गया तुम्हारा सब? चलो कॉलेज जाने की तैयारी करो।तुम फिर से लेट हो रही हो शायद।"
फिर बेटे की तरफ़ मुड़ते हुए कहा,"चलो अगर तुम लोगों की बातें ख़त्म हुई होगी तो इसे कॉलेज छोड़ दो। तुम तो जानते हो न बेटा ,आजकल माहौल ठीक नहीं है।चलो शाबास चलो जल्दी करो... "
दोनों के घर से निकलते ही माँ ने मन ही मन कहा, समय कितना तेजी से बदल रहा है लेकिन हम औरतों के मामले में शायद इसकी रफ़्तार कुछ ज्यादा ही धीमी है.....