वो तुम हो (पार्ट-1)
वो तुम हो (पार्ट-1)
सीन-1 (दिल्ली) सुबह के 8 बजे, (मिस्टर अमिताभ शर्मा का घर)
अंजलि बेटा उठो जल्दी से वरना लेट हो जाओगी। अंजलि की माँ मिसेस नैना शर्मा ने उसे रसोईघर से ही आवाज लगाते हुए कहा। लेकिन अंजलि तो घोड़े बेच कर सो रही थी। अंजलि को सुबह-सुबह बहुत गहरी नींद आती थी या यूँ कहें की कुम्भकरण नींद तो बिलकुल भी गलत नहीं होगा। पढ़ने में टॉपर, देखने में सुपर क्यूट और लड़ने में झाँसी की रानी, अपने माँ-पापा की लाडली इकलौती अंजलि, दोस्तों की जान, ऐसी ही है हमारी अंजलि। रोज सुबह देर से उठना, आंधी-तूफ़ान की तरह तैयार होना और फिर नाश्ते को बिना चबाये ही खाते हुए घर से निकल जाना। ऐसी ही शुरुआत होती थी अंजलि के दिन की। शाम को घंटों अपने कमरे में बंद हो जाना और रात को डिनर के बाद चाँद- तारों से बतियाना, अपनी डायरी में रोज कुछ ऐसा लिखना जिसे पढ़कर वो खुद ही मुस्कुरा दिया करती थी। ये सब पसंदीदा काम हैं हमारी अंजलि के। अंजलि दोस्ती और दोस्तों की बहुत क़द्र करती है लेकिन मोहब्बत से उसे मोहब्बत है या नफरत ये तय कर पाना बहुत मुश्किल है लेकिन ये आजकल की मोहब्बत से तो उसे बहुत सख्त नफरत है। उसका कहना है कि मोहब्बत इंसान को कमज़ोर बनाती है। सच्ची मोहब्बत इंसान की ताकत होती है लेकिन आजकल सच्ची मोहब्बत सिर्फ किताबों और डायरी में ही होती है, असल ज़िन्दगी में तो बस दिल तोड़े जाते हैं और जिसकी वजह से कभी-कभी इंसान खुद भी टूट जाता है कभी ना जुड़ने के लिए।
अंजलि के पिता का अपना बिज़नेस है और अंजलि की माँ नैना जी एक कुशल गृहणी हैं। अंजलि के जीने का ये बेपरवाह अंदाज़ उन दोनों की परेशानी की वजह थी लेकिन इकलौती बेटी होने का अंजलि पूरा फायदा उठाती थी। अपनी हर ज़िद को अपने हिसाब से ही मनवाना उसकी खूबी थी। अंजलि ने जब कॉलेज में एडमिशन लिया तो वो बहुत खुश थी लेकिन उसे कॉलेज में होने वाली रैगिंग से ऐतराज़ था। उसके पिता जानते थे कि अंजलि गुस्से में मार-पीट करने से भी पीछे नहीं हटेगी। उन्होंने अंजलि को खुद ही कॉलेज में छोड़ कर आने का निश्चय किया तो अंजलि ने उन्हें ये कहकर मना कर दिया कि आई विल हैन्डल।
अंजलि अकेले ही कॉलेज के लिए निकल जाती है। उसके माँ-पापा मन ही मन उसके लिए दुआ करते हैं कि वो किसी मुसीबत में ना फँसे लेकिन वो ये भी अच्छे से जानते थे कि अंजलि का दूसरा नाम ही मुसीबत है। जहाँ अंजलि होती है वहाँ मुसीबत बिना बुलाये ही चली जाती है।
सीन-2 (फरीदाबाद) सुबह 6 बजे (मिस्टर सुनील कुमार का घर)
रिया ने अपनी दादी को प्रसाद देते हुए कहा अब कैसी तबियत है दादी? ओहो मनहूस तू सुबह-सुबह फिर मेरे सामने आ गयी। कितनी बार कहा है मुझे सुबह-सुबह अपनी शक्ल मत दिखाया कर, पूरा दिन ख़राब हो जाता है। रिया की दादी ने बडबडाते हुए कहा। रिया की आँखों में हर रोज की तरह ही आँसू आ गए थे। वो अपने कमरे में पहुंची और अपने माँ-बाबा की तस्वीर के आगे बैठ रोने लगी थी। रोते- रोते उसने कहा आप दोनों क्यों मुझे अकेला छोड़ कर चले गए? यहाँ मुझसे कोई प्यार नहीं करता। सभी के लिए मैं एक मनहूस लड़की हूँ जिसके 8 वें जन्मदिन के दिन ही उसके माँ-बाबा भगवान के पास चले गए थे। रिया एक बार फिर बहुत तेज रो पड़ती है क्योंकि उसे याद आता है कि जन्मदिन के दिन वो कैसे बेसब्री से अपने माँ-बाबा के आने का इंतजार कर रही थी और पुलिस स्टेशन उनकी मौत की खबर आई थी। रिया के माँ-बाबा दोनों ही डॉक्टर थे और उस रात हॉस्पिटल से आते हुए उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया था और उस एक्सीडेंट में वो दोनों ही रिया को अनाथ कर के चले गए थे। तब से आज तक रिया ने अपना जन्मदिन नहीं मनाया था। घर में रिया के चाचा-चाची, चाचा की बेटी सुनीता और रिया की दादी यही सदस्य थे। लेकिन रिया को ये सभी न केवल मनहूस समझते थे बल्कि मनहूस कहते भी थी थे।
तभी रिया की सहेली रागिनी आई और उसने रिया को रोते देखा तो उसे समझते देर नहीं लगी कि रिया क्यों रो रही है? उसने झट से रिया को गले लगाते हुए कहा हे रिया मैं आज बहुत खुश हूँ आज से हम कॉलेज स्टूडेंट हो चुके हैं। चल आज से एक नहीं लाइफ की शुरुआत होगी। लेकिन तू अभी तक तैयार क्यों नहीं हुई है? चल अब जल्दी कर देर हो रही है। रिया ने कहा रागिनी क्या मैं आज घर पर ही रुक जाऊं? रागिनी ने गुस्से में घूरते हुए कहा इन पागलों के साथ? अरे पूरे दिन में तुझे जाने क्या-क्या सुनायेंगे और तू यहाँ अपने कमरे में बैठकर रोती रहेगी। तू चल बस मेरे साथ प्लीज उठना देर हो जाएगी। रागिनी ने रिया को उठाते हुए कहा। रिया जानती थी कि रागिनी नहीं मानेगी वो जाकर तैयार हुई। दोनों जैसे ही कॉलेज के लिए निकलने लगी तभी रिया की चाची ने कहा चल दी महारानी अब पूरे दिन आराम से घूम-फिर कर शाम को ही घर आएँगी। लेकिन अच्छा है पूरे दिन कम से कम ये मनहूसियत घर के बाहर ही रहेगी। रिया ने सुना तो उसकी आँखें भर आई थी लेकिन रागिनी का तो पारा चढ़ गया था। उसने रिया का हाथ पकड़ कर चलते हुए कहा यार रिया तू कैसे रहती है इन कंजड़ों के बीच में? रागिनी ने रिया की चाची को घूरते हुए कहा लेकिन तब तक रिया ने उसे शांत रहने का इशारा किया और दोनों कॉलेज के लिए निकल गयी थी।
दिल्ली के अरविंदो कॉलेज में दोनों फर्स्ट इयर की स्टूडेंट थी और एडमिशन के बाद आज पहला ही दिन था। रिया जहाँ कॉलेज में रैगिंग होगी ये सोच कर डरी हुई थी वहीं रागिनी को इस बात की बिलकुल भी परवाह नहीं थी। रागिनी तो बस ये सोच कर बहुत खुश थी कि उसे कॉलेज में स्मार्ट और हैण्डसम लड़के देखने को मिलेंगे।
सीन 3 (ग्वालियर) सुबह 8 बजे (नंदन चौहान)(रागिनी का घर)
रागिनी को फ़ोन कर के पता तो करो आज उसका पहला दिन है कॉलेज का पता नहीं सोकर भी उठी है या नहीं । रागिनी की माँ ने रागिनी के पिता को चाय देते हुए कहा। रागिनी के पिता ने फ़ोन लगाया तो रागिनी के फ़ोन की घंटी बजती रही लेकिन उसने फ़ोन नहीं उठाया। रागिनी की माँ परेशान होकर कहती है आपको कितना मना किया था कि अब उसे दिल्ली मत भेजो। अब जल्दी से उसकी शादी कर दो, ज्यादा पढ़ेगी तो अच्छा लड़का नहीं मिलेगा फिर उसके लिए। रागिनी के पिता ने सुना तो हँस पड़े और कहने लगे अरे भाग्यवान वो कौन सा वहाँ अकेले रहती है। इतना परेशान मत हुआ करो और फिर रागिनी की शादी की इतनी जल्दी क्या है? उसे पढ़ने दो जितना मन करे फिर शादी तो एक न एक दिन होनी ही है।
रागिनी की माँ रागिनी के दिल्ली में कॉलेज करने से थोड़ी परेशान थी क्योंकि वो उनसे दूर फरीदाबाद में अपने भैया-भाभी के पास रहकर पढ़ रही थी। रागिनी की भाभी का व्यवहार थोड़ा अच्छा नहीं था और ये बात रागिनी की माँ जानती थी। रागिनी को भी गुस्सा जल्दी आ जाता है ये सोचकर वो घबरा जाया करती थी। लेकिन रागिनी की ख्वाहिश पर रागिनी का भाई उसे ग्वालियर से अपने साथ ही ले आया था।
तो यहाँ से शुरू होगी असली कहानी जिसमें तीन लडकियाँ हैं जो अपनी-अपनी ज़िन्दगी को अलग-अलग नज़रिए से देखती हैं। ज़िन्दगी को लेकर उन तीनों की जो सोच है वो उन्हें ज़िंदगी के अलग-अलग रूप दिखाने वाली है। एक तरफ अंजलि है और दूसरी तरफ रिया और उसकी अभी कुछ महीने पहले ही बनी दोस्त रागिनी। अंजलि को प्यार से नफरत है लेकिन दोस्ती के रिश्ते की वो दिल से मुरीद है। रिया जो खुद को मनहूस नहीं मानती थी लेकिन अपने परिवार की ये बेरुखी उसे तकलीफ देती है। लेकिन रागिनी इन दोनों से बिलकुल ही अलग है उसकी ज़िन्दगी का मकसद सिर्फ और सिर्फ स्मार्ट लड़का ढूँढकर लव मैरिज करना है और इसीलिए उसने दिल्ली में रहकर अपनी आगे की पढाई करने का मन बनाया था।
सीन 4 (अरविन्दों कॉलेज के बाहर)
कॉलेज के गेट के पास ही नितिन और शुभम खड़े थे। जैसे ही उन्होंने रिया और रागिनी को आते देखा दोनों दौड़कर अपने सीनियर मयंक के पास आये और कहा सर दो न्यू एडमिशन आ रहे हैं। मयंक एक अच्छे घर का लड़का है। उसके पापा अर्जुन भरद्वाज का दिल्ली के करोल बाग की मार्किट में ही ब्राइडल ड्रेसेज का बहुत बड़ा शोरूम है। दिल्ली के बाहर भी कई शहरों में उनका बिज़नेस फैला हुआ है। उसकी माँ एक डॉक्टर है और मयंक अपनी माँ का लाडला बेटा है। मयंक जो कि बी.ए. सेकेंड ईयर का स्टूडेंट है। अपनी चार्मिंग और डैशिंग पर्सनालिटी की वजह से कॉलेज में हमेशा ही छाया रहता है। लडकियाँ उससे दोस्ती करने को उसके आगे-पीछे घूमती हैं लेकिन वो हर लड़की से सिर्फ यही कहता है “वो तुम नहीं हो।”
नितिन – नितिन के पापा अशोक चौहान एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं। उसकी माँ एक एन. जी. ओ. चलाती हैं। एक छोटी बहन है जो कि अभी दसवी कक्षा में पढ़ती है। नितिन बहुत शांत और भावुक है। किसी को तकलीफ में नहीं देख सकता। वो भी अपनी माँ के नक़्शे कदम पर है और आगे चलकर कुछ ऐसा करना चाहता है जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद कर सके।
शुभम- शुभम बहुत ही मजाकिया और साथ ही साथ दोस्तों पर जान छिड़कने वाला है। उसे पढाई-लिखाई और कुछ बनने में कोई दिलचस्पी नहीं है। उसके पापा अच्छे खासे पुश्तैनी रईस हैं, लेकिन उसकी माँ उसे बचपन में ही छोड़ कर चली गयी थी। उसके पिता ने सौतेली माँ का आँचल उस पर नहीं डाला ताकि उनके बच्चे को कोई दिक्कत ना हो। शुभम काम नहीं करेगा बस अपने पिता का पुश्तैनी कारोबार सम्हालेगा लेकिन उससे पहले वो अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपनी ज़िन्दगी को अच्छे से जीना चाहता है।
राघव- राघव एक गरीब घर का लड़का है लेकिन पढ़ने में बहुत होशियार है। उसके घर में उसकी माँ और एक छोटी बहन सुमन है। उसके पिता का देहांत एक बीमारी के चलते हो गया था। उसकी माँ सिलाई-कढ़ाई का काम कर अपने घर का और राघव और सुमन की पढाई का खर्चा बड़ी मुश्किल से निकाल पाती थी। राघव भी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी माँ की मदद कर देता था। वह अपनी पढाई पूरी करके अपने घर के हालात बदलना चाहता है।
जैसे ही रिया और रागिनी कैंपस के अंदर आये तो शुभम ने उन्हें रोकते हुए कहा पहले मयंक सर से मिल कर जाओ। रागिनी और रिया एक-दूसरे की तरफ देखने लगे थे तभी मयंक ने पूछा नाम क्या है? रागिनी...रिया दोनों एक साथ ही बोल पड़े थे।
रागिनी तो मयंक के बगल में बैठे लड़के को देख कर मन ही मन कह रही थी वाओ कितना स्मार्ट है यार! रिया थोड़ा डरी हुई थी और जैसे ही मयंक ने देखा कि वो बहुत डरी हुई है उसने कहा तुम जा सकती हो लेकिन कल तुम्हें आते ही यहाँ कुछ सुनाना होगा? रिया ने घबराते हुए कहा अभी सुना दें? मयंक से पहले शुभम बोल पड़ा था हाँ बिलकुल अभी सुना दीजिये आप? रिया ने कहा मैं मनहूस हूँ और रोने लगी। सबको ऐसा कुछ भी सुनने का अंदाज़ा नहीं था तो सभी एक-दूसरे को देखने लगे थे। नितिन उसे ऐसे रोते देखा तो उसे अच्छा नहीं लगा और उसने मयंक से कहा सर जाने दे। मयंक ने कहा क्या नाम है तुम्हारा? इस बार रिया चुप थी तो रागिनी बोल पड़ी थी। उसने कहा रिया नाम है इसका! मयंक ने कहा ये गूँगी है जो तुम इसकी तरफ से बोल रही हो? रागिनी चुप हो गयी और रिया की तरफ देखने लगी थी। मयंक ने इस बार चिल्लाकर कहा क्या नाम है तुम्हारा? रिया चौंक गयी और काँप गयी थी। उसने डरते-डरते कहा मेरा नाम रिया है। मयंक ने कहा खुद को ही मनहूस मानती हो तो फिर रोने की जरुरत नहीं है लेकिन अगर दूसरों के कहने की वजह से मानने लगी हो तो गलत है। खुद से प्यार करो और खुद की इज्जत करो। मेरी मॉम कहती हैं मनहूस जैसी इस दुनिया में कोई चीज़ नहीं होती। तभी नितिन रिया के सामने आया उसने अपना रुमाल उसकी तरफ बढ़ा कर कहा तुम बहुत खूबसूरत हो! रिया ने जब ये सुना तो अपनी पलकें उठाकर उसने एक नज़र नितिन को देखा और वापिस अपनी पलकें नीचे झुका ली थी। नितिन ने कहा आप जाएँ परेशान मत हो।
रागिनी भी रिया के साथ जाने लगी तो मयंक के साथ बैठे राघव का ध्यान उस पर गया। रागिनी ने जैसे ही देखा कि राघव उसे देख रहा है तो वो मन ही मन बहुत खुश हुई थी। रागिनी ने पीछे मुड़कर देखा राघव अब भी उसे देख रहा है तो उसके दिल में तो घंटियाँ बजने लगी थी।
मयंक, नितिन और राघव ने शुभम से कहा यार चाय पीनी है। वो सभी उठकर कैंटीन की तरफ जाने को हुए कि तभी किसी की आवाज से वो रूककर वापिस पलटे। एक्सक्यूज मी, ये प्रिंसिपल का ऑफिस कहाँ होगा? चारों लड़के अंजलि की तरफ मुँह खोलकर देख रहे थे। अंजलि ने एक बार उन चारों को देखा और फिर खुद को देखने लगी। उसने मन ही मन कहा ये मुझे ऐसे क्यों देख रहे हैं कपड़े तो सही पहने है मैंने। कहीं चेहरे पर तो कुछ नहीं लगा हुआ है ये सोचकर उसने अपना मोबाइल निकाला और फ्रंट कैमरा कर के अपना चेहरा देखा। मैं तो ठीक लग रही हूँ कहकर उसने अपना फ़ोन वापिस अपनी पॉकेट में रखते हुए कहा लगता है तुम लोगों ने कभी लड़की नहीं देखी? अब अच्छे से देख ली हो तो जरा बता दो प्रिंसिपल का ऑफिस कहाँ हैं? शुभम ने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा चलिए मैं आपको वहाँ तक छोड़ देता हूँ। अंजलि ने उसे घूरते हुए कहा है वहीं रुको और वहीं से बताओ, बाकी काम मैं खुद ही कर लूंगी।
मयंक की नज़रें अंजलि से हट ही नहीं रही थी। 5 फुट 4” कद, गोरा रंग, तीखे नैन-नक्श, कमर तक लहराते सुनहरे बाल, होठों पर हलकी गुलाबी रंग की लिपस्टिक और सबसे आकर्षक था उसके होठों के ऊपर एक छोटा सा काला तिल। अनायास ही मयंक के मुँह से निकला “वो तुम ही हो।” अंजलि ने सुना तो उसे घूरते हुए कहा क्या? अंजलि ने वहाँ से जाने में ही अपनी भलाई समझी। वो लड़के अब भी उसे घूर रहे थे तो अंजलि ने कहा क्या नमूने हैं? वो जैसे ही जाने लगी मयंक ने कहा हे मिस....................???????? अंजलि, अंजलि शर्मा ये जवाब अंजलि ने दिया था। मयंक ने कहा ओह्ह नाईस नेम! मिस अंजलि यू आर अ न्यू एडमिशन राईट???? अंजलि यस और नहीं तो क्या वरना प्रिंसिपल का ऑफिस तुम लोगों से नहीं पूछती। सो....... मिस अंजलि मैं आपका सीनियर हूँ मयंक भरद्वाज और रैगिंग का नाम तो आपने सुना ही होगा??? ये सुनते ही अंजलि का दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच गया था। मयंक ने कहा आपको ज्यादा कुछ नहीं करना बस एक गाना सुना दीजिये, जो भी आपकी पसंद हो। अंजलि ने कहा मुझे गाना नहीं आता और मैं ये स्टुपिड सी रैगिंग का हिस्सा नहीं बनने वाली हूँ। तभी नितिन, शुभम और राघव अंजलि के आगे आकर खड़े हो गए थे।
अंजलि ने एक नज़र उन्हें देखा और फिर पलट कर मयंक की तरफ देखा। मयंक मुस्कुरा रहा था। उसे यूँ देख अंजलि भी मुस्कुराई और फिर एक चीखने की आवाज आई जो की राघव की थी। दरअसल अंजलि ने गुस्से में अपने सामने खड़े राघव के गाल पर एक जोरदार तमाचा रख दिया था और वह दर्द के मारे चीख उठा था। अंजलि ने पलट कर मयंक की तरफ देखा तो वो अब भी मुस्कुरा रहा था। शुभम और नितिन तो राघव का ये हाल देख पहले ही वहाँ से खिसक गए थे। राघव मयंक की तरफ आया और कहा अबे साले उसने मुझे थप्पड़ मारा और तू मुस्कुरा रहा है। मयंक ने अपनी तरफ घूरती अंजलि से कहा – “वो तुम ही हो।” राघव ने सुना तो समझ गया मयंक अंजलि पर फ्लैट हो चुका है। अंजलि ने कहा तुम क्या पागल हो? आइन्दा से मुझसे मत उलझना मैं कोई ऐसी वैसी लड़की नहीं हूँ समझे मिस्टर। अंजलि बडबडाती हुई आगे बढ़ गयी थी और मयंक उसे तब तक देखता रहा जब तक वो उसकी आँखों से ओझल नहीं हो गयी।
अंजलि के जाने के बाद नितिन और शुभम वहाँ आये और उन्होंने राघव से कहा तू ठीक है ना भाई? राघव ने उन्हें मारते हुए कहा सालों जब तो चुपचाप खिसक गए और अब यहाँ हमदर्दी जता रहे हो। राघव उन्हें मारने उनके पीछे भागा और यहाँ मयंक वो तो अब तक भी किसी ख्याल से बाहर नहीं आ पाया था जिसमें वो थोड़ी देर पहले ही गुम हो चुका था।
“वो तुम हो जो अक्सर ख्वाबों में चली आती हो,
दिल में छुपकर बैठी हो, चेहरा नहीं दिखाती हो,
आज हुआ रूबरू तो नाम जान पाया हूँ तुम्हारा,
अंजलि शर्मा.....
तुम हो कुछ और कुछ और तुम दिखाती हो।”
वाह... वाह... वाह.... क्या बात है जैसे ही ये सुना तो मयंक अपनी गुम सोच से बाहर आया और उसने देखा की राघव, नितिन और शुभम खड़े उसे घूर रहे हैं। मयंक ने कहा राघव तू ठीक है ना, तुझे ज्यादा तेज तो नहीं लगी? राघव ने गुस्से में कहा याद आ गया तुझे कि आपकी “वो तुम हो” मुझे थप्पड़ जड़ कर चली गयी है? मयंक ने कोई जवाब नहीं दिया उसे तो बस याद आ रहा था अंजलि का वो बेबाक अंदाज, उसकी वो खूबसूरती, उसकी वो आँखें जिनमें शायद बहुत गहरे राज थे। शुभम ने कहा राघव रहने दे अब हमारा दोस्त हमारा नहीं रहा।
“जिसके सपने हमें रोज आते रहे, दिल चुराते रहे,
ये बता दो कहीं तुम वही तो नहीं, वही तो नहीं ?”
ये गाना मयंक के तीनों दोस्त गा रहे थे और मयंक ने कहा यारों ये वही है! दरअसल मयंक मोहब्बत में विश्वास करता है। उसकी मोहब्बत कैसी होगी उसकी छवि उसके दिलोदिमाग में पहले से ही बनी हुई है। आज अंजलि को देखते ही उसे लगा ये वही है और इसीलिए वो कह बैठा था कि “वो तुम हो” जबकि इससे पहले वो अपने आस-पास की हर लड़की को कह दिया करता था "वो तुम नहीं हो।"
नितिन, शुभम जहाँ उसे मयंक की दीवानगी समझते थे वहीं राघव था जो मयंक के दिल को समझता था। वो समझता था कि उसे किस तरह की मोहब्बत की तलाश है। वो अक्सर कहता था मयंक ये सब सिर्फ किताबों में होता है। असल ज़िन्दगी में ऐसी मोहब्बत शायद ही कोई करता होगा। वैसे भी राघव अपनी ज़िन्दगी के एक कडवे सच से वाकिफ था और वो ये था कि राघव के मम्मी-पापा की भी लव मैरिज थी। राघव के पिता ने उसकी माँ से प्यार किया था, शादी की और फिर सिवाय शक और तकलीफ के उन्हें कुछ नहीं दिया। खुद शराब और सिगरेट में अपनी ज़िन्दगी बर्बाद की थी और उसकी माँ को आखिर में अकेला छोड़ कर चले गए थे। वो हमेशा सोचता था कि प्यार अगर ऐसा होता है तो वो कभी प्यार नहीं करेगा।
लेकिन मयंक उसने तो अपने माँ-पापा की अरेंज मैरिज में भी लव देखा था। उसका लव पर बिलीव करना लाजमी था। लेकिन वो अक्सर सपने में एक लड़की का अक्स देखा करता था। लेकिन वो मात्र एक अक्स था वो कभी उसका चेहरा नहीं देख पाता था। उसे शायद उसी अक्स या अपनी उसी मोहब्बत की तलाश थी, जो उसे लगा आज अंजलि से मिलकर खत्म हुई है। लेकिन क्या अंजलि ही वो अक्स है या फिर ये मयंक का वहम है। मयंक के दिल ने उसे कहा था ये वही है और कहते हैं दिल कभी गलत नहीं कहता।
तो आगे क्या होगा जानेंगे इसके अगले पार्ट में, पढ़ते रहिये और अपनी समीक्षा देकर मेरा उत्साह बढ़ाते रहिये। सबसे जरुरी बात समय इस दौरान बहुत प्रतिकूल है तो अपना बेहतर ध्यान रखिये।

