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Kanchan Hitesh jain

Drama

4  

Kanchan Hitesh jain

Drama

वो ट्रेन का यादगार सफर

वो ट्रेन का यादगार सफर

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कुछ साल पहले की बात है। एक बार मैं और मेरी आंटी ट्रेन से सफर कर रहे थे। लेडीज कम्पार्टमेंट था तो हमारे पास चार लेडीज बैठी हुई थी। ट्रेन का सफर तो हमेशा सुहावना होता है और अगर हमराही अच्छे मिल जाये तो यादगार भी। कुछ देर बाद एक दूसरे से बातचीत की, दोस्ती हुई।


दोपहर का समय था सब बोर हो रहे थे... पास में दो गुजराती आंटी बैठी थी तो उन्होंने ने कहा, "टाईमपास करने के लिए क्यों ना अंताक्षरी हो जाये।"


सबने हामी जताई गाना बजाना शुरू हुआ। सब सफर का मजा ले रहे थे। कुछ देर बाद एक कोयल सी मीठी और मधुर आवाज सुनाई दी। गाना था परदेसी परदेसी... आवाज़ इतनी सुरीली थी कि उसकी आवाज सुनते ही हमारी आवाज़ अपने आप बंद हो गई। और हर किसीकी नजर जैसे उसे ही ढूंढ रही थी। ऐसा प्रतित हो रहा था कोई 12-13 साल की लडकी है।


कुछ देर बाद उसकी झलक दिखाई दी वह हमारे कम्पार्टमेंट से दो... तीन कम्पार्टमेंट छोड खडी थी। लग रहा था वह कोई गरीब लडकी थी।

अक्सर हम जब ट्रेन का सफर करते है तो ऐसे संगीतकारों से मिलते है।उनका टेलेंट गजब का होता है। और हो भी क्यों ना, “प्रेक्टिस मेक्स अ मेन परफेक्ट!” बस तो उन्हें भी किसी ट्रेनर की जरुरत नहीं होती। भूख और हालात उन्हें अपने आप कलाकार बना देता है।


हम सबकी नजर उसी पर टीकी हुई थी। जैसे कितनी जल्दी व हमारे पास आये और हम उसका गाना सुने। कुछ देर बाद गुजराती आंटी ने उसे आवाज लगाई, "ए ढिंगली अया आवने।"

उसने रुकने का इशारा किया और पैसे कलेक्ट कर दौडी दौडी हमारे पास आई।


हमने उसे एक के बाद एक चार-पाँच गानों की फरमाइश की और उसने भी बडे चाव से सारे गाने गाये। आवाज इतनी मधुर थी कि बस सुनते रहो। फिर उसने हाथ फैलाये और सबने उसे एक... एक रुपया दे दिया।

लेकिन गजब तो तब हुआ जब सामने बैठी एक अठारह... बीस साल की लडकी ने उसे बीस रूपये का एक नोट थमा दिया। गुजराती आंटी तो जैसे भडक सी गई, "ये आजकल की जनरेशन भी ना यही बढावा देते है इन जैसे लोगों को। भिखारी को बीस रुपये।”


उसपर मेरे साथ जो आंटी थी उन्होंने आग में और घी डाला, "हाँ हाँ हाथ पैर सही सलामत है। कुछ अच्छा काम कर सकती है। कमा कर खा सकती है पर यूं भीख मांगकर..."


वह कुछ और बोलती उससे पहले तो वह नन्ही गायिका भडक उठी। हाँ भिखारी नहीं, गायिका! मेरे लिए वह किसी गायिका से कम नहीं थी। उसके चेहरे पर उसका गुस्सा साफ नजर आ रहा था। उम्र तो उसकी यही कोई तेरह साल की होगी। लेकिन लग रहा था इतनी कम उम्र में भी समय और हालात ने उसे अपने लिए लडना सीखा दिया था। उसके गुस्से से लाल चेहरे पर साफ प्रतित हो रहा था जैसे किसीने उसके ज़मीर को ललकार हो।


उसने कहा, "ए आंटी भिखारी किसको बोल रही हो... भीख नही मांग रही हूँ, मजबूर जरूर हूँ, पर अपनी आत्मा या शरीर को नहीं बेचा अपनी कला का प्रदर्शन कर कमा रही हूँ।"


फिर वह हमारी ओर मुडी और आंटी की तरफ इशारा कर पूछने लगी, "और हाँ क्या कह रही थी आप काम करो, कमाकर खाओ तो बताओ कौन देगा काम मुझे, आप दोगी? तो ले चलो मुझे अपने साथ। आपके घर का सारा काम कर दूंगी। बदले में दो वक्त का खाना, सर ढकने के लिए छत और अपने बच्चों की उतरन दे देना तो भी खुश हो जाऊंगी, ये सोचकर कि मैं महफूज हूँ। क्या ले चलोगी?” उसने सवालिया नज़र से देखा।


“क्यों हो गई ना बोलती बंद?” और हाँ सही में हम सबकी बोलती बंद हो गई। सब एकटुक उसे देख रहे थे। और वह मुंह फेर वहां से चल दी।

पर उसकी बातें आज भी कई बार सोचने के लिए मजबूर कर देती है कि दूसरों को राय देना कितना आसान होता है। लेकिन क्या किसी बेसहारा का सहारा हम बन सकते है? क्या है कोई जो इनका हाथ थाम सकें...?


आज भी उसके बारे में सोचने के लिये मजबूर हो जाती हूँ। पर ऐसे किसी बेसहारा का हाथ थामने की हिम्मत मुझ में भी नहीं है।


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