वो सर्द रात
वो सर्द रात
हर साल सर्दी में यही हाल होता है, जिनके सर पर छत नहीं होती, उनके ऊपर पाला मानों कुछ ज्यादा ही मेहरबान रहता है।
बमुश्किल पूरे दिन लकड़ियां इकट्ठा कर सलीम रात को अलाव जलाने की तैयारी करने लगा, उसकी अम्मी जान ने कहीं से आज के खाने का इंतज़ाम कर लिया।
कंबल तो परसों ही किसी अमीर से दान में प्राप्त हो गया था, जिससे थोड़ी राहत थी। अम्मी ने अलाव पर ही खाना गर्म किया और दोनों ने खा भी लिया।
इतने में एक बूढ़ी अम्मा कांपती हुई दिखाई दीं, उम्र के कारण उन्हें सर्दी ने ज़्यादा कस कर जकड़ रखा था।
"सलीम, बेटा ले ये मेरा कंबल उन अम्मा को दे आ, मेरे खून में फिर भी गर्मी है, जो इस सर्दी को मैं सहन कर सकती हूं, पर इन अम्मा की हालत बहुत ख़राब लगती है", सलीम की अम्मी ने कहा
"पर अम्मी ऐसे तो आपकी तबीयत नासाज़ हो जाएगी, और मैं ये नहीं होने दूँगा। इन बूढ़ी अम्मा को कोई और कंबल दे देगा", सलीम ने अपनी बात रखी
"सलीम, मैं तेरे जज़्बात समझती हूं, पर अपने आप को इस सर्दी की ही तरह सर्द मत बना बेटा। इस अम्मा के तो तेरे जैसा कोई बेटा भी नहीं होगा लगता है, ऐसे में हमें इनकी मदद करनी ही चाहिए।"
अगले ही पल सलीम ने अपना और अम्मी का कंबल उन बूढ़ी अम्मा ओढ़ा दिया....और अपनी इंसानियत की गर्माहट को बचा कर अम्मी के साथ अलाव की गर्मी से सर्दी को फिर एक चमचमाती हँसी से हराने में लगा।