"वो पल" ...कहानी
"वो पल" ...कहानी


मैं बहुत छोटी थी बड़ा परिवार था। हमारे अब्बा टीचर थे मैथ्स और इंग्लिश के हायर सेकेंडरी में उस ज़माने में सैलरी भी बहुत थोड़ी सी ही होती थी। अब्बा को 150 ₹ ही मिलते थे। तीन भाई बड़े थे वो जाॅब में आ गए एक एग्रिकल्चर में क्लर्क, टीचर और एक सबइंजीनियर(ओवसियर) बोलते थे। मगर सब अपनी- अपनी परिवार में लग गए। बीच वाले भाई जो 11 वीं क्लास में थे। 1968 में पूरे प्रदेश में साइंस - मैथ्स सब्जेक्ट में टाॅप किया। मेडिकल कॉलेज में एडमिशन की अब्बा सोच रहे थे। अब्बा रिटायर्ड हो गए थे और उनको पेंशन 65₹ मिलती थी
उनके जी. पी.एफ में 60 साल में जो जमा हुआ वो पैसा 40,000 ₹ही था। अम्मा और अब्बा, बड़े भाई मशवरा कर रहे थे।
मेरी उम्र 5 साल थी, मैंने सबको जोड़-घटाव करतें देखा तो, उस ज़माने की मिट्टी की गुल्लक लाकर फोड़ दी ।अब्बा आप ये मेरे पैसे भी ले लो गुल्लक में (पांच और दस पैसे) ही थे।
अब्बा ने मेरे माथे पर बोसा दिया (बोसा लिया मिन्स चुम्मा ) और कहा अभी तेरा अब्बा है ना। अब्बा भी छोटी- छोटी बचत करते थे। अम्मा ने भी घर खर्च से बचा रखे थे। तीनों भाइयों ने भी अपनी बचत भाई की एम.बी. बी.एस. की पढ़ाई में लगा दी।