वो नन्ही
वो नन्ही


उसने आस पास चोर नज़रों से देखा, कोई नहीं देख रहा था उसे। चेहरे के भाव छुपाते हुए उसने नन्हीं का हाथ और कस कर पकड़ा और अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। नन्ही लगभग दौड़ने लगी उसके साथ।"चाचा, ज़रा धीरे चलो ना, मुझे टाफी की इतनी जल्दी नही है "नन्ही हाँफते हुए बोली।
"टाफी!उऊफ टाफी कौन दिला रहा है इसे"वह भेड़िया हँसी हँसा। लगती ही क्या है आख़िर वह उसकी, पड़ोस की एक ६ साल की बच्ची। यह बात अलग है की, वह उसे चाचा बुलाती और उसके माँ बाप भी पूरा भरोसा करते थे उस पर।मगर, आज भरोसे पर बदनियत हावी हो चुकी थी और वह निकल पड़ा था रिश्तों को शर्मिन्दा करने।"ओ चाचा, नन्ही बोली, देख लेना अब के चाची के लड़की ही होगी।"तुझे कैसे पता, "उसने अनमने ढंग से चारों ओर देखते हुए कहा।"माँ कहती है, भाग्यशाली के घर ही कन्या आती है। फिर तो तुम भी भाग्यशाली हो जाओगे दो दो कन्याओं के साथ। दो कैसे रे ! वह चौंक गया।"एक तो मैं हूँ ना "वह भोलेपन से आँखें तैराती बोली। मैं बड़ी होकर तुम्हारी ख़ूब सेवा करूँगी। "तुम्हें छोड़ कर ना जाऊँगी, ।"कहते कहते उसने अपनी नन्ही हथेलियों से उसके बड़े बड़े हाथ ढक लिए।
वह कुछ सकपका गया पर डिगा नही। "देखो चाचा, वह चहकती हुई बोली, यही वो मंदिर है ना जहाँ पिछले नवरात्रो में आए थे"।उसने ना चाहते हुए भी मंदिर पर एक निगाह डाली, पुरानी यादें छपाक से मन की झील में तैरने लगी। कुछ तस्वीरें उभर आई। कैसे वह नन्ही के पैर धो रहा था और वह इतराते हुए उसके सिर पर हाथ फेर रही थी।उसे खिलाकर ही तो उसने पहला निवाला लिया था।उसके काँधे पर बैठ ही तो नन्ही ने पूरा मंदिर घूमा था। कितने ख़ुश थे दोनों। अब उसे क्या हो गया है।उसकी नन्ही, नन्ही ना होकर एक माँस का टुकड़ा भर रह गई क्या?? मन की इस चीख़ पुकार से उसका जी घबरा उठा।क़दम कुछ कमज़ोर हो चले थे।सामने उसके इरादों का जंगल था पर इरादे ही कुछ कमज़ोर से होने लगे थे। "अब तू कुछ ना बोलेगी"नीचे देखते हुए उसने आदेश सा दिया। भावनाओं और नियत की लड़ाई में वह उलझ गया।"कुछ पता है तुम्हें, एक दिन डाक्टर बनूँगी...बड़ी डाक्टर ..और तुम्हारे पास से सब बिमारियो को भगा दूँगी "।वह हवा में तलवार चलाती हुई बोली।पीड़ा क्या होती है, वह मासूम बिलकुल अंजान....
जिस इंसान से वह हर पीड़ा दूर रखना चाहती थी, वह ही उसे जीवन भर रिसने वाला घाव देना चाहता था।"बदले में तुम क्या करोगे मेरे लिए "उसने पूछा तो वह डर गया ...कहीं नन्ही ने उसे ताड़ तो नही लिया था।"माँ कहती है, ये जो जंगल है ना उसमें एक दानव रहता है।"वह नन्ही बच्चियों को उठा ले जाता है और उन्हें नोच खाता है"।तुम मुझे उससे बचाओगे ना...पिता ही तो रक्षक होता है "कहते कहते उसने उसके दोनों हाथ पकड़ लिए।वह काँपने लगा। रिश्तों की गरमाहट ने सब पिघला दिया। आँखों से निर्मल धार बह निकली। उसने नन्ही को गोद में उठा लिया और उसके नन्हें पैरों को अपने माथे से लगा, मन ही मन उससे क्षमा माँगी। "मेरे होते तेरा कोई कुछ ना बिगाड़ पाएगा।"वह झूमता हुआ वापस चलने लगा तो नन्ही बोली "चाचा, टाफी का क्या "।"यह रास्ता ग़लत है नन्ही "वह सही रास्ते पर जो आ चुका था। नन्ही और उसके हँसने के स्वर गूँज रहे थे और क्षितिज पर ना जाने कितनी नन्हियाँ मुस्कुरा उठी।