चप्पल
चप्पल


हर रोज़ की भाँति जैसे ही सविता ने अपनी चप्पल उसे पहनाई ,मैं बोल पड़ी "क्यों रे तू चप्पल क्यों नहीं पहनता है"उसे प्यार से डाँटा तो वह हँस पड़ा ।हमेशा हँसता ही तो रहता था वो।"क्या करीन भाभी, जे सुनत ही नाहीं है,"सविता कपड़े गिनते हुए बोली ,"घरन से हमरे साथ आ जावत है नंगे पैर फिर हमहु चप्पल देन पड़त है"कहत है ,हमहु धोबी का काम सिखेंगे "अब तुम्हीं कुछ समझाओ भाभी इसे ,पढ़ाई लिखाई छोड़ क्या कपड़े इस्तरी करेगा बस "इस बात पर भी सुरेश हँस पड़ता ।अभी उम्र ही क्या थी उसकी, १० -१२ साल ।एकदम मस्त ।हमारे पूरे मोहल्ले के कपड़े वह ही ले जाती।उसके साथ साथ वह भी छलाँग भरता फिरता।कोई पतंग दिख जाती तो झटसे पकड़ मुझे दिखाता ।कभी किसी जानवर के पीछे भागता , तो कभी छुप कर टीवी देखने लगता।आख़िर !!था तो बच्चा ही।कुछ तो था उसके भोलेपन में ...
सविता भी कहाँ सुखी थी।पति कुछ कमाता नहींथा उस पर ,जल्दी ही चल बसा और पीछे छोड गया दो बच्चों की ज़िम्मेदारी ।ससुराल वाले परेशान करने लगे तो पिता के घर आ गई और यहाँ भाईभाभी पर बोझ बन गई।इसलिए कमाना बहुत जरुरी था उसके लिए।सारी उम्मीदें अब सुरेश से ही थी।
बहुत दिनों से जब सविता कपड़े लेने नहीं आई तो मन अनिष्ट से बेचैन हो उठा।पता चला की उसकी एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी।मैं घनघोर पीड़ा से भर उठी।फिर सुरेश का ध्यान आया।वो कैसा होगा ,कैसे सम्भाला होगा ख़ुद को।बहुत दिनों तक वह भी नहीं दिखा ।एक दिन मैंने उसे सामने वाले घर से कपड़े ले जाते देखा ।अपने वज़न से दुगना बोझ उठाए खड़ा था और वो महिला ज़ोर से उसे डाँट रही थी।फिर भी शांत व गम्भीर ।उसकी हँसी खो चुकी थी।अचानक से कितना बड़ा हो गया था वो।ग़रीब के बच्चे वैसे भी बहुत जल्दी बड़े हो जाते है। मैंने उसे आवाज़ दे कर बुलाया , पर वह कुछ क़तरा सा गया।कल आने का इशारा कर वह चला गया।अगले दिन वह आया और बोला "आन्टी ,कपड़े देने है क्या " ?मै चौंक गई ।भाभी जी से मै आन्टी हो चुकी थी।मैंने पूछा " कैसा है रे तू "।वो बस गरदन झुकाए खड़ा रहा।मैंने उसके पैर देखे,वो आज भी नंगे पाँव था।"तू चप्पल क्यों नहींपहनता है "उसे लगा अब कौन है चप्पल देने वाला।आँसूओ को रोकता हुआ वह मासूम ,यादें निगलने लगा।मैंने धीरे से अपनी चप्पल उसकी ओर बढ़ा दी।वह चौंक गया।उसने मेरी ओर देखा और मुझ में अपनी माँ की छवि देख ,बिखर गया।रुका हुआ सैलाब बह निकला।मैंने उसे चुप करा कर खाना खिलाया।जब वह जाने लगा तो ,मैंने उसे कहा कोई भी मदद हो तो ,मै हूँ ।उसमें आत्मविश्वास जगमगा रहा था ,आख़िर उसके पाँव में अब उसकी माँ की चप्पल जो थी.....