Shalini Sharma

Romance

4.6  

Shalini Sharma

Romance

निर्मला

निर्मला

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801


बारिश बरस बरस कर रो रही थी और इधर सब कुछ भीग कर जम चुका था। जम चुके थे मिस्टर मेहता और उनका काल बोध। कमरे में एक शून्य सा पसरा हुआ था।उनके मस्तिष्क में जीवन किसी रिकॉर्डिंग की भांति पीछे चल पड़ा ,जब वह निर्मला को पहली बार शादी कर अपने घर लाए थे। घुंघट में दिखती छुपती उसकी आंखें उन्हें कितनी अच्छी लग रही थी। गुलाब की खुशबू में डूबी निर्मला कितनी मनमोहक थी ।आज भी तो कमरे में गुलाबों की खुशबू आ रही है ,मगर ज़हन में उतरती यह खुशबू आज कितना बेचैन कर रही है। वही खुशबू ,जो जब मंदिर में भगवान की मूरत पर से उतर कर आए तो कैसी शांति दे जाती हैं पर जब मृत्यु से यूं लिपटकर आए तो अपना स्वरूप ,अपना एहसास बदल ,घुटन पैदा करती हैं। उनके साथ-साथ पलकें बंद व खोलने वाले निर्मला ने जाने क्यों चुपके से बेईमानी कर पलकें मूंद ली थीऔर अब जैसे उन्हें खोल ही ना रही हो।

मिस्टर मेहता के मुट्ठी में भींचे मोगरे के गजरे की खुशबु ,भी निर्मला को डिगा नहीं पा रही थी ,जो उसे बहुत प्रिय था।बहू अपने हिस्से का रो चुकी थी और बेटा भी बचपन से जवानी में प्रवेश करता ,मां की यादों को संजोए ,यथार्थ के धरातल पर आ चुका था और चुप हो गया था। पर जिसने अपने परम मित्र, अपने परम संगी ,को खोया उसके रोने का सबको इंतजार था। पर मिस्टर मेहता की आंखों में तो जैसे आकाल था ।अतीत की यादों को वर्तमान समझ वह यह मानने को ही तैयार नहीं थे कि उनकी निर्मला अब नहीं रही। वही निर्मला ,जो सुबह की फीकी चाय की मिठास थी ।अखबार की खबरों की साक्षी थी ।दोपहर की झपकी का तकिया तो कभी सुबह की सैर का कंधा थी ।उनकी पसंद नापसंद की फेहरिस्त और उनके भूले बिसरे जन्मदिन की मोमबत्ती सी निर्मला। उनकी निर्मला जो अकेले में निम्मो हो जाया करती थी ।लजाती शर्माती नए-नए प्रेम सी तो कभी कर्तव्य पथ पर आत्मविश्वास से अडिग निर्मला ।आंखों के कोनों में फैली झुर्रियों में निश्चल हंसी सी झांकती निर्मला।जीवन के पचपन बसंत साथ देख चुके मिस्टर मेहता को निर्मला आखिर किसके सहारे छोड़ गई ।वह ,जिसकी बूढ़ी आंखों में वह अपने प्रतिबिंब को देख कर खुश हो जाया करते थे ।उम्र को सेवा भाव से आगे धकेलती ,वह किसी तपस्वनी से कम न थी ।हां ,कभी तीखी नोकझोंक के बाद उसे मनाना मेहता जी के लिए जरा मुश्किल होता पर तब यह मोगरे का गजरा ही उनकी मदद करता ।मगर ,आज ऐसी क्या रूठ गई कि मोगरे के फूल ही सूखे जा रहे हैं । मिस्टर मेहता ,एक टक उसके चेहरे को देखे जा रहे थे ।यू सजी संवरी निर्मला आज भी कितनी मोहक लग रही थी।हो भी क्यों ना आज करवा चौथ पर तो वह हर साल यूं ही सजती रही है ।बस उससे यह भूख सहन नहीं होती ।फिर भी उनकी लंबी उम्र के लिए बिना कुछ खाए वह पूरा दिन निकालती और कैसे उनके चुपके से कुछ खाने की फरमाइश को उनकी लंबी उम्र की दुहाई देती, भूखी रह जाती ।आज भी भूखी ही जा रही है इस संसार से,उन्हें चिरकाल तक जीने की दुआओं की माला पहनाए।उनके जी में आया कि ,एक बार जोर से पुकारे अपने निम्मो को और कहीं ,एक भरम के जैसे वह जी उठे ।जैसे उनके आवाज लगाने पर वह कहीं से भी प्रकट हो जाती थी ।मगर .…

अब मेहता जी का सब्र डोलने लगा था ।निर्मला के बिना जीवन की कल्पना मात्र से वह कांपने लगे ,होंठ सूखने लगे और सांसें उखड़ने लगी। घबराकर आंखें बंद कर ली और कोरो से निकल आए दो मोती ,जिसमें झिलमिला रही थी निर्मला ।और कानों में गूंज उठा उसका प्रिय गाना जो अकेले में वह अक्सर उनको सुनाया करती थी "जीवन रेखा से भी आगे ,आऊंगी मैं संग तुम्हारे "वह लड़खडाते हुए, एकदम निढाल से उठे ,धीरे से उसके बालों में गजरा लगाया और छड़ी के सहारे ,आंसू पहुंचते हुए उठे और मानो उठ गई हो निर्मला ,चल पड़ी उनके साथ हाथों में यादों की गठरी उठाएं ,अनंत तक का साथ निभाने। वह अपने "निर्मला "को तो अपने साथ ही ले गए और लोग ना जाने किस का अंतिम संस्कार कर आए।



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