वो मेरा नहीं पर मैं उसकी हूँ
वो मेरा नहीं पर मैं उसकी हूँ
कुमार शानू के कैसेट लाता था शौंटू और किशोरवस्था को पार करके यौवन में कदम रखती मुनमुन खो सी जाती उन गानों में।90 रूपये का वो कैसेट वो तीस रूपये के खाली कैसेट खरीदकर अपनी पसंद के गाने रिकॉर्ड करके लाता। एक गाना तब दो रूपये में रिकॉर्ड होता था। यूँ एक कैसेट उन्हें 50 से 55 में पड़ता था और तो और मुनमुन उसके कवर पर ओरिजिनल कवर की नकल कर पेंटिंग भी कर देती। यूँ पैसे भी बच जाते और अपनी पसंद के गाने भी सुनने को मिल जाते थे।
फ़िल्म कभी हाँ कभी ना का ये गाना दोनों का फेवरेट था।
"वो तो है अलबेला, हज़ारों में अकेला "
मुनमुन जब सुनती सिर्फ शौंटू को इमेज़ीन करती और
"आ भी जा जानेजां " गाते हुए शौंटू को शुचित्रा कृष्णमूर्ति की ज़गह सिर्फ मुनमुन ही मुनमुन नज़र आती। ऐसा मासूम प्यार था और इतना टान कि दोनों एक दूसरे से एक दिन नहीं मिलते तो रह नहीं पाते थे।
कुछ ऐसे ही गानों की अदला बदली से तो शुरू हुआ था उनका प्यार। जो रिश्ते में तो ना बदल पाया पर कुमार शानू और अलका याज्ञयिक के फैन हैँ दोनों आज भी।
मुनमुन भूली नहीं एक दिन को भी शौंटू को। शायद स्त्रियां नहीं भूलती अपना पहला प्यार।
जिसमें बिना शारीरिक मिलन के कर देती हैँ अपना सर्वस्व समर्पण अपनी पसंद के पुरुष को। उसके बाद नहीं चाह पाती किसी और को।
हाँ। रिश्ते निभाती ज़रूर हैँ पर रिश्ते जीती नहीं।
कभी किसी दौर में यूँ भी हुआ करता था प्यार।
