Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Inspirational

4.6  

Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

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वो खाली तीर

वो खाली तीर

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सौम्या पिछले दो सालों से डाक्टरी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी में लगी हुयी थी। इस बार उसे पक्का यकीन था कि वह पास हो जाएगी। पर नहीं। पिछली बार की तरह, इस बार भी हाथ में निराशा ही आयी थी। अब तो उसके सब्र का बाँध टूटने लगा था। पढ़ाई लिखाई छोड़ ही देने के ख्याल, लगभग रोज़ ही उसके दिमाग में टहलने लगा था। 

उसके माता पिता ने भी उसकी निराशा भांप ली थी। उसका प्रोत्साहन बनाये रखने के लिए वो अपनी तरफ से बेहद कोशिश कर रहे थे। उस पर ढेरों लाड प्यार भी उड़ेल रहे थे।पर इन सबसे भी सौम्या की खीझ और झुंझुलाहट बढ़ ही रही थी। घर का माहौल भी तनावपूर्ण हो गया था। 

ऐसे में चचेरा भाई नकुल एक तीरंदाजी प्रतियोगिता में भाग लेने की तैयारी करने के लिए एक महीने के लिए, उन्ही के शहर आया तो घर में थोड़ा सा हंसी खुशी का माहौल वापस लौटा। नकुल था भी बहुत हंसमुख। उसके किस्से सुन कर तो कोई भी अपनी हँसी रोक नहीं पाता था। सौम्या भी उसके साथ चहकती रहती थी। फिर भी बीच बीच में उसके चेहरे पर उदासी आ ही जाती थी। नकुल ने सौम्या से उसकी उदासी की वजह जानी तो फिर बहुत कोशिश की सौम्या को समझाने की। पर सौम्या तो कुछ समझना ही नहीं चाहती थी।हार मान कर बैठ गयी थी और किताबों को हाथ ही नहीं लगाना चाह रही थी। 

जब नकुल की किसी बात का सौम्या पर रत्ती भर भी असर नहीं हुआ तो नकुल ने भी इस विषय पर चर्चा करना छोड़ दिया। अब सौम्या को न तो पढ़ाई करनी होती थी और न कोई दूसरा काम तो वो भी नकुल के साथ तीरंदाजी ट्रैनिंग वाली जगह जाने लगी। वहां सभी तीरंदाजों को अभ्यास करते देख उसे मज़ा आने लगा। 

यूँ तो नकुल भी अच्छी तीरंदाजी करता था पर सबसे अच्छी तीरंदाजी करने वाली एक लड़की थी। नीरजा का हर तीर सटीक और ठीक निशाने पर लगता था। साथ के सभी तीरंदाज और ट्रेनर्स भी उसकी तीरंदाजी के कायल थे। सब को पक्का यकीन था कि वो एक न एक दिन ओलिंपिक गोल्ड मैडल जीतेगी ही जीतेगी। 


कुछ बिलकुल नौसिखिये भी तीरंदाजी सीखने आते थे। ऐसे ही एक नौसिखिये तीरंदाज को पिछले एक हफ्ते में एक भी बार निशाना लगाने में सफल न होता हुआ देख एक दिन सौम्या नकुल के सामने उसका मज़ाक उड़ाने लगी। इसी वक्त नीरजा भी वहां से गुज़र रही थी। सौम्या को उस तीरंदाज की विफलता का मज़ाक उडाता देख वो अपने आप को रोक नहीं पायी और सौम्या को टोक दिया। 

सौम्या भी नीरजा के साथ ज़िद करने लगी कि उस तीरंदाज को तीरंदाजी सीखनी छोड़ ही देनी चाहिए क्योंकि उससे एक भी निशाना नहीं लग रहा था। नीरजा ने उसे समझाया की कई तीरंदाजी शुरू में देर से सीखते हैं पर उनके ये असफल प्रयास ही उन्हें सफलता की तरफ ले जाते हैं। उसने अपने बारे में भी बताया कि शुरू में तो वह कॉलेज की तीरंदाजी टीम में भी जगह नहीं बना पायी थी पर आज वो नेशनल टीम में है क्योंकि उसने असफलता के सामने हथियार नहीं डाले बल्कि और जोश के साथ तीरंदाजी करती रही। ये खाली तीर जो आज किसी निशाने पर नहीं लगते दिख रहे यही तैयार करते हैं नींव एक अच्छे तीरंदाज की। 

अगले कुछ दिन यही बातें सौम्या के दिमाग में गूंजती रही। अब उसने फिर से पढ़ना शुरू कर दिया था। अब वह तीरंदाजी ट्रेनिंग देखने भी नहीं जाती थी। एक दिन नकुल उसे ज़बरदस्ती साथ ले गया। आज वहां नए सीखने वाले तीरंदाजों के बीच स्पर्धा हो रही थी। 

सौम्या तो खुशी के मारे चीखने ही लगी जब उसी नौसिखिया तीरंदाज ने प्रतियोगिता जीती जिसका कुछ दिन पहले सौम्या खुद ही मज़ाक उड़ा रही थी। नकुल और नीरजा उसका हर्षोल्लास देख कर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। 


उसके बाद तो सौम्या ने दोगुने उत्साह से पढ़ना शुरू कर दिया। पढ़ा हुआ कभी भी व्यर्थ नहीं जाएगा ये वो समझ गयी थी। साथ में समझ गयी थी सबसे बड़ी बात की कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। 

अब ये क्या बताने कि जरूरत है कि सौम्या आज डॉक्टर सौम्या बन चुकी है। नहीं न। पर हाँ ये बताना जरूरी है कि उसका विवाह भी हो गया है। उसी नौसिखिये तीरंदाज के साथ। उस दिन इतना खुश हुई थी उसकी जीत पर कि दोनों के बीच दोस्ती हो गयी थी। वही दोस्ती प्यार में बदल गयी। 

क्या आप को उस तीरंदाज का नाम बताएं ? क्यों भाई ? अरे आज तो आप सब जानते हैं उस तीरंदाज को। इस बार ओलिंपिक में सिल्वर मैडल लाया है। 

हाँ जी अभी भी कड़ी मेहनत कर रहा है अपना निशाना और भी ज्यादा सुधारने की। कोशिश कर रहा है कि अगली बार अपने देश और आप सब के लिए गोल्ड मैडल ले आये। नज़रें अभी भी गड़ी हुई हैं अगले निशाने पर। 



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