वो हसीन शाम
वो हसीन शाम
जंगल में भटकते-भटकते गहरे अंधेरों को चीरते हुए बहुत दूर एक रौशनी की किरण दिखाई दी। कालेज से ट्रेकिंग के लिए निकली रागिनी कब अपने समूह से बिछड़ गई, उसे याद भी नहीं था। लगभग चार घंटे हो चुके थे। चलते-चलते पाँव भी जवाब दे चुके थे। पर आशा का दामन थामे धीर-धीरे वह उस रौशनी की दिशा में चल पड़ी। मन में एक तरफ जहाँ विश्वास था कि वहाँ कोई न कोई मिलेगा उसे, जो मदद करेगा उसकी इस गहरे जंगल की दलदल से निकालने का, वहीं मन एक अंजान आशंका से भयभीत भी था कि कहीं कुछ ग़लत न हो जाए।
उस घड़ी को कोस रही थी रागिनी, जब अपने साथी मधुर से छोटी-सी बात पर उलझकर वह जिद्द में उसके समझाने के बावजूद मार्गदर्शन के लिए मिले मानचित्र के विपरीत दिशा में चल पड़ी थी। मधुर जो दीवानगी की हद तक उससे प्यार करता था। पूरे कालेज में दोनों लैला-मजनू के नाम से मशहूर थे। पिछले कुछ दिनों से रागिनी की आकाश से बढ़ती मित्रता को लेकर मधुर ने थोड़ा एकांत पाकर बात शुरू कर दी थी।
"रागिनी! देखो तुम यह आकाश के साथ अपना मेल-जोल कुछ कम कर दो, बिल्कुल भी अच्छा लड़का नहीं है वह। पूरे कालेज में उसकी रेपुटेशन बहुत खराब है।"
"तुम्हें दरअसल जलन हो रही है, शायद तुम कुछ ज्यादा ही पजेसिव हो रहे हो मुझे लेकर," रागिनी अकड़ते हुए बोली।
"शटअप रागिनी! प्यार का मतलब हर बार पजेसिव होना नहीं होता, वह सचमुच एक बिगड़ैल लड़का है, जिसका ध्यान हमेशा नई-नई लड़कियाँ पटाने की ओर लगा रहता है।" मधुर ने अपनी बात स्पष्ट की।
पर रागिनी को जाने किस बात पर इतनी चिढ़ मची कि झगड़ा बढ़ गया। मधुर आवाज़ लगाता ही रह गया, पर रागिनी फटाफट कदम बढ़ाती वाम दिशा की ओर चल दी। फिर जाने कब वह उस आवाज की परिधि से बहुत दूर निकल आई। जब होश में आई, तो महसूस किया कि वह रास्ता भटक गई है शायद। साथियों से बिछड़ने का एहसास होते ही आँखों में आँसू आ गए, पर मन को समझाते हुए अपने दिवंगत पापा के शब्दों को याद करते हुए उस रौशनी की दिशा में चलने लगी।
"रास्तों की तलाश नहीं करते बेटा, जहाँ मंजिल तय हो, रास्ते खुद-ब-खुद निकल आते हैं।" मन ही मन हनुमान चालीसा दोहराते हुए एक अंजान मंजिल की ओर कदम अग्रसर होते गए।
कदम ठिठक से गए, ज्यों ही रौशनी के करीब पहुँची रागिनी। एक छोटी सी गुफ़ा नुमा झोपड़ी बनी हुई थी वहाँ, जहाँ से रौशनी नजर आ रही थी। सोचा अंदर जरूर कोई होगा, शायद खाने पीने को ही कुछ मिल जाए। बैग में पड़ी बाटल में पानी जरा सा रह गया था और भुने चने को खाकर प्यास बढ़ती जा रही थी। हौसला कर कदम गुफा के अंदर बढ़ा दिए। जाने कौन सी शक्ति थी, जो रागिनी को भीतर खींच रही थी। काफी देर तक कोई नज़र नहीं आया, तो मन घबराने सा लगा। उसे लगा कि कहीं अंदर आकर उसने कोई गलती तो नहीं कर दी। अचानक रौशनी एक तेज प्रकाश में फ़ैल गई। एक चीख निकलते-निकलते अंदर ही घुट सी गई। सामने एक विशालकाय गुरिल्ला सा आ प्रकट हुआ कहीं से। भय से रागिनी की कंपकंपी छूटने लगी। कदम पीछे की ओर खींचने के प्रयास नाकामयाब हो गए, जब उस गोरिल्ला ने खींचकर उसे घुटनों के बल बिठा दिया। रागिनी के काटो तो खून नहीं मानो। जोर से आँखें बंद कर जड़वत वहीं बैठ इंतजार करने लगी उस गोरिल्ला के द्वारा उठाए जाने वाले अगले कदम का, जो निःसंदेह उसके ऊपर प्रहार और फिर भयानक मौत की तरफ इशारा कर रहा था।
"रागिनी! आँखें खोलो बच्ची! तुम बिल्कुल महफूज़ जगह पर हो।" एक भारी भरकम आवाज से चौंक उठी पल भर के लिए। पर पल भर में ही भय काफूर हो गया, जैसे ही महसूस हुआ कि उसे तो उल्लू बनाया गया है। यह आवाज़ तो मधुर की ही प्रतीत हो रही थी। आशंकित हो आँखें खोली, तो सामने गोरिल्ला की खाल का लबादा ओढ़े मधुर जोर-जोर से ठहाके लगा रहा था। हँसते हँसते वह लबादा उतार फैंक दिया।
"मधुर! देट्स नाट फेयर। यह कैसा बेहूदा मजाक है। मेरी तो जान निकल रही थी।"
"अपनी जान की जान बचाने की खातिर ही तो तुम्हें ढूंढते हुए यहाँ तक आ पहुँचा। बस तुम्हें मजा चखाने के लिए इस गुफा में आकर तुम्हारा इंतज़ार करने की सोच रहा था कि यह गोरिल्ला का लबादा हाथ में आ गया। लगता है कि कोई थिएटर वाले यहाँ आकर शो करते होंगे जंगलवासियों के लिए यहाँ।" कहते हुए जोर से ठहाका लगा कर हँस पड़ा मधुर। रागिनी का सारा भय काफूर हो चुका था। मुस्कुराते हुए मधुर के गले से लग गई। फिर दोनों घंटों उस गुफा में तब तक प्यार के मधुर पलों से सराबोर होते एक दूसरे को निहारते रहे जब तक बाहर भोर की पहली किरण अपना उजाला फैलाने लगी थी।