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Rajeev Kumar Srivastava

Abstract

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Rajeev Kumar Srivastava

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वो अंधेरी रात

वो अंधेरी रात

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मैं आधी रात को इस सड़क पर जाने से पहले ही डरा हुआ था और अभी तो यहाँ कोई लाइट भी नहीं जल रही थी। मेरे फोन की बैटरी जा चुकी थी और...

अभी मै सोच ही रहा था कि क्या किया जाए, तभी सामने से कुछ आता हुआ सा प्रतीत हुआ। समझ नहीं आया कि क्या करूं।मेरी तो सिट्टी- पिट्टी गुम हो गई, पैर वहीं के वहीं जम से गए। 

अभी सोचने की सकती तो थी नहीं इतने में तेज हवा के साथ बारिश शुरू हो गई। लगा जैसे आज का दिन ही बेकार जा रहा है। अपने आप को कोस रहा था क्यों निकला आज घर से मै? लेकिन अगर नहीं निकलूं तो काम कैसे पूरा होता। बॉस की गली अलग खानी पड़ती। कंपनी में लेट पहुंचने पे तो बहुत सुनते हैं लेकिन काम अगर लेट ख़तम हो तो कोई ये भी नहीं पूछता की भाई जाओगे कैसे।

फिलहाल तो मै फसा हुआ था। एक तो सुनसान सड़क, ऊपर से घुप अंधेरा। कोई उपाय नहीं सूझ रहा था, तभी सामने से कुछ गुजरा। 

........कुछ और नहीं वो सड़क का कुत्ता था जिसने मुझे लगभग मर ही डाला था। अब बारिश में भीगते हुए तेज क़दमों से आगे बढ़ रहा था। बस यही मना रहा था कि आगे नुक्कड़ की चाय वाली दुकान खुली मिल जाए।

कुछ ही देर में मै वो सड़क पर कर चुका था और अब बारिश भी थम गई थी। नुक्कड़ की दुकान पे चाई पी तो थोड़ी गर्माहट महसूस हुई। तभी वह 1 बाइक वाला आया। मेरे साथ वो भी चाय पीने लगा। थोड़ी देर इधर उधर की बात के बात पता चला वो उधर से ही गुजरने वाला है जिधर मेरा मकान परने वाला है। 

मैंने हिचकते हुए उससे लिफ्ट मांगी। उसने मुझे ऐसे घूरा जैसे मै उससे उसकी चाय की प्याली से आधी कप चाय मांग ली हो। चाय वाला ये सब देख रहा था। उसने भी थोड़ी मेरी मदद कर दी और बोला ये भला इंसान है, पता नहीं आज इतनी देर कैसे लगा दी।बाइक वाले ने थोड़ी देर कुछ सोचा फिर बोला चलो मै ड्रॉप कर देता हूं फिर आगे निकल लूंगा। 

तभी मेरे में शंका हुई कि यार मैंने लिफ्ट तो ले ली, कहीं ये कोई बदमाश न निकले और जितनी बातें हुए वो सारी झूठी ना हो।

मनुष्य की प्रवृति ही ऐसी है। अगर कुछ मिले तो उसमे भी नुक्स निकालने से पीछे नहीं रहते। पर मैंने हिम्मत जुटाई और उसके साथ हो लिया। मैं मन में यही सोच रहा था कि मेरे पास तो कुछ है भी नहीं। पॉकेट में कुछ पैसे हैं जो डेली यूज के है। एटीएम तो आज लाया नहीं और लैपटॉप ऑफिस में ही है। अगर कुछ गड़बड़ हुई तो घर के जगह कहीं और उतर जाऊंगा और वहां से पैदल घर चला जाऊंगा।


लेकिन ये सब केवल मेरी सोच ही थी। हुए ऐसा कुछ भी नहीं। उसने मुझे सही सलामत घर तक ड्रॉप किया।अब मै अपने घर में था और सोच रहा था दुबारा ऐसा काम हुआ तो घर से करने के लिए बॉस से ऑर्डर ले लूंगा। बहुत लोग तो करते हैं उसमे एक मेरा भी नाम जोड़ दिया जायेगा। लेकिन सुरक्षित तो रहूंगा।



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