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Rajeev Kumar Srivastava

Inspirational

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Rajeev Kumar Srivastava

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मां – एक सारथी

मां – एक सारथी

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मां, एक ऐसा शब्द है जिसको जितना पढ़ा जाए उतना ही कम है। बच्चे के जन्म से पहले लेकर, अपने बुढ़ापे तक, मां के लिए उसका बच्चा हमेशा बच्चा ही रहता है।ऋषि मुनि मां को प्रथम गुरु का दर्जा देकर गए हैं। लेकिन आज की इस कलयुगी दुनिया में क्या हम ऐसा देखते हैं?


जाने अंजाने, चाहे अनचाहे, मां तो मां ही रहती है लेकिन क्या बच्चे राम बन पाए। हर मां ये सोचती है की मेरा बेटा राम जैसा बनेगा लेकिन क्या हर बेटा राम बन पाता है?


दुनिया के लिए भले ही कोई कितना बड़ा अपराधी क्यो न हो, लेकिन अपने मां के लिए वो हमेशा ही एक अच्छा बच्चा ही रहता है।

मां अपने बच्चे को दुनिया के नजरों से नही अपनी नजरों से देखती है, तब जाकर वो ये फैसला लेती है की मेरा बच्चा कितना अच्छा है और कितना खराब।

ये टॉपिक हमेशा से ही डिस्कशन का प्वाइंट रहा की मां सभी बच्चों को सिखाती तो अच्छा ही है लेकिन फिर भी बच्चे गलत राह कैसे पकड़ लेते हैं।


मां ओ मेरी मां।

आंख खुले तो भजन सुनाती, सोने के समय तू है लोरी गाती।

सबके बाद तू है सोया करती,

सबसे पहले तू है जाग जाती।

कैसा है ये तेरा वादा, हर किसी को है तू खुशी पहुंचती,

जब गम में तू होती है, तो सभी तेरे पास हो,

ऐसा भी तो तू नही मनाती।

मां ओ मां,

कैसा है ये तेरा वादा।

                  


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