Deepak Dixit

Abstract

4  

Deepak Dixit

Abstract

वक्त की मार

वक्त की मार

8 mins
24.7K


"तुम ?"

राजेश के मुह से अनायास ही उस वक्त निकला जब वह पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ एक भव्य और विशालकाय इमारत में प्रवेश कर रह था , जिसके प्रवेश-द्वार को एक सुरक्षाकर्मी बड़ी नफासत से खोल कर अभिवादन की मुद्रा में वहां खड़ा था।

सुरक्षाकर्मी के चेहरे के भाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ या उसने इसे दिखने नहीं दिया। उधर प्रवेश द्वार पर राजेश के एक पल ठहर जाने से बाकी लोगों के आगे जाने के लिए व्यवधान उत्पन्न हो गया था अत: राजेश ने अपने कदम तेजी से हाल की तरफ बढ़ा दिए।

सुधीर नाम का वह सुरक्षाकर्मी उन लोगों के अंदर जाते ही फफक-फफक कर रो पड़ा। सात सालों बाद उसका बिछड़ा हुआ जिगरी दोस्त राजेश मिला पर वो भी किन हालातों में !

सुधीर और राजेश का बचपन और जवानी एक ही गॉंव में साथ-साथ बीती थी। दोनों पड़ोसी भी थे। गॉंव की पगडंडियों और खेतों की सैर करते हुए दोनों बड़े हुए। दोनों के परिवार भी एक ही परिवार की तरह मिल जुल कर रहते थे और अपने दुःख-सुख को एक दूसरे से बांटते थे। दोनों के घरों और खेतों के बीच में एक नाम मात्र की दीवार थी जो दोनों परिवारों को जोड़ने का काम करती थी। उनके भाईचारे के किस्से दूर-दूर तक मशहूर थे। शादी भी दोनों ने एक ही मंडप के नीचे की थी।

दोनों की सीधी-सादी जिन्दगी आराम से चल रही थी। सुबह-सुबह दोनों खेत पर निकल जाते और हाड़-तोड़ मेहनत करते, अनाज उगाने के लिए। दिन का खाना घर से आ जाता था और शाम ढलने पर वापस घर आकर परिवार के साथ समय बिताते। कभी-कभी जब खेत में कोई ख़ास काम नहीं होता तो दोनों गांव के चौपाल में बैठ कर और लोगों से बतियाते। गाँव के बाहर उनका आना जाना कभी-कभार ही होता था। बस बीज खरीदने या अनाज बेचने या फिर जब आस पास कहीं कोई मेला लगता था तो ही निकलना होता था।

फिर अचानक वह प्रलयकारी दिन आया जब वह अपने गॉंव से और परम मित्र से जुदा हुआ था। कुछ दिन पहले गांव में खबर फ़ैली थी की बहुत से लोगों की जमीन (खेत) सरकार एक हाइवे बनाने के लिए ले लेगी और उन्हें उसके एवज में मुआवजे की मोटी रकम मिलेगी। दोनों का ही नाम उन लोगों की सूची में शामिल था और एक दिन सरपंच ने एक बड़ी सी पोटली में बाँध कर नोटों की गड्डियां उन्हें देकर कुछ कागजों पर हस्ताक्षर लिए। एक पल में वह खेत और गांव पराया हो गया जिसमें उनकी पूरी ज़िंदगी बीती थी।

इस दिन के लिए घर में तैयारी तो पिछले दो महीनों से चल रही थी। उसका बड़ा बेटा हाई स्कूल पास कर चुका था और उसे अब आगे पढाई के लिए शहर में जाना ही था इसलिए उन लोगों ने भी शहर में ही रहने का मन बना लिया था। अपने इस फैसले से घर में सब खुश थे क्योंकि शहर की बातों की अभी तक तो गॉंव में चर्चा ही सुनी थी और अब वे लोग भी उनका लुत्फ़ उठा सकेंगें। शहर की कई मंजिल की ऊँची-ऊँची इमारत में रहने पर वे लोग असहज महसूस करते अत: शहर में कोई बंगलानुमा मकान लेना तय हुआ पर उनकी कीमत सुन कर उनके होश उड़ गए। बात किराये के मकान में रहने पर जाकर जमी जिसे सबने मन मसोस कर स्वीकार कर लिया। बच्चों का दाखिला एक आलीशान स्कूल में हो गया और उन्हें घर से लेने बस आती थी।

शहर आकर सुधीर के पास कुछ करने को न था ऊपर से यहाँ कर और फ्रिज, टीवी, वाशिंग-मशीन और मोबाईल फ़ोन जैसी मशीनें लेने के बाद ज़िंदगी बड़ी आरामदायक हो गयी थी। घर के काम के लिए और अड़ौसीपड़ौसी पर रौब डालने के लिए उसने दो-दो नौकर भी रख लिए थे। धीरे-धीरे उसकी जान पहचान बढ़ने लगी और समय बिताने के लिए उसने ताश खेलना शुरू कर दिया। ताश के खेल में वह इतना डूबा कि कब जुआ और शराब उसकी ज़िंदगी का हिस्सा हो गए उसे पता ही नहीं लगा। यूँ तो कभी-कभार गांव में भी वह एक दो घूँट मार लेता था और पत्ते भी खेल लेता था पर यहाँ उसे अकेलापन मिटाने के चक्कर में इस चीजों की लत ही पड़ गयी थी। उसके पास पैसों का एक भरा हुआ घड़ा था जो बूँद-बूँद कर खाली हो रहा था पर रोज नयी चीजों और दोस्तों के मिलने के रोमांच में वह इस खाली होते घड़े को देख नहीं पा रहा था। उसे तो लगता उसके पास जैसे अलादीन का चिराग था और वह जब चाहे बैंक से पैसे निकाल कर खर्च कर डालता।

उधर बच्चों की फीस लगातार बढ़ती जा रही थी और उनकी नयी-नयी फरमाइश भी ऐसी-ऐसी चीजों की आती गईं जो उसकी समझ से परे थी, पर वो उन सब को बिना सोचे समझे पूरा करता गया। यह सब देख कर उसकी पत्नी भी कहाँ रुकने वाली थी ,उ सने भी घर में तरह-तरह की महंगी चीजें इकठी करना शुरू कर दिया सिर्फ दिखावे के लिए। सबका वक्त अच्छा गुजर रहा था पर शायद अच्छे दिन बहुत देर तक नहीं टिकते।

 मंजे हुए जुआरियों ने उसके अनाड़ीपन का फायदा उठाया। पहले-पहले उसे खूब जिता कर आसमान पर बिठा दिया और फिर जीत के साथ हार का स्वाद भी कराया और आहिस्ता-आहिस्ता दांव पर लगी रकम बड़ी और बड़ी होती गयी। जुआ अकसर उसके घर पर ही होता और महँगी शराब और खाने का बिल भी उसके मत्थे ही मढ़ा जाता। इस दलदल में वह धंसता ही चला गया। जब तक होश आया चिड़ियाँ खेत चुग चुकी थी। बच्चों की कालेज की पढ़ाई के लिए जब एक मोटी रकम की जरूरत थी तो उसका बैंक खाली हो चुका था। बैंक से उधार मिलने की भी कोई सम्भावना नहीं थी क्योंकि न तो उसके पास कोई जमीन जायदाद थी और न ही वह कोई काम करता था। जिन जुआरी दोस्तों के साथ दिन रात गुजरते थे ,कंगाल होने पर उनमें से कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आया। पत्नी के गहने बेच कर काम चलाना पड़ा।

जब हकीकत से सामना हुआ तो बड़ा बंगला छोड़ कर एक छोटा सा मकान किराये पर ले लिया और पत्नी के समझने पर पास के 'नशा मुक्ति केंद्र' में भी जाना शुरू कर दिया। इस केंद्र के संस्थापक एक भले आदमी थे जिनकी मदद से उसे एक कंपनी में सुरक्षा कर्मी का काम मिल गया और झटका खाने के बाद धीरे धीरे गृहस्थी की गाड़ी फिर से चल निकली।

ये सब पुरानी बातें उसकी यादों में एक झोंके की तरह आती चली गयी। वह अपने आप को बड़ा असहाय महसूस कर रहा था। काम में उसका मन नहीं लगा और छुट्टी लेकर वह समुद्र के किनारे जाकर बैठ गया। शाम होने पर भारी कदमों से घर की तरफ चल दिया।

वहां जाकर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। राजेश अपने चिर-परिचित अंदाज में उसकी पत्नी के साथ बतिया रहा था। उसे देखते ही वह उठ खड़ा हुआ और प्रेम से गले लगाया और बोला, "ड्यूटी छोड़ कर कहाँ चले गए थे? हमें चिंता हो रही थी। तुम्हारे ऑफिस से घर का पता निकलवा कर फुर्सत मिलते ही मैं यहाँ आया हूँ।

वर्षों बाद दोनों मित्रों का मिलना हुआ।आँखों ही आँखों में एक दूसरे से शिकवे शिकायत की और उलाहना दी और फिर सारे बंधन तोड़ कर गंगा जमुना की धारा भी उन्हीं आँखों से बह निकली। रात खाने के साथ सुधीर ने अपनी रामकथा कह सुनायी और राजेश से उसके बारे में पूँछा। उसने धीरे स्वर में सोच-सोच कर बताना शुरू किया,"जब हमें अपनी जमीन से अलग होना पड़ा तो मैंने सोचा कि खेती के अलावा तो मैं कुछ जानता ही नहीं ! कहाँ जाऊँगा ? क्या करूंगा? एक मोटी रकम तो हाथ में आ रही है पर आगे कुछ सूझ ही नहीं रहा था। तभी मैंने रामदीन की परेशानी के बारे मं सुना जो मेरा दूर का रिश्तेदार था और कुछ दूरी पर एक गांव में रहता था। इस बार फसल अच्छी न होने से वह महाजन का ब्याज नहीं चुका पा रहा था और महाजन उसका खेत हड़पना चाहता था। उसका खेत काफी बड़ा था जिसकी देखभाल वह अकेले नहीं कर पा रहा था ,ऊपर से कर्जे ने उसकी कमर तोड़ रखी थी। मैंने सोचा क्यों न रामदीन की जमीन पर खेती की जाये। इससे उसकी मदद भी हो जाएगी और मुझे भी अपना पुश्तैनी काम करने का मौका मिल जायेगा। मैंने रामदीन का कर्ज चुका कर उसकी जमीन को महाजन से छुड़ा लिया और इस समझौते के तहत उसने अपना आधा खेत मेरे नाम कर दिया।

हम सब जाकर उसी गांव में बस गए। वह खेत बड़ा उपजाऊ था। रामदीन गरीबी की वजह से उसकी देख भाल नहीं कर पा रहा था। मैंने बैंक से लोन पर ट्रेक्टर लेकर खेती शुरू कर दी और चार भैंस लेकर एक छोटी डेरी भी खोल दी जो अच्छी चल निकली। तीन चार साल में हमारी गिनती गांव के बड़े लोगों में होने लगी। बच्चों का दाखिला पास के एक कालेज में हो गया था और उन्होंने धीरे धीरे मुझे कम्प्यूटर और इंटरनेट पर काम करना सीखा दिया जिससे नयी-नयी सरकारी योजनाओं और खेती करने के वैज्ञानिक तरीकों की जानकारी मिलती गई और हमारी काया पलट हो गयी। मेरी जानकारी के दम पर गांव वालों का भी भला होने लगा और सबने मिल कर मुझे जिद करके सरपंच बना दिया। सरपंच बन कर मेरा शहर में काफी आना जाना होने लगा और धीरे-धीरे एक राजनैतिक पार्टी की तरफ मेरा झुकाव हो गया और मैंने उनके लिए काम करना शुरू कर दिया। यहाँ भी किस्मत ने मेरा साथ दिया और अब अगले महीने मैं विधायक का चुनाव लड़ने जा रहा हूँ। उसी सिलसिले में यहाँ आया था कि तुमसे मुलाकात हो गयी।"

उसके जाने के बाद सुधीर अपने पत्नी से बोला,"क्या किस्मत पायी है राजेश ने! कुछ साल पहले हम दोनों साथ-साथ थे और अब वो कहाँ और हम कहाँ!"

पत्नी ने जबाब दिया," किस्मत का रोना अब छोड़ दो। उसके सामने भी वही परिस्थिति थी, जब गांव छोड़ना पड़ा था और तुम दोनों के पास लगभग बराबर ही पैसा था। पर उसने उस पैसे का उपयोग दूसरों की मदद करने और अपने काम को नए सिरे से शुरू करने में किया। वहीं तुमने सिर्फ पैसा खर्च करने के बारे में और दिखावा करने के बारे में ही सोचा। इस कहानी का यही अंत होना था। पर अब तो संभल जाओ और नए सिरे से जिंदगी शुरू करो।"

सीधे ढंग से कही गयी सटीक बात सुधीर की समझ में आ गयी। अगले ही दिन उसने राजेश की मदद से एक सम्मानित नौकरी का इंतजाम कर लिया। अब वह वक्त की मार अच्छे अच्छों को बदल देती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract