Deepak Dixit

Inspirational

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Deepak Dixit

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ऐ दिल तू जी ज़माने के लिए ..

ऐ दिल तू जी ज़माने के लिए ..

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एक बार एक लोभी व्यक्ति रात में एक गड्ढे में गिर गया। सुबह हुयी तो वहां जा रहे एक एक युवक राहगीर से उसने निकलने के लिए मदद माँगी। उसे ऊपर लेने के लिए राहगीर ने अपना हाथ बढ़ाया और बोला, ‘बुजुर्गवार, जरा अपना हाथ तो दीजिये’ इस पर वो महाशय अपना हाथ तक देने को राजी न हुए और उन्हें बाहर निकालना मुश्किल हो गया। तभी वहां से गुजरते हुए एक अन्य व्यक्ति ने जो उस लोभी का परिचित भी था ये नज़ारा देखा। उसने बड़े इत्मीनान से अपना हाथ बढाया और बोला, ‘ दोस्त, लो मेरा हाथ पकड़ लो’। इस पर उस जनाब ने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया और फिर उसे बाहर खींच कर निकाला जा सका। इस पर उस युवक ने झल्लाते हुए कहा की उसने भी तो वही बात कही थी पर उसका असर क्यू नहीं हुआ। उस आदमी ने समझाया, बेटा मैं इन्हे अच्छी तरह जानता हूँ।

ऐसी कोई भी बात जिसमें इन्हें कुछ देना पड़ता हो इनको सुनायी ही नहीं देती। ये सिर्फ लेना जानते है, देना इनके स्वभाव में नहीं। इसलिए जब तुमने इनसे हाथ देने की बात की तो इन्होने नहीं सुना पर मेरे हाथ लेने की बात आसानी से इनकी समझ में आ गयी। ये कथा लोभियों पर एक व्यंग हो सकती है पर अगर ध्यान से देखें तो शायाद हमारे और आपके जीवन का सच भी इससे मिलता जुलता ही है। समाज में हर उस बात पर बेहिसाब जोर दिया जाता है जिस को करने से हमारे पास कुछ आता है फिर वो चाहे धन हो,कोई और चीज हो, सम्मान हो या पद। किसी को कुछ देने की बात आती है तो अक्सर हम झिझक जाते हैं।  जब हम किसी और को कुछ देते हैं जिसकी उसे जरूरत है तो हम एक अदभुद घटना के माध्यम और साक्षी बनते है। ये घटना है किसी के तृप्त होने की, किसी के विकास की किसी की जिन्दगी के सँवरने की।

यूँ तो दान की महिमा किताबों में अक्सर लिखी रहती है पर जिन्दगी में हम उसे किताबी बात समझ कर टाल देते है। आज हम जो भी हैं किसी न किसी के कुछ न कुछ देने के वजह से। बचपन में हमारा एक एक निवाला, एक एक अक्षर,एक एक थपकी, एक एक शाबासी किसी ने हमें दिया था हमने खरीदा नहीं था। पर देने में छिपे सुख का महत्त्व अक्सर कुछ देर से ही समझ आता है। बचपन में हम समझ नहीं पाते,जवानी में परवाह नहीं करते और बुढ़ापा आने तक देर हो चुकी होती है।

कुछ लोग किसी को अगर कुछ देते हैं तो साथ साथ जता भी देते है या फिर याद रखते है जिससे जरूरत पड़ने पर हिसाब किताब पूरा कर सकें। ऐसे में देना मात्र एक रस्म बन कर रह जाता है। श्रेष्ठ किस्म के दान के लिए कहावत है, ‘ नेकी कर और दरिया में डाल’ यानी अच्छा काम करके उसे भुला देना चाहिए।


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