Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Padma Agrawal

Drama

3  

Padma Agrawal

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वजूद से परिचय

वजूद से परिचय

6 mins
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 ‘’मम्मीमम्मी, भूमि ने मेरी गुड़िया तोड़ दी।‘’ मुझे नींद आ गई थी। भैरवी की आवाज से मेरी नींद टूटी तो मैं दौड़ती हुई बच्चों के कमरे में पहुंची। भैरवी जोर जोर से रो रही थी, टूटी हुई गुड़िया, एक तरफ पड़ी थी।

   मैं भैरवी को चुप कराने लगी तो मुझे देखते ही भूमि चीखने लगी थी,’’हां हां यह बहुत अच्छी है , खूब प्यार करिये इससेमैं ही खराब हूं मैं ही लड़ाई करती हूं मैं अब इसके सारे खिलौने तोड़ दूंगीं।‘’

भूमि और भैरवी मेरी जुड़ुआ बेटियां हैं। यह इनकी रोज की कहानी है। वैसे दोनों के बीच प्यार भी बहुत है। दोनों एक दूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकतीं।

मेरे पति ऋषभ आदर्श बेटे हैं। उनकी मां ही उनके लिये सब कुछ हैं, पति और पिता तो वह बाद में हैं। वैसे ऋषभ मुझे और मेरी बेटियों को बहुत प्यार करते हैं ,परंतु तभी तक, जब तक उनकी मां प्रसन्न रहें यदि उनके चेहरे पर एक पल को भी उदासी छा जाये तो ऋषभ क्रोधित हो उठते। तब मेरी और बेटियों की आफत आ जाती थी।

   शादी के कुछ दिनों बाद की बात है , मां जी कहीं गईं हुईं थीं, ऋषभ ऑफिस गये थे, मैं घर में अकेली थी, मांजी और ऋषभ को सरप्राइज देने के लिये मैंने कई तरह की चीजें बना डालीं थीं।

परंतु यह क्या मां जी ऋषभ के साथ जब घर आईं तो सीधे किचेन में जा पहुंची थीं, फिर वहीं से जोर से चिल्लाईं ,’’ ये सब बनाने को तुमसे किसने कहा था? “

मैं खुशी खुशी बोली ,’’ मैंने अपने मन से बनाया है।‘’

वे बड़बड़ाती हुई अपने कमरे में चली गईं और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। ऋषभ भी चुपचाप ड्राइंगरूम के सोफे पर लेट गये थे। मैं समझ नहीं पा रही थी कि मुझसे क्या गल्ती हुई है, मेरी खुशी काफूर हो गई थी।

ऋषभ मुझसे क्रोधित स्वर में बोले,’’ तुमने अपने मन से खाना क्यों बनाया ? “

मैं गुस्से में बोली,’’ क्यों क्या यह मेरा घर नहीं है। मैं अपनी इच्छा से खाना भी नहीं बना सकती ?’’

मेरी बात सुनकर ऋषभ जोर से चिल्लाये,’’नहीं,यदि तुम्हें इस घर में रहना है तो तुम्हें मां की इच्छानुसार चलना होगा। यहां तुम्हारी मर्जी नहीं चलेगी तुम्हें मां से माफी मांगनी पड़ेगी।‘’

मैं रो पड़ी। मैं गुस्से से उबल रही थी कि सब कुछ छोड़छाड़ कर अपनी मां पापा के पास चली जाऊंलेकिन मां पापा का उदास चेहरा आंखों के सामने आते ही मैं मां जी के पास जाकर बोली ,’’ मां जी मुझे माफ कर दीजिये, आगे से कुछ भी अपने मन से हीं करूंगी।‘’

मैंने मांजी के साथ समझौता कर लिया था सभी कार्यों में उनका निर्णय सर्वोपरि रहता। मुझे कभी कभी गुस्सा बहुत आता मगर घर में शांति बनी रहे इसलिये खून का घूंट पीकर रह जाती।

 सब कुछ सुचारु रूप से चल रहा था कि अचानक हम सबके जीवन में तूफान आ गया एक दिन ऑफिस में मैं चक्कर खाकर गिर गई और बेहोश हो गई डॉक्टर को बुलाया गया , तो उन्होंने चेक अप करके बताया कि वह मां बनने वाली हैं ।

 वहां पर सभी मुझे बधाई देने लगे, मगर ऋषभ और मैं दोनों ही परेशान हो गये कि अब क्या किया जाये ?

तभी मांजी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा,’’ तुम्हारे बेटा नहीं था, उसी कमी को पूरा करन के लिये भगवान् ने यह अवसर दिया है।‘’

मांजी खुशी से फूली नही समा रहीं थीं वह अपने पोते के स्वागत् की तैयारियों में जुट गईं थीं।

मां जी मुझे अब नियमित चेकअप के लिये डॉक्टर के पास लेकर जाया करतीं। चौथे महीने मुझे कुछ परेशानी हुई तो डॉक्टर के मुंह से अल्ट्रासाउन्ड करते समय अचानक निकल गया कि बेटी तो पूरी तरह से ठीक है और मां को भी ऐसा कुछ नहीं है यह दवा तीन दिन खा लीजिये आराम हो जायेगा।

मांजी ने डॉक्टर की बात सुन ली थी , बस फिर क्या था ,घर आते ही फरमान जारी कर दिया कि दफ्तर से छुट्टी ले लो और डॉक्टर के पास जाकर गर्भपात करवा लो मांजी का पोता पाने का सपना जो टूट गया था। मैंने ऋषभ को समझाने का प्रयास किया , परंतु मां के भक्त बेटे ने डॉक्टर के पास जाकर गर्भ से मुक्ति पाने की जिद् पकड़ ली थी। आखिर में वो मुझे डॉक्टर के पास ले ही गये। मैं रोती बिलखती रही लेकिन उनके कान पर जूं न रेंगी।

डॉक्टर बोलीं,’’ आप लोगों ने आने में देर कर दी है ,अब मैं गर्भपात की सलाह नहीं दे सकती।‘’

अब मांजी का व्यवहार मेरे प्रति बदल गया था व्यंगवाणों से मेरा स्वागत होता एक दिन बोलीं कि बेटियों की मां तो एक तरह से बांझ ही होती है , क्योंकि वंश तो बेटे से चलता है।

अब घर में हर समय तनाव रहता। मैं भी चिड़चिड़ कर बेवजह बेटियों को डांट कर अपना मन हल्का कर लेती।ऋषभ मांजी के हां में हां मिलाते, मुझसे ऐसा व्यवहार करते जैसे इस सबके लिये अकेले मैं दोषी हूं। वो बात बात पर मुझ पर चीखते चिल्लाते , जिससे मैं परेशान रहती।

एक दिन मांजी किसी अशिक्षित दाई को लेकर आई और फिर मुझसे बोलीं,’’तुम अपने ऑफिस से दो तीन दिन की छुट्टी ले लोयह बहुत एक्सपर्ट दाई है , इसका तो रोज का यही काम है , यह दो घंटे में तुम्हेंइस बेटी से छुटकारा दिला देगी।‘’

उनकी बात सुनकर मैं सन्न रह गई अब तो मुझे अपने जीवन का ही खतरा सामने दिखाई दे रहा था। मैं ऋषभ के आने का इंतजार करने लगी , जब वह ऑफिस से आये तो मैंने उन्हें सब बात बताई।

ऋषभ थोड़े गंभीर तो हुये किन फिर धीरे से बोले, ‘’ मांजी नाराज हो जायेंगीं , इसलिये उनका कहना तो मानना ही पड़ेगा।‘’

इस दिन मुझे कायर ऋषभ से घृणा होने लगीअपने दब्बूपन पर भी गुस्सा आने लगा कि वह मुखर होकर क्यों नहीं अपने पक्ष को रखती मैं क्रोध से थर थर कांप रही थी बिस्तर पर लेटी तो नींद कोसों दूर थी।

ऋषभ बोले कि परेशान दिख रही होसो जाओ सुबह सब ठीक हो जायेगा ।

मैं मन ही मन सोचने लगी कि ऋषभ इतने डरपोक क्यों हैं मांजी का फैसला क्या मेरे जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण है मेरा मन मुझे प्रत्ताड़ित कर रहा था मुझे अपने चारो ओर उस मासूम का करुण क्रंदन सुनाई पड़ रहा थामेरा दिमाग फटा जा रहा था मुझे हत्यारी जैसा बोध हो रहा था बहुत हुआ बस अब और नहींसोच कर विरोध करने को मचल उठी कि नही मेरी बच्ची अब तुझे इस दुनिया में आने से कोई नहीं रोक सकतातुम इस दुनिया में अवश्य आओगी

मैंने निडर होकर निर्णय ले लिया था यह मेरे वजूद की जीत थी अपनी जीत सोच स्वतःही इतरा उठी मैं निश्चिंत हो गई और प्रसन्न होकर गहरी नींद में सो गई।

सुबह ऋषभ ने आवाज दी,’’ उठो , आज सोती ही रहोगी क्यामांजी आवाज दे रही हैं , दाई आ गई है जल्दी जाओ नहीं ,मांजी नाराज हो जायेंगीं।‘’

     मेरे रात के निर्णय मुझे निडर बना दिया था। अतः मैंने उत्तर दिया कि मुझे सोने दीजिये आज बहुत दिनों के बाद चैन की नींद आई है। मांजी कह दीजिये कि मुझे किसी दाई वाई से नहीं मिलना है।

तब तक मांजी खुद मेरे कमरे में आ चुकी थीं। वह और ऋषभ दोनों ही मेरी धृष्टता पर हैरान थे। मेरे स्वर की दृढता देख कर दोनों की बोलती बंद हो गई थी। मैं आंखे बंद करके उनके अगले हमले का इंतजार कर रही थी लेकिन यह क्या दोनों जन आपस में खुसुर फुसुर करते हुये कमरे से जा रहे थे।

भैरवी और भूमि मुझे सोया देख कर मेरे पास आकर लेट गईं थीं। मैंने दोनों को अपनी बाहों में समेट कर खूब प्यार किया। दोनों की मासूम हंसी मेरे दिल को छू रही थी। मैं खुश थी मेरे मन से डर हवा हो चुका था हम तीनों साथ साथ खुल कर हंस रहे थे।

ऋषभ को कुछ नहीं समझ आ रहा था कि रात भर में इसे क्या हो गया। अब मेरे मन न तो मां जी का खौफ था ना ऋषभ का और ना ही घर टूटने की परवाह थी। मैं हर परिस्थिति से लड़ने को तैयार थी।

यह मेरे स्वत्व की विजय थी जिसने मुझे मेरे वजूद से परिचय करवाया था।


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