विश्वास की शक्ति
विश्वास की शक्ति
मैंने प्रांत की प्रतियोगिता परीक्षा का इम्तिहान दे दिया था। किसी को बताया नहीं था। चुपचाप फ़ॉर्म भरा, अपने से तैयारी की, और इम्तिहान दे आयी। कुछ पता नहीं था कि सफल हो पाऊंगी या नहीं।
ये एक बार बड़े भैया के यहाँ मिलने गए वहाँ बातों ही बातों में मेरे बारे में भैया से बताया कि इसको प्रतियोगिता परीक्षा का इम्तिहान दिलवा दिया है।
भाई ने कहा,” यह आपने क्या किया, यह आ गई तो क्या इससे नौकरी करवाओगे?”
ये बोले,” इनका मन था, बैठवा दिया, कहाँ आएंगी”।
भाई बोले,” यह तो आ जाएगी, जब बैठी है तो ज़रूर आएगी। “
भाई का अपने पर यह विश्वास देखकर मैं हतप्रभ रह गई। मैंने इम्तिहान तो दे दिया था पर मुझे उम्मीद नहीं थी। जितनी पढ़ाई करनी चाहिए थी उतनी नहीं हुई थी। कुछ पेपर एकदम नए थे। एक पेपर जनरल साइंस का था, साइंस हमने कभी स्कूल में भी नहीं पढ़ी थी ।एक अन्य पेपर जनरल इंग्लिश का था, जिसमें सारी व्याकरण एवं निबंध था। दोनों ही पेपर कठिन लग रहे थे। साइंस तो समझ में ही नहीं आती थी। पिछले सालों के प्रश्नोत्तर मंगाकर उसके आधार पर साइंस की तैयारी की थी।
भैया का अपने ऊपर इतना विश्वास देखकर मुझे लगा कि मुझे तैयारी और अच्छे से करनी चाहिए थी। भैया का मेरे ऊपर कितना विश्वास है। यह विश्वास में बनाए रखना चाहती थी।
ख़ैर अब तो कुछ नहीं हो सकता था। पर इंटरव्यू अभी बाक़ी था ,मैंने सोचा कि इंटरव्यू की तैयारी करना मेरे हाथ में है, मैं पूरी तैयारी करूँगी और मुझे इंटरव्यू अच्छे से देना है। उसमें क्या किताबें पढ़नी हैं, मुझे पता नहीं था। फिर भी मैंने रोज़ न्यूज़ पेपर पड़ना शुरू किया, ख़बरें पढ़नी और नोट करनी शुरू कीं जिससे कोई भी सवाल आ जाए तो छूटे नहीं, मुझे उत्तर मालूम हो। क्योंकि जनरल नॉलेज का भी एक पेपर था।
मैंने अपनी अंग्रेज़ी भी सुधारी। पता चला कि इंटरव्यू अंग्रेज़ी में देते हैं। मैं अंग्रेज़ी पढ़ लिख लेती थी पर बोलने का अभ्यास नहीं था। कभी बोलने का मौक़ा ही नहीं पड़ा तो अभ्यास कैसे होता। काफ़ी कोशिश करने पर भी अंग्रेज़ी बोलने में प्रवाह नहीं आया। अंत में मैंने निश्चय किया कि मैं टूटी फूटी अंग्रेज़ी नहीं बोलूँगी, हिन्दी में ही बोलूँगी। मुझे लेना है तो लें नहीं तो न लें। मेरे बस का लगातार अंग्रेज़ी में बोलना नहीं है, वह भी हर तरह के प्रश्नों का जवाब देना तो और भी कठिन है।
फिर भी मन नहीं मान रहा था। इंटरव्यू कैसे देना होता है इसके बारे में किताबें मंगाकर पढ़ीं। कॉम्पिटिशन मास्टर मंगाया, उसको पढ़ा। और अच्छे से तैयारी करने के बारे में सोचा। फिर विचार आया कि जो पहले इंटरव्यू दे चुके हैं ,सफल हो चुके हैं और नौकरी में हैं उनसे बात की जाए।
ऐसे एक सज्जन का पता मालूम करके उनसे मिलने पहुँचे और उनसे पूछा कि इंटरव्यू में क्या क्या पूछा जाता है। उन्होंने कहा कि आपके सब्जेक्ट के बारे में भी पूछेंगे आपको आपने सब्जेक्ट की तैयारी करके भी जाना चाहिए। उनकी राय तो अच्छी थी ,पर मेरे लिए मुश्किल यह आ गई कि मैंने सारा समय अंग्रेज़ी ठीक करने , और जनरल साइंस पढ़ने तथा सामान्य ज्ञान बढ़ाने मैं लगा दिया था, और अपने सब्जेक्ट को उपेक्षित कर दिया था।
पर उनसे मिलने का यह फ़ायदा हुआ कि मैंने अपने सब्जेक्ट पर भी ध्यान दिया। इंटरव्यू की डेट आ गई थी, इतना समय नहीं था कि सब किताबें देख सकूँ। जो टॉपिक आसान थे उन्हें छोड़ दिया, जो थोड़े मुश्किल लगे उन्हीं को देखा। फिर सोचा पहले परिभाषा देख लूँ, बाक़ी बाद में देखूँगी। परिभाषा ही कभी कभी चक्कर में डाल देती है। परिभाषा तो एकदम ठीक होनी चाहिए उसमें कुछ ख़ुद बनाकर नहीं बोला जा सकता। मैंने परिभाषा ध्यान से पढ़ी। अब टाइम बचा नहीं था, बाक़ी सब सरसरी निगाह से देखा। भगवान का नाम लिया और इंटरव्यू देने चली।
मैंने सोचा था कि इंटरव्यू हिन्दी में ही देना है जो होगा देखा जाएगा।
इंटरव्यू में सवाल पूछे गए, मैनें बिना हिचक विश्वास से हिन्दी में ही जवाब दिया। मुझे लग रहा था कि इस पर कुछ तो प्रतिक्रिया होगी, शायद अंग्रेज़ी में बोलने को कहेंगे। प्रतिक्रिया तो हुई पर दूसरी तरह से। पूछा गया कि आपने पेपर किस मीडियम से दिए थे, हिंदी या अंग्रेज़ी। मैं समझ गई कि मेरे हिंदी में बोलने कारण यह प्रश्न आया है। मैंने भी विश्वास के साथ उत्तर दिया ,” कुछ पेपर का मीडियम इंग्लिश था कुछ का हिन्दी।”
दुबारा प्रश्न आया कि ऐसा किसलिए? मैंने कहा,” अपना सब्जेक्ट इंग्लिश मीडियम से पढ़ा था इसलिए उसका मीडियम इंग्लिश रखा। और सामान्य ज्ञान और सामान्य विज्ञान का मीडियम हिन्दी रखा। सामान्य इंग्लिश का पेपर दो इंग्लिश में देना ही था”। मेरे उत्तर से वे संतुष्ट जान पड़े।
फिर और बातों के अलावा परिभाषा पर प्रश्न कर दिया। परिभाषाएँ मैं ठीक से पढ़कर गई थी। मैंने आत्मविश्वास के साथ उसको बतला दिया। मैंने परिभाषा का उत्तर इंग्लिश में दिया था, प्रश्न आया कि इसको हिंदी में भी बतलाइए। मैंने कहा कि “मैंने अपना सब्जेक्ट इंग्लिश में पड़ा है इसलिए हिंदी में इसका क्या अनुवाद होगा यह ठीक से नहीं बतला सकती। “ फिर भी हिंदी में क्या अनुवाद हो सकता है यह मैंने बतला दिया। मेरे उत्तर से वे प्रभावित हुए जान पड़े।
दस पन्द्रह मिनट इंटरव्यू चला और मैंने आत्मविश्वास से सभी प्रश्नों के उत्तर दिए। उत्तर देकर बाहर आयी। बाहर खड़े लोगों के जिज्ञासा भरे प्रश्नों का बिना कोई जवाब दिये मैं आगे बढ़ गई, जो पूछना चाह रहे थे कि इंटरव्यू में क्या पूछा गया।
प्रतियोगिता परीक्षा का रिज़ल्ट आया। मैंने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। भैया का मेरे ऊपर किया गया विश्वास था जिसने मुझे शक्ति दी। मैं नहीं चाहती थी कि उनका विश्वास टूटे। इसलिए जितना मैं कर सकती थी मैंने किया।
भैया के विश्वास का ही यह आशीर्वाद था कि मेरा इंटरव्यू भी अच्छा गया और मैं आशा से अधिक सफल हुई। मैंने यह प्रथम स्थान पाने के बारे में सोचा अवश्य था, यह सोचा था कि टॉप पर हमेशा स्थान रहता है।
हमें हमेशा ऊँचे सपने देखने चाहिएँ, विश्वास रखना चाहिए एवं लगन से उस ओर मेहनत के साथ बढ़ते रहना चाहिए।