विश्नोई समाज की देन
विश्नोई समाज की देन
आज कक्षा में वनों की सुरक्षा और चिपको आंदोलन के बारे में शुक्ला सर विस्तार से जानकारी दे रहे थे।
हुआ यह था कि रिसेस में कुछ विद्यार्थी पेड़ की एक डाल पकड़ कर हिला रहे थे।देखते - देखते कब वह खेल बन गया और डाल टूट कर गिर गई।यह देखकर निशा बहुत दुखी हुई।उसने सर से शिकायत कर दी।सर ने बच्चों को इकट्ठा किया।बच्चे डर गए अब सर दंड देंगे,मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ।सर ने उन बच्चों से भविष्य में ऐसा न करने और पेड़ों की रक्षा करने का वचन लिया।
इसके बाद कक्षा में आकर उन्होंने पेड़ों के संरक्षण के इतिहास के बारे में बहुत ही ज्ञानवर्धक और उपयोगी जानकारी दी।सर ने कहा," बच्चों आज हम चर्चा करेंगे एक ऐसे व्यक्ति की जिनके प्रयास से जन साधारण ने पर्यावरण के महत्व को जाना।वे थे जम्भेश्वरजी, विश्नोई समाज के संस्थापक। इनके द्वारा संस्थापित इस समाज ने जिस तरह दुनिया भर में पर्यावरण की अलख जगाई ,वह अपने आप में एक मिसाल है।विश्नोई शब्द 20 और 9 से जुड़कर बना,बीस और नौ।जम्भेश्वरजी ने इस समाज के लोगों को 29 नियमों का पालन करने की शिक्षा दी।
इन नियमों में सहकारिता,पर्यावरण के प्रति चेतना; और वृक्षों की कटाई व पशु वध पर प्रतिबंध मुुुख्य थे।प्राणिमात्र पर दया इनका मूल मंत्र था। इनका कहना था कि,' जीव दया पालनी रूख लीलू नहीं घावें।'
"सर,इसका क्या अर्थ हुआ ?"जिज्ञासा बीच में बोल पड़ी,प्रतिमा ने उसे कोहनी मार कर चुप करने का संकेत दिया।
सर बोले," जिज्ञासा होना स्वाभाविक है। इसका अर्थ है जीवों के प्रति दया रखनी चाहिए और पेड़ों की हिफाजत करनी चाहिए।"
सुमित ने कहा,"सर, हमें चिपको आन्दोलन के बारे में कुछ जानकारी नहीं है, कृप्या कुछ बतायें।"
" बच्चों , विश्नोई समाज का एक बहुत बड़ा वाक्या है जो देश दुनिया में जाना जाता है। वर्ष 1730 में यहां के महाराजा अजय सिंह ने अपने भव्य महल में लगने वाली काष्ठ के लिए खोज के आदेश दिए।राजस्थान में वृक्षों का अकाल हमेशा से रहा है, इसलिए ऐसी कोई भी जगह नहीं मिल पाई जहां वृक्षों की बहुतायत हो। खासतौर से उस दर्जे के वृक्षों की जो महल निर्माण के काम में आ सकें।राजा को सुझाया गया कि खेजड़ली गांव,जो बिश्नोई समाज का था , वहां यह उपलब्ध है। राजा ने तत्काल आदेश दिया कि उस गांव से महल के कार्य में आवश्यक लकड़ी की व्यवस्था की जाए।"सर इतिहास के उस पर के मानो साक्षी थे, उसे निहार रहे थे।
तभी उनकी एकाग्रता भंग करते हुए रोहित ने कहा,"सर,उस गांव में पेड़ इसीलिए थे क्योंकि विश्नोई समाज में पेड़ों की रक्षा का नियम था।"
"बिल्कुल सही समझे, हां,तो मैं क्या कह रहा था ? हां,तो अब जब राजा के लोग गांव पहुंचे तो उन्हें शुरुआती विरोध झेलना पड़ा। कारण साफ था, विश्नोई समाज में वनों की कटाई संभव नहीं थी।मगर राजा के आदेश की अवहेलना नहीं की जा सकती थी, इसलिए बिना किसी अनुमति के वृक्षपाटन का काम शुरू किया गया।"
"सर ऐसे में ,गांव वालेे कर भी क्या सकते थे ?"चिंतित होकर सुरभि बोली।
"ऐसा नहीं है कि वे हाथ पर हाथ रख कर बैठ गए,गांव की एक महिला अमृता देवी ने जमकर
विरोध किया और पेड़ों पर चिपक गई। उन्होंने कहा, वन काटने से पहले राजा को उनकी बलि लेनी पड़ेगी। ऐसा ही हुआ। अमृता देवी का वध कर दिया गया और उसके तत्काल बाद उनकी दो बेटियों की भी बलि चढ़ा दी गई।देखते ही देखते विश्नोई समाज के 363 वृक्ष प्रेमी जिनमें 111 महिलाएं थीं, पेड़ों की रक्षा के लिए कूद पड़े।राजा के लोगों ने उनकी बलि भी दे दी।"सर की आवाज जैसे कहीं दूर से आ रही थी।
पूरी कक्षा में सन्नाटा फैल गया।सर ने बताना जारी रखा,"इस घटना की खबर मिलते ही राजा को अपना आदेश वापस लेना पड़ा।यह घटना एक इतिहास बनी। इस पराक्रम ने खेजड़ली गांव को दुनिया भर में प्रसिद्ध कर दिया।
वनों की रक्षा के लिए इससे बड़ा आंदोलन इतिहास में न पहले हुआ था और न ही इसके बाद हुआ। जंभेश्वर जी की शब्दवाणी से वनों की रक्षा का उनका आह्वान एक इतिहास बन गया।
दुनिया के लिए यह नज़ीर थी।यही कारण था कि जब वृक्ष प्रेमी रिचर्ड बर्वे और वृक्ष मानव संस्था के संस्थापक इस घटना से प्रभावित होकर खेजड़ली गांव पहुंचे तो उन्होंने इस समाज को नमन किया।"
"सर,यह वंदनीय और अनुकरणीय है।भविष्य में हम पेड़ों को कभी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।"कोमल ने प्रण लिया।
"यह बहुत अच्छी बात है। बच्चों,यह समाज आज भी वृक्षों के प्रति गहन आस्था रखता है।यहां वनों की कटाई पर रोक एक नियम है। यहां हर घर और गांव का दायित्व है कि वह वृक्षारोपण करे। यह गांव आज उन वृक्षों से वनाच्छादित है जिन्हें खेजड़ी कहा जाता है।"
"सर ,क्या इन वनों के नाम पर ही इस गांव का नामकरण हुआ था ? सिद्धार्थ ने प्रश्न किया।
"हां, संभवतः ऐसा ही है।
इन वनों से इन्हें चारा, फल, और लकड़ी तो मिलती ही है, यह यहां की पारिस्थितिकी के लिए भी सबसे महत्वपूर्ण है।"
मोहित ने कहा,"सर,आज आवश्यकता है हम बिश्नोई समाज के वर्ष 1730 के आंदोलन को नए सिरे से संज्ञान में लें।जिस गांव ने पर्यावरण की रक्षा के लिए खुद को बलि चढ़ा दी,उनके उद्देेेश्य को आगे बढ़ाएं। आज विकास के लिए हम वृक्षों का अंधाधुंध पतन करते हैं ,आजसे वृक्षारोपण के लिए हमारे संगठित प्रयास होंगे।"
" मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई ,यह देख कर कि तुम सब ने इस संदेश को कितनी गंभीरता से लिया।एक और बात, इस समाज में एक कहावत है,' सर साठे रुख रहे तो भी सस्ता जाण' मतलब कि अगर सिर कटवा कर भी वृक्षों की रक्षा हो सके तो इसे भी फायदे का सौदा समझिए।' इस कहावत ने इस समाज को तब भी और आज भी पर्यावरण की दृष्टि से सर्वोपरि बनाया।"सर ने चर्चा को समाप्त करते हुए कहा,तो आप सब मेरे साथ दोहराइए," वन नहीं तो जन नहीं।"
सभी बच्चों के चेहरे पर अनूठे जोश से गदगद शुक्ला सर अपनी दूसरी कक्षा की ओर अग्रसर हुए।