विलुप्त होती हिंदी भाषा
विलुप्त होती हिंदी भाषा
सुबह का समय था। किशनगंज रेलवे स्टेशन पर भीड़ लगी हुयी थी बहुत सारे मुसाफिर हाथो में अपना अपना समान लिए प्लेटफॉर्म पर खड़े रेलगाड़ी आने का इंतज़ार कर रहे थे।
तब ही दूर से ट्रैन की आवाज़ सुनाई दी, जिसे सुन वहाँ खड़े लोगो के चेहरे पर एक मुस्कान उभर आयी ना जाने वहाँ खड़े लोग कबसे ट्रैन आने का इंतज़ार कर रहे थे।
ट्रैन के आते ही प्लेटफॉर्म पर खड़े लोग अपने अपने समान बीवी बच्चों के साथ अपने अपने डब्बे में चढ़ने लगे।
थोड़ी देर बाद ट्रैन ने दोबारा सी टी दे दी जो की इशारा था की ट्रैन अब चलने वाली है इसलिए सब जल्दी जल्दी अपनी सीट पर आकर बैठ गए।
ट्रैन की एक सीट पर कुछ बड़े बड़े लड़के लड़कियां जो की आपस में दोस्त और कजिन थे क्यूंकि उनके माता पिता भी उनके साथ ही थे।
वो लोग काफी मॉडर्न मालूम हो रहे थे उनके पहनावे से और अंग्रेजी बोलने की वजह से उन सब के हाथो में अपना अपना मोबाइल फ़ोन था उनका पहनावा पच्छिमी था।
लड़के लड़कियों सब ही का और यहाँ तक की उनके माता पिता का भी वो सब कही घूमने जा रहे थे।
जिस तरह से वो अंग्रेजी में बातें कर रहे थे ऐसा लग रहा था मानो कही विदेश में रह कर आ रहे है। लेकिन तभी किसी ने थोड़ी बहुत हिंदी बोली तो पता चला की वो इंडियन ही थे लेकिन जब जब वो आपस में हिंदी बोल रहे थे तब तब उनके माता पिता इतनी बुरी तरह उन्हें देख रहे थे मानो की वो किसी को अपशब्द कह रहे हो।
फिर वो ना चाहते हुए भी इंग्लिश में ही बातें कर रहे थे। वो बच्चें शायद बारहवीं के इम्तिहान के बाद कही घूमने जा रहे थे अपने परिवार के साथ क्यूंकि वो बीच बीच में इंग्लिश में एक दूसरे के साथ अपने भविष्य में करने वाली चीज़े साँझा कर रहे थे।
कोई कह रहा था की वो इंग्लैंड चला जाएगा आगे की पढ़ाई करने तो कोई कह रहा था की मैं यही भारत से ही कुछ करूंगा।
लेकिन उनके माता पिता उनके बाहर जाकर पढ़ने के सपने को सप्पोर्ट कर रहे थे लेकिन उनमे से जो बच्चें हिंदुस्तान में रहकर पढ़ाई करने की बात कर रहे थे वो अपने माता पिता से डांट खा रहे थे मानो की वो कुछ गलत काम करने का कह रहे हो।
खेर ये सब नज़ारा सामने वाली सीट पर बैठे एक पति पत्नि का जोड़ा देख रहा था जो एक दम हिंदुस्तानी लिबास पहने हुए थे। वो आदमी एक कुरता और एक धोती पहने हुए थे और उनकी पत्नि एक अच्छे कपडे की साड़ी पहने हुयी थी जो उनके जिस्म को छिपाये हुए थी और साथ में उनके दो छोटे बच्चें भी थे जो की एक लड़का और एक लड़की थे जिनकी उम्र तकरीबन 6 और 8 साल की थी।वो दोनों आपस में प्यार से आप जनाब से बातें कर रहे थे।
वो दोनों सामने की सीट पर बैठे उन लोगो को बातें करते देख रहे थे जो की बिना अपने छोटे बड़े का लिहाज किए उनसे ना जाने किस अंदाज़ में बातें कर रहे थे। जो की ये सब उनके बच्चें देख रहे थे।
सामने बैठे वो लोग उन धोती कुरता और साड़ी में बैठी दम्पति पर हॅस रहे थे, उनके पहनावे को देख कर और उनके इस तरह आपस में हिंदी में बात करने पर।
ट्रैन अपनी रफ़्तार से चल रही थी की तभी वहाँ एक बच्चा हाथ में कुछ किताबें लिए आया बेचने.
किताबें ले लो हिंदी कहानियों की किताबें ले लो, भिन्न भिन्न लेखकों की मजेदार कहानियों की किताबें और उपन्यास ले लो। और सफर का आंनद लीजिये किताबें पढ़ते हुए
ये कहता हुआ वो उस सीट के पास आ पंहुचा जहाँ वो लोग बैठे थे
"पापा एक कहानी की किताब लीजिये हमें पढ़ना हे " ट्रैन के डब्बे में बैठे उन दम्पति के बच्चों ने कहा अपने पिता से
"हाँ, साहब ले लो बाल कहानियाँ भी हे हमरे पास " किताब बेचने वाले ने कहा
"ठीक हे कोई अच्छी सी पौराणिक कथाओं की किताब दे दो जो हिंदी में हो, ताकि ये दोनों उन कहानियों को पढ़ कुछ सीख हासिल करे " उस आदमी ने कहा
"ठीक हे साहब, आपके मतलब की कोई किताब दू मेरे पास अभी कुछ उपन्यास है मुंशी प्रेमचंद्र जी का गोदान भी है मेरे पास कहो तो दे दू " किताब वाले ने कहा
"नही भैया आप बच्चों की कहानियों की किताब देदो, गोदान मैने पढ़ रखी है बहुत ही प्यारा उपन्यास है " उस आदमी ने कहा
वो आदमी किताब देकर जैसे ही आगे बड़ा, वहाँ सामने बैठे लोगो में से किसी ने पूछा " do you have english story books "
वो अनपढ़ आदमी इस तरह इंग्लिश में प्रश्न सुन थोड़ा घबरा गया और बोला " हाँ जी क्या चाहिए "
वहां बैठी एक औरत शायद उस लड़के की आंटी थी हस्ते हुए बोली " हिंदी में बोल उसे इंग्लिश समझ नही आएगी और वैसे भी ये लोकल ट्रैन का डिब्बा है इसमें इंग्लिश का नॉवेल नही मिलेगा यहाँ कौन पढ़ता होगा इंग्लिश "
"नही मैडम हमरे पास अंग्रेजी की किताबें नही है , हिंदी में है आप कहे तो निकाल कर दू " किताब बेचने वाले ने कहा
"हाँ, भैया एक किताब देना " उस लड़के ने कहा
जैसे ही उसने हिंदी की किताब खरीदना चाही तब ही वहाँ बैठे उसके पिता जो की सूट बूट पहने बैठे झट से अपने बेटे का हाथ खींच कर गुस्से से बोले " पागल हो गया है क्या, इतनी महंगी फीस देकर तुझे इंग्लिश मीडियम स्कूल से 12 वी इसलिए कराई थी की तू हिंदी की किताबें पढ़े, हम लोग तुझे क्या बनाना चाह रहे है सोच रहे की किसी तरह कैंब्रिज में दाखिला मिल जाए और ये भाई साहब है की हिंदी की किताब खरीद कर पढ़ना चाह रहे वाह साहब वाह।
"हाँ अभिषेक बेटा ये तुम क्या कर रहे थे, हम लोग तुम बच्चों की वजह से ना चाहते हुए भी घर का माहौल अंग्रेजी का बना रहे है ताकि तुम्हे आगे चल कर हम लोगो की तरह अटक अटक कर अंग्रेजी बोलने में शर्म ना आये और तुम हो की ये सब पढ़ रहे हो वैसे तुमने हिंदी सीखी कहा तुम्हारे पास सब्जेक्ट तो था नही हिंदी फिर तुमने कहा सीखी, तुम्हे पता है अगर तुम इस तरह हिंदी की किताबें पढोगे तो वो सामने जो धोती कुरता और साड़ी पहने गँवार लोगो की तरह दिखाई दोगे जो खुद तो कभी स्कूल गए नही होंगे और अपने बच्चों को भी हिंदी की किताबें खरीद कर दे रहे है इन जैसे लोगो की वजह से ही आज हमारा देश इतना पीछे है " वहाँ बैठी उसकी आंटी ने कहा
"पर मासी एक किताब ही तो थी और वैसे भी हिंदी तो हमारी मातृ भाषा है जो की हम सब को आनी चाहिए " उस बच्चें अभिषेक ने कहा कहने को तो वो उन सब से उम्र में छोटा था लेकिन उसे समझ उन लोगो से कही ज्यादा थी
"देखा तुमने आरती अपने बेटे को, हम इसे इंग्लिश स्कूल में पढ़ाकर इसके लिए क्या क्या सपने देख रहे है, हर महीने हम दोनों की सैलरी इसकी पढ़ाई पर खर्च हो जाती है ताकि इसे फ्यूचर में कोई परेशानी ना हो इंग्लिश बोलने में और ये है की हिंदी सीखने के पीछे पड़ा है लोग हसेंगे इस पर जब ये इंग्लिश मीडियम में पढ़ने के बाद भी हिंदी में बातें करेगा और जॉब इंटरव्यू भी हिंदी में देगा कोई कंपनी इसे जॉब नही देगी सब को अंग्रेजी बोलने वाले चाहिए और सही भी है इंग्लिश बोलने वाला चार लोगो में बैठने के काबिल होता है और हिंदी बोलने वाला सब हस्ते है पीठ पीछे हमेशा शर्मिंदगी से उसकी नज़रे नीचे रहती है वो देखो ऐसे होते है हिंदी में बातें करने वाले लोग सामने बैठे दम्पति की और इशारा करते हुए कहा देखो केसा धोती कुरता पहने और वाइफ को भी केसा साड़ी पहना कर ले जा रहा है और बच्चों को भी अपना जैसा बना रहा है हाथ में हिंदी की किताब देकर शेम ऑन यू अभिषेक, शेम ऑन यू आज हमारे बेटे ने हमें सब के सामने शर्मिंदा कर दिया " उसके पिता ने कहा अपनी पत्नि से
अभिषेक बेचारा उदास खड़ा था मानो उसने अपनी मातृ भाषा हिंदी की किताब खरीदने की इच्छा व्यक्त करके बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो इसलिए वो अपने कान पकड़ कर माफ़ी मांगते हुए बोला " सॉरी पापा, pleas forgive me, i will never read any hindi books in future. I promise pleas papa
forgive me. I will always talk in english "
इससे पहले उसके पापा अपनी नाराज़गी ख़त्म करके कुछ कहना चाहते तभी सामने बैठा वो आदमी उसके पास आया जो अब तक उनके द्वारा कही हर बात को सुन और समझ रहा था और हाथ जोड़े खड़े अभिषेक से कहा " बेटा आपको इन लोगो से माफ़ी मांगने की कोई ज़रुरत नही आपने कोई गलती नही की बल्कि माफ़ी तो इन सब को आपसे और इस भारत माँ से मांगनी चाहिए जो इसकी ही बोली को विलुप्त करने पर तुले है "
उस आदमी को इस तरह बोलता देख अभिषेक के पापा उठे और गुस्से में बोले " who the hell are you तेरी हिम्मत कैसे हुयी मेरे बेटे के और मेरे बीच में बोलने की तू जानता नही है मैं कौन हूँ, तुम जैसे गँवार लोगो को मुझे बहुत अच्छे से सही करना आता है "
"मैं बहुत देर से आप लोगो की बातें सुन रहा था जिस तरह आप हमारी मातृ भाषा को घृणित भरी नज़रो से देख रहे थे और उसे बोलने में भी आपको शर्म महसूस हो रही थी जिस देश में रह रहे है, कमा कर खा रहे है उसी देश की भाषा बोलने पर आपको शर्मिंदगी हो रही है, वो बच्चा जो कहने को तो आपसे उम्र में छोटा है लेकिन समझ में और सूझ बूझ में आपसे कही ज्यादा होशियार। वो अपनी मातृ भाषा को अपने अंदर ज़िंदा रखने के लिए हिंदी की किताब खरीदना चाह रहा था और आपने उसे इस तरह उसे लेने से और हिंदी बोलने और पढ़ने से मना किया की मानो वो किसी अछूत चीज को हाथ लगा रहा हो क्या आपकी नज़र में हिंदी बोलना, पढ़ना लिखना अछूत है क्या हमारे देश की मातृ भाषा अपने ही देश में बोलना अपराध है " उस आदमी ने कहा
"आखिर तू है कौन, जो इस तरह मातृ भाषा, मातृ भाषा का पाठ हमें पढ़ा रहा है, हमारे बच्चें है हम उन्हें english सिखाये, रोमन सिखाये, स्पेनिश सिखाये तू होता कौन है, हिंदी सिखाये ताकि वो भी तुम जैसा गँवार बन जाए और आगे चल कर ऐसे ही धोती कुरता और अपनी वाइफ को साड़ी पहना कर और अपने बच्चों के हाथ में हिंदी की किताब थमा कर बोले " ये लो बच्चों पड़ो अ से अनार और ज्ञ से ज्ञानी ये हमारी मातृ भाषा है इसे सीखो और मेरी तरह बन जाओ हिंदी बोलने वाले गँवार क्यूंकि ना तो इसका ही कोई भविष्य बनेगा इंग्लिश सीखे बिना और ना ही इसके बच्चों का ज़िन्दगी भर मजदूरी करता रहेगा क्यूंकि बिना इंग्लिश बोले तो कोई इसे काम पर रखेगा नही और हिंदी बोलने पर कोई इसे काम देगा नही बन कर रह जाएगा मातृ भाषा का पुजारी और ज़िन्दगी भर कोसेगा अपने आप को की आखिर हिंदी ने इसे दिया क्या इंग्लिश बोलता तो आज किसी अच्छी जगह काम कर रहा होता, जाओ जाकर अपनी सीट पर बैठो ज्यादा लेक्चर मत दो जो खुद दल दल में फसे होते है वो दूसरों को कमल तोड़ने की राय नही देते " अभिषेक के पिता ने कहा
वहाँ ख़ामोशी छा गयी थी थोड़ी देर के लिए सब लोग उन्हें ही देख रहे थे।
इससे पहले वो धोती पहने हुए आदमी कुछ कहते तब ही वहाँ एक पुलिस वाला आया और उस धोती कुरता पहने आदमी को सैलूट मारते हुए कहा " क्या हुआ सर कोई तकलीफ है आप कहे तो अगले स्टेशन से पहले ही चैन खींच कर आपको यही उतार कर गाड़ी में बैठा देते है गाड़िया पीछे आ रही है वो तो आपने ट्रैन से जाने को कहा इसलिए "
पुलिस वाले को उस आदमी से इस तरह बात करते देख वहाँ बैठे लोग हैरान रह गए तब ही वो पुलिस वाला अभिषेक के पिता से बोला " क्या हुआ है, क्यू इस तरह साहब को देख रहा है "
अभिषेक के पिता जो की कुछ समझ नही पा रहे थे पुलिस वाले से बोले " क,,,, क,,,, कौन है ये आदमी "
आदमी नही महापुरुष कहो, मैने अब तक की ज़िन्दगी में ऐसा सरकारी अफसर नही देखा जो अपने देश, उसकी संस्कृति उसकी भाषा से इतना प्यार करता हो की ठंडी गाड़ी को छोड़ कर यहाँ इस ट्रैन में सफऱ कर रहे है जानते हो ये कौन है ये है हमारे जिले के आई ए एस ऑफिसर मिस्टर विक्रांत सिसोधिया जिनका हमारे जिले की तरक्की में सबसे बड़ा हाथ है जो विदेश में रह रहे अपने माता पिता को इसलिए छोड़ आये क्यूंकि इनका देश और उसके प्रति इनके कर्तव्य ने इन्हे कभी वहाँ का वासी बनने नही दिया और अब देखे एक अंग्रेजी मुल्क को छोड़ कर ये यहाँ अपनी मातृ भूमी हिंदुस्तान लोट आये हिंदी और हिन्दुस्तानियों के बीच जहाँ इनकी मातृ भाषा हिंदी हैँ और हाँ ये पास बैठी इनकी धर्म पत्नि ड,,,, वो पुलिस वाला और कुछ कहता तभी विक्रांत साहब खड़े हो गए और बोले " अब बस भी कर जा जाकर अपना मोर्चा संभाल देख जाकर कोई मंचला किसी की बहु बेटी पर बुरी नज़र तो नही रख रहा है इसलिए ही मैं ट्रैन से जा रहा हूँ ताकि अपने साथ साथ दुसरो को भी हिफाज़त से उनके घर पंहुचा दू
"जी साहब अभी जाता हूँ " उस पुलिस वाले ने कहा और चला गया
ये सब सुनने के बाद अभिषेक के पिता की आँखे शर्मिंदगी से झुक गयी थी वो उनसे कुछ कहना चाहते थे शायद अपने किए पर माफ़ी मांगते तब ही विक्रांत जी बोले " मैं समझ सकता हूँ आप क्या सोच रहे है लेकिन परेशान होने की कोई बात नही ये सिर्फ आपकी ही सोच नही है आज कल हर हिंदुस्तानी माता पिता की यही सोच है की उनके बच्चें फर फर अंग्रेजी बोले ताकि उनका सर गर्व से ऊंचा हो सके चाहे वो अपनी मातृ भाषा से दिन बा दिन दूर होता जाए।
मैं आपको शर्मिंदा नही करना चाहता लेकिन फिर भी एक बात कहूँगा जिस तरह से आप अपने बच्चें को हिंदी किताब पढ़ने और अपनी मातृ भाषा सीखने पर गुस्सा हो रहे थे कि कही वो हम जैसा ना बन जाए जिन्हे औड़ने और पहनने का तमीज नही तो मैं आपको बताता चलू ये हमारी संस्कृति है , जो पहनावा आप लोगो को बुरा लग रहा है इसी पहनावे के साथ ही हमारे महापुरुषों ने ना जाने कौन कौन से ग्रन्थ लिख डाले और ना जाने कितनो ने कुर्बानिया देकर आज इस देश को अंग्रेज़ों से आज़ाद कराया।
आप जानते है हमारा देश दिन बा दिन क्यू पीछे हटता जा रहा है क्यूंकि हम लोग दिन बा दिन अपनी संस्कृति, अपना रीवाज़ अपनी मातृ भाषा को भूलते जा रहे है और जो लोग अभी भी इन सब चीज़ो का पालन कर रहे है ताकि हमारी संस्कृति किसी तरह बची रहे ताकि हमारी आने वाली नयी पीड़ी भी देख सके भारत और उसकी संस्कृति को उन्हें आप जैसे लोग गँवार समझते है।
आप जानते है भारत ही एक ऐसा देश होगा जहाँ अपनी मातृ भाषा हिंदी बोलने पर लोगो को गँवार , अनपढ़ , जाहिल समझा जाता है वरना हमारा पडोसी राज्य चीन वहाँ पर लोग गर्व के साथ अपनी भाषा मनदीरिन बोलते है और उसे विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा में शुमार करते है।
यहाँ इस ट्रैन में हज़ारो लोग सफर कर रहे है और बच्चें बच्चें के पास मोबाइल है क्या कोई ऐसा होगा जिसके पास मोबाइल हो और वो उसमे चैटिंग अपनी मातृ भाषा हिंदी में करता हो।
नही कोई नही होगा, भले ही लिखना ना आता हो इंग्लिश में लेकिन फिर भी उसका कीपैड इंग्लिश में ही होगा क्यूंकि अगर उसने हिंदी में अपनी मातृ भाषा में टाइप किया तो उसके दोस्त और घर वाले उसका मज़ाक बनाएंगे और कहेँगे गँवार है क्या जो हिंदी में लिख रहा है आपको पता है बाहर शहरो में रहने वाले लोग सबसे ज्यादा तर्जी अपनी जुबान को देते है।
उनके मोबाइल के कीपैड भी उनकी अपनी ही भाषा में होते है , वो भी इंग्लिश सीखते है क्यूंकि इंग्लिश एक language है जिसे सीखना एक अच्छी बात है लेकिन इस तरह अपनी मातृ भाषा को छोड़ कर , उसमे बात करने पर शर्मिंदगी महसूस करना ये गलत बात है।
आपका बेटा कही भी चला जाए लेकिन फिर भी ये हिंदुस्तानी ही कह लाएगा और इसकी मातृ भाषा हिंदी ही होगी कहने को मैं भी विदेश में पला बड़ा हूँ लेकिन मेरी जड़े यही हिंदुस्तान में है और मुझे फ़क्र है खुद को हिंदुस्तानी कहने पर अपनी मातृ भाषा हिंदी को बोलने पर
वहाँ मौजूद सब लोग उसकी बातें सुन रहे थे।
अभिषेक के पिता को भी समझ आ गया था कि वो गलत थे इससे पहले वो कुछ कहते तब ही टिकट चेकर वहाँ हाफ्ता हुआ आया और बोला " आप मैं से कोई यहाँ डॉक्टर है क्या, दरअसल आगे वाली सीट पर एक महिला को प्रस्व पीड़ा शुरू हो गयी है अचानक अगर उसका इलाज नही हुआ तो वो मर सकती है और अभी अगला स्टेशन बहुत दूर है "
"डॉक्टर भला इस ट्रैन में कौन मिलेगा " वहाँ बैठे लोगो ने कहा
"मैं हूँ MBBS डॉक्टर बताइये कहा जाना है , जो कुछ हो सकेगा मैं वो करूंगी " वहाँ बैठी एक औरत ने कहा जो कि विक्रांत साहब कि पत्नि थी।
उसके मुँह से खुद को डॉक्टर बताता सुन वहाँ बैठे सब लोग हैरान हो गए क्यूंकि उसका पहनावा और बोली देख कर नही लग रहा था कि वो एक MBBS डॉक्टर होगी जिस तरह से वो खुद को साड़ी लपेटे हुयी थी उसे देख कर कोई भी यही कहता कि ये तो गांव कि कोई गँवार होगी जो चूल्हा चोखा करती होगी।
"हाँ मेघना आप जाओ जाकर देखो किसी चीज कि ज़रूरत हो तो बताना गाड़ी पीछे आ रही है " विक्रांत साहब ने कहा
ठीक है मैं देखती हूँ, मेघना ने कहा और अपना बेग उठा कर TC के साथ चल दी।
वहाँ मौजूद और औरतों ने भी उसका साथ दिया और उस औरत ने वही एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया।
सब लोग हैरान थे।
अभिषेक और उसके परिवार ने उन दोनों से माफ़ी मांगी जो कुछ भी उन लोगो ने उनके बारे में किया तब ही मेघना बोली " माफ़ी कि कोई ज़रुरत नही उम्मीद करती हूँ आप लोगो को समझ आ गया होगा कि पढ़ लिख जाने का मतलब अपनी संस्कृति, उसके रीति रीवाज़ो उसकी मातृ भाषा को भूल जाना नही होता है जैसा कि आप लोग खुद भी भूल चुके है और अपने बच्चों को भी भूलने का कह रहे है कृप्या ऐसा ना करे अपनी मातृ भाषा को बोलने में शर्मिंदगी महसूस ना करे गर्व से कहे कि मैं हिंदुस्तानी हूँ और मेरी मातृ भाषा हिंदी है और मुझे उसे बोलने, पढ़ने लिखने में कोई शर्मिंदगी नही इंग्लिश एक language है जो सिर्फ जरूरत पढ़ने पर ही इस्तेमाल करूंगा अन्यथा अपनी मातृ भाषा में ही वार्तालाप करूंगा और दूसरों से भी उसे अपनाने को कहूँगा "
वहाँ मौजूद सब लोग समझ गए थे तभी वहाँ दोबारा किताबों वाला आ पंहुचा इस बार सब लोग अभिषेक के पिता कि तरफ देख रहे थे कि वो अब क्या करते है लेकिन उन्होंने इस बार खुद अपने बेटे के लिए एक हिंदी का उपन्यास लिया और कहा " पढ़ो बेटा क्यूंकि तुम लोगो ने ही हमारी संस्कृति और हिंदी भाषा को आगे लेकर जाना है।"
ये देख सब खुश हो गए।
