वह पत्तियों में छिपे फूलों वाला गमला
वह पत्तियों में छिपे फूलों वाला गमला
जिस समय लम्हा बीत रहा होता है उसकी अहमियत पता नहीं चलती। बात आयी गयी हो जाती है। पर पता नहीं स्मृति की कौन सी खोह में वह बात दबी रह जाती है और समय पाकर उभर आती है। ऐसा ही एक फूलों के गमले को देखकर होगा, यह पता नहीं था।
मैं जीजी के घर गई थी। उनका उद्यान फूलों से भरा था। मैं टहल रही थी कि जीजा जी भी उधर आ गए। एक फूल के पौधे को दिखाकर बोले ” देखा है यह फूल। सूरज निकलने के साथ ही यह फूल भी खिल गए हैं।" मुझे फूल दिखाई नहीं दिए। दिखी कुछ झुकी हुई पत्तियाँ लाली लिये हरे रंग की।
उन्होंने दिखाया उन पत्तियों के बीच दो श्वेत नन्ही पंखुड़ियाँ फूलों की झॉंक रहीं थी। सुंदर पुष्प था कोमल सा जो पत्तियों में छिपा सा झांक रहा था। कैसे मेरी निगाह पहले उधर नहीं गई थी। फूल वाक़ई सुन्दर व नए थे जो मैंने पहले नहीं देखे थे। उनका नाम अब याद नहीं है।
यह बात हुए कुछ समय बीत गया। जीजा जी बीमार हुए, और चल बसे। जीजी अकेली रह गईं। एक बार उनसे मिलने जाना हुआ। फिर वही मौसम था और वही फूलों का समय।
वह गमला अभी भी वैसे ही रखा था। वैसी ही पत्तियॉं वैसे ही फूल। मुझे यह शब्द याद आए,” यह देखो फूल, जो सूरज खिलने के साथ खिल रहा है। “ मैं उस गमले को और फूलों को देखती रह गई। याद का भी अनोखा विज्ञान है। क्या घटना स्मरण हो आयेगी कुछ पता नहीं चलता। इतने बरसों यह याद कहाँ दबी रही कुछ नहीं पता। पर गमले व फूलों को देख याद कौन से अतल से उभर कर आ गयी, कौन जाने। इस बीच कितना कुछ बदल गया पर यह गमला और फूल वैसे ही नवीन। इस बीच मुरझाए भी होंगे, खिले भी होंगे फिर भी नित नवीन। प्रकृति नटी नित नव नव रूप धरे, नित नयी नवीन। मानव ही कहीं खो जाता है। वह गमला नन्हे फूलों वाला “क्षणे क्षणे यन्नवताम् उपैती, तदेव रूपं रमणीयताया:”की उक्ति को चरितार्थ कर रहा था।