वह कौन था

वह कौन था

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आज मीरा को फिर से देर हो गई थी। मीरा बस का इंतजार कर रही थी साथ ही भागते वक्त की छाया उसके चेहरे पर साफ दिख रही थी। वह बेचैनी से बार-बार इधर-उधर देखती थी ।

बस स्टॉप पर भीड़ बढ़ती जा रही थी, यह आखरी बस थी। शाम ने अपना आंचल फैला दिया था कहीं-कहीं रोड लाइट भी जल उठी थी। सभी लोगों की तरह उसे भी घर पहुंचने की जल्दी थी लेकिन इतनी भीड़ देखकर उसकी धड़कनें बढ़ गई थी। भीड़ के डर से ही उसने पिछली बस छोड़ दी थी। इसी उधेड़बुन में परेशान मीरा बार- बार झांक- झांक कर देखती की बस आ रही कि नहीं- बस आ रही कि नहीं ....जबकि और यात्री मजे से अपने- अपने फोन में व्यस्त थे अब की बार उसे बस दिख गई और वह लगभग आधी सड़क के बीच आकर खड़ी हो गई । उसने तय कर लिया था कि चाहे जो हो जाए आज वह पहले बस में चढ़कर रहेगी ।

वह बार-बार अपने दोनों हाथों को भीचती, जैसे खुद को तैयार कर रही हो क्योंकि इस भीड़ के साथ बस में चढ़ना किसी युद्ध के लड़ने जैसा था।

जैसे ही बस आई ..सारे टूट पड़े। मीरा सबसे आगे थी लेकिन फिर भी जाने कैसे वह पीछे होती चली गई उसने कोशिश भी की लेकिन उसे लगा कि वह उस कथित स्वार्थी भीड़ में पिसकर रह जाएगी और बस आज भी छूट जाएगी और फिर उसे घर पहुंचने में देर होगी,

एक-एक कर सब बस में चढ़ गये। मीरा को लगा कि बस अब चलने ही वाली है लेकिन यह क्या ? बस तो अभी भी रुकी है।

तभी बस के आगे की ओर से मीरा का हम उम्र, एक लड़का आया और बोला "जी अब आप आराम से जाकर बैठ जाइए अभी बस रुकी हुई है और आगे से भी आपको कोई परेशानी नहीं होगी।" दरअसल यह लड़का भी सड़क के उस पार बस का रोज इंतजार करता और रोज मीरा की जद्दोजहद देखता पर आज उससे नहीं रहा गया और उसने आकर बस रुकवाई और ड्राइवर से बात करके उसे समझाया कि वह मीरा के लिए स्थान निर्धारित कर दे या फिर मीरा के चढ़ने तक बस रोक ले। उसकी आत्मीयता से बस चालक भी प्रभावित हुआ और उसने उसकी बात मान ली थी।

मीरा उसे धन्यवाद भी नहीं बोल पाई क्योंकि अपनी बात खत्म करते ही लड़का वापस सड़क के उस पार चला गया था। मीरा पूरे रास्ते उसी के बारे में सोच रही थी कौन है ? मुझे जानता है कि नहीं ?और जानता है भी तो कैसे ? बहुत देर सोचने के बाद भी मीरा उससे कोई रिश्ता नहीं जोड़ पाई। उसने तय किया कि अगली बार उसका नाम, पता सब पूछेगी और उसे अच्छी तरह से धन्यवाद कहेगी ।

यही सोचते-सोचते उसका स्टॉप आ गया और वह घर आ गई। घर आकर भी मीरा उसी के बारे में सोचती रही कि आज के जमाने में भी ऐसे लोग हैं जो बिना जान - पहचान के लिए मदद करने को तैयार रहते हैं। उसने जिस अपनत्व से मीरा को बस में बैठने का आग्रह किया था मीरा को लगा कि सच में उसका कोई अपना, सगा ही होगा। चंद पलों में ही मीरा का उससे एक अनकहा रिश्ता जुड़ गया पर मीरा चाह कर भी उसे कोई नाम नहीं दे पा रही थी। उसके बाद मीरा ने कई बार प्रयास किया पर वह लड़का दोबारा नहीं दिखा। मेरा के मन में जो भी ख्वाहिशें थी वह मन में ही रह गई। वह उसे धन्यवाद कहना चाहती थी लेकिन नहीं कह पाई।


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