वेशभूषा ~~~
वेशभूषा ~~~
शहर के एक बड़े स्टेडियम में एक प्रसिद्ध बाबा के सत्संग के लिए बहुत ही आलीशान पंडाल सजाया गया था l चारों तरफ़ लाइटों की जगमगाहट, सुंदर स्टेज, और जगह जगह एल. सी. डी. स्क्रीन की भी व्यवस्था की गई थी, ताकि बाबा जी का सभी भक्त स्पष्ट रूप से दर्शन कर सकें ... I
इस सत्संग के प्रचार के लिए शहर में बाबा जी की सुन्दर वेशभूषा में बड़े बड़े पोस्टर लगाए थे lऔर अब शुभ संध्या मुहूर्त में असंख्य लोगों की भीड़ के साथ शानदार रथ में बाबा जी को शोभा यात्रा के द्वारा पंडाल के सामने लाया गया...
मैंने देखा वहाँ बडे़ बड़े व्यापारी,और शहर के सम्मानित लोग बाबा जी के आगे नतमस्तक हुए जा रहे थे l ये देखकर वहाँ की उपस्थित जनता भी भावुकता में बहती जा रही थी l
इस कार्यक्रम का संचालन करते हुए बाबा जी के अनुयायी बार बार बाबा जी की जय जयकार लगाते हुए इस आयोजन के मुख्य कार्यकर्ता और बड़ी बड़ी हस्तियों के नामों की घोषणा करते हुए उनकी तारीफ़ करते जा रहे थे l जिसके परिणाम स्वरूप बाबा जी को दी जाने वाली दान राशि में भी बढ़ोतरी होती जा रही थी l
कार्यक्रम समाप्त हुआ l हम सब पंडाल से बाहर आने लगे, उसी समय मैंने देखा - फटे चिथड़े कपड़ों में एक औरत अपने बच्चे को गोद में लिए एक बड़े व्यापारी के आगे हाथ फैलाते हुए बोली -" बाबूजी मेरा बच्चा भूखा है.. कुछ दे दो ना....!"
व्यापारी उस औरत की तरफ़ घृणा की दृष्टि से देखते हुए बोले - "अरे, हटो.. हटो.. मेहनत करो, भीख माँगते हुए शर्म नहीं आती..!"
ये शब्द सुनकर अचानक मुझे ओडिशा की एक प्रसिद्ध लोकोक्ति याद आ गई *भेख़ थीले भीख़*(वेश देखकर भीख़) जो यहाँ पर एकदम स्पष्ट रूप में परिलक्षित हो रही थी..!
