वात्सल्य
वात्सल्य


मछली माँ मीनाक्षी बेटे मीन को नदी में तैरना सिखा रही थी। मीन शैतानी करने लगा। जरा सी लहर उठती तो वह भी पानी के साथ उछल-उछल कर मज़े लेता। मीनाक्षी आँखें दिखाती तो अनदेखी करता।
एक बार उसकी उछल-कूद ने नदी किनारे बैठे राजू का ध्यान आकर्षित किया जो मछली पकड़ने के लिये बैठा था। राजू ने मीन को पकड़ कर पानी भरे जार में बंद कर दिया। मीनाक्षी तड़पती हुई राजू के पीछे भागी। पर पानी से बाहर आते ही उसका जी हलकान हो गया।
एक तरफ़ माँ की ममता थी तो दूसरी ओर नदी में से निकल आने के कारण उसकी जान जा रही थी। बेटा मीन जार के अंदर उछल-कूद नहीं कर पा रहा था। माँ जार के बाहर बैठी आँसू बहाती हुई तड़प रही थी।
तभी राजू का ध्यान उन दोनों की तरफ़ गया। मीनाक्षी को तड़पता देख कर उसे अपनी माँ की याद आ गई,जिस ने बीमारी में तड़प-तड़प कर जान दी थी।
इससे पहले कि मीनाक्षी को कुछ हो जाता राजू ने पानी की भरी बाल्टी में मीनाक्षी को डाल दिया और मीन का जार उठा कर ले चला नदी की ओर।
नदी में वापस आ जाने के बाद मीन ने उछल-कूद बंद कर दी।
जब भी राजू नदी किनारे आता उनका खाना ले कर आता और मीन और मीनाक्षी को अपने हाथ से खिलाता। माँ-बेटे का प्यार देख कर राजू की आँखें नम हो जातीं।
अब वह पक्का शाकाहारी बन गया था।