वाशिंग मशीन (day -22 Antraal )
वाशिंग मशीन (day -22 Antraal )
पापा सरकार में तृतीय श्रेणी के कर्मचारी थे , घर में हर महीने गिनती के रूपये आते थे। घर के सबसे बड़े बेटे होने कारण पापा पर पूरे घर की ज़िम्मेदारी थी। पापा -मम्मी अपनी जिम्मेदारी समझते और निभाते भी थे। कहते भी तो हैं कि समझदार का मरण है।
पापा की तनख्वाह में घर के खर्चे ही बड़ी मुश्किल से चलते थे ,तो मम्मी घेरलू सहायिका तो रख ही नहीं सकती थी। बल्कि मम्मी तो घर के रोजमर्रा के कामों के अलावा सिलाई -बुनाई भी करती थी और हमें अपने हाथों से बने हुए कपड़े ,स्वेटर आदि पहनाती थी। घर पर ही अचार ,पापड़ ,मंगोड़ी आदि बनाती थी। मम्मी बड़ी किफ़ायत से घर चलाती थी।
दादा-दादी भी हमारे साथ ही रहते थे तो उनकी हारी -बीमारी आदि के दौरान भी उनकी दवा-दारु मम्मी को ही देखना होता था। जहाँ दादा -दादी रहेंगे ,वहीँ बुआ आदि आएँगी। बाकी रिश्तेदारों की भी आवभगत मम्मी ही करती थी। मुझे और मेरी छोटी बहिन को मम्मी हमेशा अच्छे से पढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित करती थी। मैं और मेरी छोटी बहिन मम्मी की बहुत ज्यादा मदद नहीं कर पाते थे।
हम बड़े हो रहे थे। मैंने इंजीनियरिंग में और छोटी बहिन ने मेडिकल में प्रवेश ले लिया था। मम्मी की उम्र भी बढ़ रही थी ,दादा-दादी का साया हमारे सिर से उठ गया था। अब मम्मी में पहले जितनी फुर्ती और शक्ति नहीं बची थी। अभी भी हम घेरलू सहायिका वहन नहीं कर सकते थे। अब तो उच्च शिक्षा के कारण खर्चे और बढ़ गए थे।मम्मी धीरे -धीरे काम करती थी।
मैंने इंजीनियरिंग के साथ मम्मी -पापा को बिना बताये २-३ बच्चों को उनके घर जाकर पढ़ाना शुरू कर दिया था। ६-७ महीने में मैंने अपनी जेबखर्ची और ट्यूशन फीस की मदद से इतने पैसे जोड़ लिए थे कि मैं एक वाशिंग मशीन खरीद सकूँ।
मैंने मम्मी के जन्मदिन पर उन्हें वाशिंग मशीन उपहार में दी। मेरी अपनी कमाई से मैं मेरी मम्मी के लिए कुछ खरीद सकी थी।
"बेटा ,मैं तो हाथ से ही कपड़े धो लेती। यह पैसे तो तेरी सिविल सर्विसेज की तैयारी में काम आते। ",मम्मी ने मेरे सपने के बारे में सोचते हुए कहा।
"नहीं मम्मी ,वह तो मैं वैसे भी कर लूँगी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके २ साल नौकरी करके पैसे एकत्रित करूँगी और उसके बाद तैयारी। अब आप इतना थक जाते हो तो मशीन से आपका काम तो थोड़ा हल्का हो जाएगा। ",मैंने कहा।
मम्मी की आँखों में ख़ुशी के आंसू थे।मैं अपनी माँ के गले लग गयी थी।
