वारिस
वारिस
मयूरी के कान में राज माता जी के आदेश बार बार प्रतिध्वनि हो रहे थे कि कल सुबह आपको जिनी लोक छोड़कर जाना पड़ेगा। हम केतुमाल के दूसरी विवाह करने जा रहे हैं। बिस्तर के दूसरे तरफ केतुमाल के आखों में भी वही दर्द था अपनी पत्नी से बिछड़ने का। मयूरी ने कोह भरी जुबान से केतुमाल से कहा -
शायद यही तक हम दोनों का सफर था स्वामी! मुझे आज भी याद है की कैसे आपने मेरी जान बचाया था मेरे अपनों के वार से । उसके बाद हम दोनों को एक नजर में ही प्यार हो गया था। अपने बिना सोचे अपने लोक के खिलाफ जा कर मुझसे शादी की और इस जिनी लोक में मुझे दुल्हन बना कर ले आए। पर मेरी किस्मत में शायद मां बनना लिखा ही नहीं था। मुझे माफ कर दीजिएगा मैं आपके वंश को वारिस नहीं दे पाई।
ऐसा मत कहो मयूरी! तुम इस बात का दोष खुद पर मत लो। मेरी महा पुरोहित जी से बात हो गई है वो इस बात का कोई हल जरूर निकालेंगे।
नहीं केतुमाल, अब कुछ नहीं हो सकता। जो पांच वर्ष में नहीं हो सका वो एक दिन में कैसे हो सकता है। पर मेरी एक ख्वाहिश है क्या आप वो पूरा कर सकते हैं ?
निसंदेह!
फिर से आज मुझे आपकी दुल्हन बनने की इच्छा है। क्या आप मुझे दुल्हन की तरह सजा सकते हैं?
ये सुनते ही केतुमाल के होंठों पर मुस्कान आ गयी।
बदन पर सुंदर सी लाल साड़ी, गले में हार, माथे पर मांग टीका, हाथों में कंगन, पैरों में पायल, बालों में फूल इन सभी को बड़े प्यार से केतुमाल ने मयूरी को एक नई नवेली दुल्हन की तरह सजा दिया । एक बार फिर सुहागरात की सेज सजाया गया। उस दिन उन दोनों की आखिरी मिलन की रात थी।
केतुमाल खुद को बड़ा बेबस महसूस कर रहा था। एक तरफ अपनी पत्नी को खुद से दूर नहीं देख सकता था और दूसरी तरफ अपनी माता के आदेश को टाल नहीं सकता था। सुबह होते ही माता के आदेश अनुसार केतुमाल जब मयूरी को पृथ्वी लोक छोड़ने जा रहा था तभी महा पुरोहित जी का मृत्यु की संवाद आई और साथ में उनका एक खत केतुमाल के नाम था।
केतुमाल
अपनी वादे के मुताबिक मैंने अपना धर्म निभाया है। मयूरी अब तुम्हारे पास ही रहेगी और मैं तुम दोनों के अंश के रूप में तुम्हारे साथ।