अपनापन
अपनापन
ये उन दिनों की बात है जब मैं ग्रेजुएशन कर रही थी। तब मेरा परिवार सम्बलपुर में रह रहा था। एक्जाम खत्म होने के बाद में होस्टल से घर आ गई थी। हमारे पड़ोस में राउ अंकल और उनकी पत्नी रह रहे थे। राउ अंकल रेलवे में नौकरी करते थे तो उनकी शिफ्टिंग रहती थी। घर में सिर्फ आंटी जी और एक लड़की थी जो उनको काम काज में मदद करती थी। उनके बेटा मोहन दिल्ली में रह कर एम.बी.ए पढ़ रहा था।
एक दिन अंकल जी का नाइट शिफ्ट था, तो घर में सिर्फ आंटी थी। वो लड़की बाजार कुछ सामान लेने गई थी। सुबह के ९ बज रहे थे, आंटी जी अपने लिए चाय बना रही थी। आंटी जी को मिर्गी की बीमारी थी। तब अचानक से उन्हें दौरें पड़ने लगे। उसके बाद वो नीचे गिर गई और चाय की पतीला उन पर गिर गया। गैस चूल्हा जल रहा था, वो नीचे गिर कर बेहोश हो गई थी।
उस वक्त में भी कुछ काम से उनके घर गई थी। तब मैं उन्हें ऐसे देख कर हैरान हो गई। जल्दी से आंटी जी के मुँह पर पानी के छीटें लगाई और उन्हें होश आ गया। उनको बेड पर लेटाया। उनके हाथ और पैर जल गए थे, गरम चाय गिरने के वजह से। मैंने उस पर दवाई लगाई और उन्हें पानी पीने के लिए दिया। उन्होंने मुझे धन्यवाद कहा और कहा अगर आज तुम नहीं आती तो न जाने मेरा क्या हाल हुआ होता। तब तक वो लड़की भी बाजार से आ गई थी। हम दोनों को चाय बना के दी। इतने में अंकल जी भी ड्यूटी से आ गए थे और उन्होंने भी मुझे धन्यवाद कहा।
जब मैं होस्टल वापस गई छुट्टी के बाद तब आंटी जी ने मेरे लिए और मेरे दोस्तों के लिए बेसन के लड्डू बना कर दिए। उनके प्यार में मुझे एक अपनापन सा महसूस हो रहा था। और उन्होंने मुझे अपनी बेटी मान लिया था। वो हमेशा मुझे बोलते थे अगर मेरी बेटी होती तो बिल्कुल तुम्हारी तरह होती। में जब भी होस्टल से घर जाती थी उनके साथ बैठकर बहुत सारी बातें किया करती थी। वो भी कुछ ना कुछ खिलाते थे। उनका वो प्यार और वो अपनापन में कभी भी नहीं भुला सकती।