Pujashree Mohapatra

Tragedy

4.6  

Pujashree Mohapatra

Tragedy

बदनाम गली

बदनाम गली

4 mins
953


"क्या हर काली रात की एक सुनहरी सुबह होती है?" "क्या हर सपने पूरे होते हैं?" "सीने में जलती आग को क्या आँखों के आँसू बुझा सकते है?" एक काली रात भी पूरे जीवन को अंधकार में ढकेल सकता है। जो दुःख सहा नहीं जाता उस से भी कई गुना ज्यादा तकलीफ़ देता है जो दुःख कहा नहीं जाता इन्स्पेक्टर साहब। इतना कहकर के रो पड़ी मल्लिका। 

एक तवायफ हो के कौन सी दुःख दिखा रही है मुझे? आज पकड़ी गई तो इतनी बातें बता रही है मुझे,‌ नहीं तो कल से फिर वही अंधेरी गली में होती ग्राहक के तलाश में। मेरी यह बात सुनकर बड़ी मासूम नज़रों से देखा मुझे मल्लिका ने । काली दुपट्टे के पीछे उस चेहरे को पहली बार देखा मैंने । गोल चेहरा, गोरा रंग, भुरी आँखें , गुलाबी होंठ और काले घने बाल। "इतनी सुन्दर लड़की इस घिनौनी दुनिया में कैसे पाँव रख दी? विश्वास करने का और कोई चारा नहीं होते हुए भी दिल उसको सुनने को आतुर हो रहा था। अगर मेरी बातें तुझे इतनी तकलीफ़ देती है तो तू ये धंधा करती क्यों है? 

वो बोली- "ये लम्बी कहानी है साहब"।

 मैने कहा- "मैं सुनने को तैयार हूँ।"

मेरी असली नाम श्वेता रावत। पिता का नाम रमेश रावत। एक अच्छा खासा व्यवसाय था हमारा। मेरी माँ और मेरे भाई पप्पु को लेकर एक छोटा सा परिवार था हमारा। पापा चाहते थे मुझे पढ़ा लिखा कर एक डॉक्टर बनाएंगे। पर सपना पूरा करने के लिए रात कम पड़ गए शायद। पापा को हमेशा खांसी और कमर में हमेशा दर्द लगा रहता था। सर्दी खांसी है ठीक हो जाएगा ये सोच के हम चुप रहते थे। पर उस दिन टेस्ट रिपोर्ट में जो लिखा था कि ये देख कर हम सब हैरान रह गए। सर्दी खांसी नहीं पापा को ब्लड कैंसर हुआ था। पापा को ठीक करने के लिए सारे पैसे पानी के तरह बहाया हमने। आखिर में माँ का मंगलसूत्र भी गिरवी रखना पड़ा। पर हम पापा को नहीं बचा पाए। बचाते भी कैसे कैंसर पूरे शरीर में फ़ैल चुका था। पापा के जाने के बाद माँ टूट सी गई थी। जो भी अपने थे वो भी हमसे मुंह मोड़ लिए की शायद उन्हें मदद करना पड़े। 

उस दिन पप्पू को बहुत ज़ोर से बुखार था और माँ को भी। मैं अकेली लड़की इतने बड़े तूफ़ानी रात में कैसे जाती? फिर भी साहस जुटा कर छाता पकड़ कर दवाई लेने निकल पड़ी। दवाई खरीदने के बाद वहां पर गनपत से मुलाकात हुई। गनपत शेट्टी हमारे घर के पास रहता था। मुझे देख के "क्यों आई है यहां" पूछा। मैने उसे सारी बात बताने के बाद उसने कहा - "केसे इतनी बारिश में घर जाएगी। आ बैठ गाड़ी में, में तुझे घर छोड़ दूँगा"। 


उसके बाद क्या हुआ? ये जानने के लिए मेरी उत्सुकता और बढ़ गई।

अब मल्लिका के मुंह से बात निकल ही नहीं रही थी। उसके आंखों से सिर्फ आँसू निकल रहे थे। फिर उसने अपने आप को सम्भालते हुऐ कहा- "गनपत मुझे घर छोड़ने के बजाय एक सुनसान जगह पर एक आधी टूटी घर में ले गया। मेरे चिल्लाने पर उसने मेरे मुंह पर ज़ोर से हाथ रख दिया और कहा- "यहां तुझे कोई बचाने नहीं आएगा, अगर चिल्लाएगी तो तुझे मारने को में ज़रा सा भी कतराउंगा नहीं। अच्छाई इसी में है की तू मान जा ओर में तुझे घर अच्छे से छोड़ आऊंगा।" बस! उस बरसात की रात में मेरे सारे सपने धुल गए। पूरी तरह भीगते हुए मैं घर लौटी, जैसे की अपनी ही लाश की दाह संस्कार करके और लौटते वक्त मेरे हाथ में था एक दो हजार का नोट जो थी मेरे जिस्म की कीमत। 

इतना बोलने के बाद अपनी बहते आँसुओं को पोंछने लगी मल्लिका। 

मैंने पूछा- "फिर क्या हुआ"?

फिर, उस रात मेरी तकिया भीगता गया। फिर मैने सोचा कमाई करने का ये एक अच्छा रास्ता है। उस दिन के बाद शाम होते ही सज धज के मैं घर से निकलती थी। अगर माँ पूछती थी तो बता देती थी की मुझे काम मिल गया है। माँ भी चुप हो जाती थी। पहले पहले बहुत रोना आता था। खुद के उपर घृणा आता था। पर अब ये आदत सी हो गई है साहब। हर सुबह अपनी इज़्ज़त की लाश ले के लौटती हूँ। पुराने जख्मों पर मरहम लगाती हूँ। और फिर एक नई रात की इंतजार करती हूँ मैं, कुछ नया दर्द खरीदने। कुछ पैसे भी आने लगे थे तो माँ की भी एक ही इच्छा थी कि वो मेरी शादी कराने के बाद चैन की सांस लेगी। पर उसे क्या मालूम था की मुरझाए हुए फूल कभी भगवान के चरणों में नहीं चढ़ाये जाते। 

उस के बाद उस कमरे में एक सन्नाटा सा छा गया था। मैं भी चुप हो गया था और वो भी। इस सन्नाटे को चीरती हुई मेरे फ़ोन के स्क्रीन पर कमिश्नर साहब का फोन आया।

"हैलो! मिस्टर गुप्ता, ऑपरेशन सक्सेस फूल"?

"नहीं सर, सब भाग गए। ऑपरेशन फेल"।

गुस्सा हो कर उन्होंने फोन रख दिया। फिर मैने मल्लिका की तरफ़ देखा और वो मेरी तरफ। उसकी तरफ हाथ बढ़ाते हुए मैने कहा- "चल मेरे साथ।"

-कहां?

-एक नई दुनिया में।

वो भी चुप चाप मेरे पिछे पिछे चली आई। उस वक्त जैसे मेरे कान के पास कोई कह रहा था, अब इस अहिल्या को अपनी घर के आंगन की तुलसी बनाने की जिम्मेदारी तेरी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy