उस मोड़ से शुरू करे

उस मोड़ से शुरू करे

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रति और रूबी दोनों बहनेंं एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत। रति की अपनी शर्ते थी जीने कि, 'कोई समझौता नहीं।'' उसे जो करना था वो करना था, चाहे किसी को बुरा लगे या भला। उसके शब्द कोश में समझौता शब्द नहीं था। वो बिंदास जीना चाहती थी। रूबी किसी को बुरा ना लगे, ये बात हमेशा ध्यान में रखती। आज गाँव से दादा जी, दादी आने वाले हैं, रूबी की माँ सविता काम में लगी थी। उन्होंने आवाज लगाई, रति कपड़े बदल ले दादा, दादी आने वाले हैं।

रति ने अनसुना कर दिया। रति, सविता ने जोर से कहा ..पर कोई जवाब नहीं मिला तो, सविता बोलती हुई गुस्से में हाथ मे आटा लगा था, कितना काम पड़ा है और इस लड़की को सुनाई नहीं देता। माँ के और बोलने से पहले ही ..रति गुस्से में- क्या है माँ ? मैं क्यूंँ बदलूँ कपड़े ?

माँ ने गुस्से में, पापा के आने से पहले बदल ले दादा-दादी को लेकर आते होगें। दादा-दादी को ये र्शाटस् नहीं अच्छे लगेंगे। किसी ने मना किया है क्या ? जाने के बाद पहन लेना। रति को पापा का थोड़ा डर था, पैर पटकती हुई चली गयी।

रति को मम्मी-पापा के कहने पर दादा-दादी के पास जाना पड़ता या दादा-दादी कहते ...लाडो आ हमारे पास भी आ जाया कर।

दादी-दादा जी प्यार से लाडो कहते थे। रति आकर बैठती औपचारिक तौर पर या फोन में लगी रहती। रूबी उनका किसी के बिना कहे ध्यान रखती। कब चाय बनेगी ? कब पानी चाहिये, तकिया चाहिये क्या ? छोटी छोटी बातें थी। रति को कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी को बुरा लगे तो लगे। रति और रूबी की उम्र में एक साल का ही अंतर था।

रूबि ने एम. ए बी.एड करा था और एक प्रतिष्ठित कॉलेज मे पढ़ा रही थी। रति ने एम.बी.ए. करा था और किसी बड़ी कम्पनी मे नौकरी करती थी। बस कोई अच्छा सा लड़का नहीं मिलने से सविता और अनुज की दिन रात की चिंता बनी हुई थी।

फोन कि रिंग बजी। सविता बस कपड़े सुखाने जा ही रही थी।

हैलो ! मैं रेवती बोल रही हूँ, ये नम्बर मुझे आपकी बहन ने दिया।

जी नमस्ते सविता ने जवाब दिया।

अन्देशा तो हो गया था, दिन रात देहरादून वाली जीजी से बस शादी की ही बात होती, नम्बर दिया होगा तो कुछ रिश्ते की बात ही होगी, आवाज आई हैलो--आप सुन रही है, जी ...हाँ जी मैं सविता बोल रही हूँ।

जी मैंने रूबी के लिये फोन किया है, हमें रूबी पसंद है अभी उसे किसी की शादी में देखा, मेरा बेटा भी इंंजीनियरिंग कॉलेज में लेकचरार है। हम मिलना चाह रहे थे अगर आपको एतराज ना हो। जी जरूर ,मैं अनुज मतलब रूबी के पापा से बात करके बताती हूँ।

तुरंत खुशी के मारे ऑफिस ही ही फोन कर दिया। एक साँँस में सब सुना गयी थी फोन की बातें... सविता। अनुज- लड़का अच्छा है जल्दी ही बुलाना होगा। हाँ हाँ आके बात करता हूँ। अभी वयस्त हूँ।

सविता ने देहरादुन वाली जीजी सब घर लड़के के बारे मे पूछ लिया था। बहुत भले लोग है। रिश्ता छोड़ना नहीं, जीजी ने बता दिया था।

इतवार को आने का मिलना तय हो गया। रूबी वो गुलाबी कुर्ता पहन लेना,सुं दर लगता है तुझ पर। नाश्ता सब बना लिया था सविता ने, कुछ बाजार से भी ले आये थे अनुज।

लड़के वाले आ गये, ये हमारा बड़ा बेटा कबीर और ये छोटा मिहुल। रूबी सबको पसंद पहले से ही थी। कबीर ने रूबी से अलग बात में बस ये ही कहा मेरा सयुंंक्त परिवार है और मैं अपने परिवार को बहुत प्यार करता हूँ। आपको बहुत अपनापन मिलेगा और मुझे कुछ नहीं पूछना, आप पूछ सकती हो। रूबी ने कहा मुझे बड़ों के साथ रहना पसंद है। मेरे दादी, दादा जी भी आते रहते हैं हमारे पास।

बस रि्श्ता पक्का हुआ। लड़के कि मम्मी ने मिठाई खिलाते हुये कहा- मेरा बस चलता तो मिहुल के लिये रति पसंद आ गयी। मिहुल भी एम.बी.ए करके बड़ी कम्पनी में नौकरी कर रहा है, इसके लिये भी देखनी है लड़की।मिहुल के पापा ने भी कह दिया मुझे क्या परेशानी ? आप सब जो ठीक समझो। अनुज और सविता ने आँखो में ही एक दूसरे को स्वीकृति दे दी थी।

मिहुल और रति से अलग अलग पूछा दोनों तैयार थे।

दोनो को बात करने का मौका दिया। मिहुल ने अपने परिवार के बारे मे बताया तो रति ने तुरंत कहा मुझे सयुंंक्त परिवार ज्यादा नहीं पसंद ,अपनी आजादी खत्म हो जाती है। नहीं हमारा परिवार आजाद ख्यालों का ही है। आपको कोई परेशानी नहीं होगी।

मुझे कोई परेशानी नहीं आपसे शादी करने में। मुझे आप पसंद है। रति सुंदर थी, मिहुल मन ही मन बहुत खुश था। मिहुल ने रति से कहा अब आप जो ठीक समझे हाँ या नही। आपकी मर्जी और कमरे में आ गया। रति ने भी हाँ कर दी।

वाह भई वाह...एक पंथ दो काज....मिहुल के पापा ने कहा और सब हँसने लगे। दोनों की शादी धुमधाम से की गयी। सविता जी निश्चिंत थी, रति के लिये की बचपने को. ....रूबी संभाल लेगी।

दोनों अलग-अलग जगह शादी के बाद घुमने गये और आकर सब अपनी-अपनी नौकरी पर जाने लगे। सुबह शाम काम दोनों मिलकर कर लेती थी।

कबीर बहुत खुश था रूबी को पाकर। मिहुल और रति भी आपस में खुश थे। घूमते, शापिंग में बिता देते समय।सब खुश थे।

जैसे-जैसे समय बीत रहा था रति अपनी मनमर्जी करने लगी जैसे अपने घर करती। ज्यादातर रति बहुत बार रसोई में नहीं जाती और सब रूबी पर ही आ जाता। सबका टिफिन बनाना घर के लिये बनाकर रखना।

रति तो कह देती रात आफिस का काम ज्यादा था, इसलिये सुबह नहीं उठा जाता, रूबी दीदी कर लेगी शाम तक आ जाती है रति को रूबी की कोई परेशानी नहीं दिखती थी। रूबी को भी काम ज्यादा था। घर आकर वो बच्चों के नोटस बनाती पर काम की ऊफ् नहीं करती। वो जानती थी रति ऐसी ही थी।

जब सब कहते कि रति क्यूंँ नहीं कर रही काम ? तो रूबी तरफदारी कर देती रति की। सासू माँ को समझने में देर नहीं लगी रति की आदत। सासू माँ ने घर का काम के काम के लिये खाना बनाने वाली रख ली। वो एक बहू पर सारा काम नहीं डाल सकती थी।

दादा जी और दादी सास का ध्यान सासू माँ अच्छे से रखती थी। रूबी भी शाम को जरूर बात करने जाती, कभी खाना देने जैसे वो अपने दादा, दादी के जाती थी पर रति को मिहुल भी कहता तो वो थक जा आने का बहाना बना देती। मिहुल भी काम में हाथ बँटाने को कहता रूबी भाभी का तो रति कहती दीदी कर लेगी वो हमेशा से करती है मेरा।

एक साल होने को आया, सबको समझ आ चुका था रूबी और रति के व्यवहार में अंतर पर परिवार में उलझनें ना हो इसलिये बात को बढ़ाते नहीं थे। फोन पर रति और रूबी अपने घर रोज बात करती पर घर की परेशानी रूबी ने .. मम्मी, पापा परेशान ना हो इसलिये नहीं बतायी। रति जानती थी कि उसे ही समझायेंगे इसलिये नहीं बताया।

एक दिन तो हद हो गयी जब रति शार्टस पहनकर दादी के कमरे में आ गयी। रूबी ने समझाया कि वो हमारे दादा, दादी की तरह है ...तुम्हें ऐसे नहीं आना चाहिये। रति को अब रूबी का समझाना भी चुभने लगा था। मिहुल भी नाराज था रति के व्यवहार से। सब रूबी की तारीफ करते। रति को दीदी की तारिफ भी अच्छी नहीं लगती थी।

रति गुस्से में रात को कमरे में गयी और बोली- मिहुल मैं और यहाँ नहीं रह सकती, जब देखो दीदी की तारीफ ... सही भी तो है रति, भाभी है ही बहुत समझदार तो क्यूँ नहीं करेंगे तारीफ !

बस रति जोर से बोली- नहीं रहना इस घर में...

मिहुल ने भी बुरी भली सुना दी कि वो घर को छोड़ नहीं सकता, उसे रहना है तो लिहाज से रहे घर।

रति ने भी कह दिया उसका जो मन कहेगा वो ही करेगी, उसे आजादी पंसद है।

रति छुट्टी में देर से उठती, कोई काम में हाथ नहीं बँटाती। कुछ भी पहनती, सबने कहना बंद कर दिया क्यूंँकि उसका जवाब सबको पता था, मेरा मन जो भी करूँ। सुख शान्ति धीरे-धीरे कम हो रही थी, एक हँसते खेलते परिवार में।

रूबी भी अकेले रो लेती बहन के खिलाफ नहीं बोलना चाहती थी।

रति ने अलग रहने की रट लगा रखी थी। इसका असर सब परिवार पर पड़ रहा था, खासकर मिहुल पर। मिहुल चुप रहने लगा रति और उसमे दूरी आ गयी थी।

बेटे को दुखी देखा नहीं जा रहा था इसलिये एक दिन रूबी को लेकर रूबी के घर अचानक पहुँच गयी, रूबी की सास।

अरे वाह ! आज तो सरपराइज दे दिया सविता जी ने जैसे ही दोनों को देखा। रूबी की सास ने सब सुना दिया रति का बर्ताव। सविता जी तो शरम से आँँखे झुकी और गुस्सा भी रति पर आ रहा था। दोनों के जाने के बाद अनुज को सब बताया।

अनुज का गुस्सा सातवें आसमान पर था। दोनों अगले दिन उनके घर गये और माफी माँगी रति की तरफ से।और रति को खूब डाँटा और संबन्ध तोड़ने को भी कह आये। रति के पास उसकी आजादी को रोकने, टोकने की लम्बी सूची तैयार थी। कुछ समझने को तैयार नहीं थी।

क्या होगा आगे, अपने मन की सुन ने वाली रति के साथ और पूरे परिवार के खुशहाल जीवन में...

देखिये अगले भाग में ...


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