उपवन

उपवन

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कोई दोपहर का समय होगा,ममता ने राजीव को फोन पर सूचना देते हुए बताया। कि मेरे भाई का फोन आया था, माँ की तबियत आज फिर बहुत खराब है। हमे इसी वक्त ही निकलना होगा। तब राजीव खीजते हुए बोला,पता नहीं तुम्हारी माँ को आज कल ये क्या हो गया है। हर दूसरे ,तीसरे दिन बीमार पड़ जाती हैं।

अब हम अपना सारा काम काज छोड़कर वहीँ तो नहीं बैठ सकते ना। चलो अभी मैं एक मीटिंग में हूँ। शाम को घर आकर सोचते हैं कि क्या करना है। ममता कुछ कह पाती उसके पहले ही राजीव फोन काट चुका था। वो माँ के बारे में सोच ही रही थी,कि फिर उसका मोबाईल बज उठा।

फोन उसके कॉलेज के जमाने की सहेली का था। जो उससे गाहे बगाहे ही बात करती थी। ममता ने फोन उठाते ही तंज कसा। आज मेडम को हमारी याद भला कैसे आ गई। उसने हसकर बात टालते हुए ममता के हाल चाल पूछे। फिर बोली यार जियाजी तो कमाल का लिखते है। उन्हें भी लिखने का शौक है,हमे तो पता ही नहीं था।

तो फिर बता कब ला रही है। उन्हें अपनी इस सहेली से मिलाने। ममता बोली अच्छा अब मैं समझी, आज फोन पर मेरी सहेली नहीं बल्कि एक लेखिका बात कर रही है। सच यार राजीव जी की नई किताब तो कमाल की है।

उसने ममता से आने का वादा ले फोन रख दिया। उसके मुँह से राजीव की इतनी तारीफ सुन ममता ने भी उनकी नई किताब के कुछ पन्ने पलटे। किताब का शीर्षक था,माली उपवन का। शीर्षक पढ़कर ही वो ख़यालो में कही खो सी गई। उसे एसा लगा, जैसे ये मायका भी एक उपवन है।

जिसमें माता पिता माली की तरह, बेटियों को उसमे सींच कर पोषित व पल्लवित तो कर सकते है। पर उनके चुन लिये जाने के बाद। उन मालियों का अपने ही उन फूलों पर कोई अधिकार नहीं रहता।


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