उन्माद
उन्माद
कहते हैं प्रेम के उन्माद से बड़ा दूसरा उन्माद नहीं। जिसके ऊपर इसका नशा एक बार चढ़ जाए तो फिर आसानी से नहीं उतरता । ऐसा ही कुछ सोनी के साथ भी हुआ। प्रेम के नशे ने उसे कम उम्र में ही अपनी गिरफ्त में ले लिया । उसके लिए वह अपना सब कुछ छोड़ने के लिए तैयार थी। " मुझे अपने साथ ले चलो न , सुधीर । मुझसे नहीं रहा जाता। तुम मेरे घर वालों से बात कर लो, हमारी शादी की।" सोनी ने तड़प के साथ कहा। "तुम्हारे पिताजी तो बहुत सख्त हैं। मुझे बात करते हुए डर लगता है कि कहीं गुस्से में तुम्हारा घर से बाहर आना - जाना ही न बन्द कर दें। फिर ये मुलाकातें भी बन्द हो जाएंगी।" सुधीर ने डरते हुए कहा। लेकिन सोनी के दिलोदिमाग पर क्या था कि वो ज़्यादा ही अधीरता दिखाने लगी। नतीजा वही हुआ जिसका डर था ,अपने परिवार के प्यार और मान को ठुकरा कर अपने प्रेमी सुधीर के साथ भाग गई। उस ने भी उसके साथ दगा कर उसे बेच दिया। अल्हड़पन के अधिकतर प्रेमसंबंधों का हश्र अच्छा नहीं होता। जो सोनी अपनी नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देती थी आज लोगों के गंदे स्पर्श झेलने को मजबूर थी। उसे घिन आती थी अपने आप से। हर रात के बाद वह घंटों अपने शरीर को साफ करती रहती । वेश्यावृत्ति के दलदल में एक बार जो फंस जाए उसका निकलना बहुत मुश्किल होता है। ऐसी लड़कियों का अंत जो होता है वहीं हाल सोनी का हुआ ,उसे प्राणघातक बीमारी हो गई। सोनी आज़ अस्पताल के बिस्तर पर पड़ी अपनी मौत का अकेले इंतजार कर रही थी और अपने अंधे प्रेम के उन्माद को कोस रही थी । क्यों उसने अपनी ज़िन्दगी को खेल समझ लिया था? वह इस खेल का हर दाँव हार चुकी थी। अब उसके पास पछताने के अलावा कोई रास्ता न था.....।
