उम्र या सिर्फ नंबर
उम्र या सिर्फ नंबर
बच्चा जब जन्म लेता है तो वह एक मासूम सा प्यारा सा बच्चा होता है हर परेशानियों से दूर जिम्मेदारियों से मुक्त बचपन होता है,जब बच्चा बड़ा होता है स्कूल जाता है खेलता है और लंच तो ब्रेक से पहले ही खत्म हो जाता है तब उनका दिल साफ उड़ने के लिए तैयार, आसमान को छूने को तैयार तब तक यह सिर्फ नंबर ही होते हैं, जब बड़े होते हैं तो नए दोस्त, पढ़ाई का बोझ,वह भी केवल नंबर होते हैं इस तरह बचपन खुशनुमा मस्ती भरा, थोड़ा उम्मीदों वाला और बहुत सारी यादों के साथ बचपन का नंबर उम्र में बदलना शुरू होता है
तब शुरू होती है एक उम्र कई जिम्मेदारियों परेशानियों के साथ अपने अजनबी प्यार को पाने की, एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन की , एक अच्छी नौकरी की और इस भाग दौड़ में हम जीते हैं अपनी सिर्फ एक उम्र ,जिसमें होते हैं कई सवाल जैसे इतनी उम्र में एक घर उतनी उम्र में शादी और एक मुकाम इस बीच में रह जाती है सिर्फ केवल एक उम्र।
कुछ लोग तो सिर्फ एक उम्र ही जीते हैं ना उनकी कोई ख्वाहिश होती है ना दिल में उमंग और उन्हें याद ही नहीं रहता कि वह आखिरी बार दिल खोलकर कब हंसे थे कब आखिरी बार बारिश में भीगे थे, कई लोग तो इतने बोर होते हैं जैसे वह अपनी जिंदगी बोझ की तरह जी रहे हैं वह ना उम्र जीते हैं और ना ही नंबर,.......
कुछ लोगों की किस्मत साथ देती है फिर भी पैसे कमाने की होड़ में लग जाते हैं और वह इस होड़ में इतनी दूर आ जाते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि कितने सालों से उनका साथी कई तरह की दवाइयां पर निर्भर चुका है
कई बार तो इतनी देर हो जाती है और उन्हें पता चलता कि उन्हें कोई गंभीर बीमारी है फिर उनकी आखिरी समय तक रह जाता है हॉस्पिटल का एक बेड चार बाय चार का कमरा, एक गर्म पानी की बोतल ,और बिना स्वाद वाला खाना ,और कई सवाल क्यों मैंने एक पिंजरे में बंद पक्षी की तरह जिंदगी जी क्यों मैंने ये नंबर जिए क्यों मैं उन नंबर को उम्र में नहीं बदल सका।
इसलिए उठो, थोड़ा सोचो इससे पहले ज्यादा देर हो जाए उससे पहले स्वयं को पहचानो तुम्हें क्या पसंद है और शुरू करो एक सफर की जिंदगी के नंबर को एक खुशहाल उम्र में बदलने की
सुबह उठकर 5 मिनट पसंदीदा गाने पर अपने पांव को थिरकाओ चाहे उम्र 90 की क्यों ना हो फिर भी जिंदादिली से अपनी इच्छाओं को पूरा करो और एक बार अपना बचपन फिर जी लो
हर वह काम करो जो कहीं किसी दिल में कोने में दब गया था एक बार फिर बचपन जी लो बच्चों के साथ बच्चे बनकर दिल खोलकर हंसो और 90 की उम्र में भी एक गोल्ड मेडल जीतो हर वह काम करो कि मरने का अफसोस ना रहे और ना कोई सवाल ,होतो एक चेहरे पर बड़ी मुस्कान एक खुशी और मन की शांति कि मैंने केवल उम्र नहीं जी मैंने अपनी उम्र को रोक दिया है सिर्फ नंबर में और हर पल की एक सेल्फी लो जब उसे देखो तो मन खुश हो जाए और चेहरे पर आ जाए बड़ी मुस्कान कि हमने अपनी उम्र को खुशहाली के नंबर मैं रोक दिया।
पूजा भारद्वाज "संतोष"