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पूजा भारद्वाज "सुमन"

Tragedy Inspirational

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पूजा भारद्वाज "सुमन"

Tragedy Inspirational

सोच और आत्मविश्वास

सोच और आत्मविश्वास

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सोच से हम अपने अस्तित्व को निखारते है, हमारे जीवन में बहुत कुछ सोच पर ही निर्भर करता है। हम चाहे तो किसी को रंक से राजा बना सकते हैं

आ जाएं जब क्रोध में तो किसी राजा को रंक भी बना देते हैं। यह एक सोच ही तो है।

कल रात को मैं लॉन्ग ड्राइव पर चला गया। मैं और मेरे दोस्त एक रेस्टोरेंट्स के सामने रुके वहां का अच्छा खासा माहौल था, रेस्टोरेंट में तो भीड़ लगी हुई थी माहौल बड़ा खुशनुमा था क्योंकि वहां रेस्टोरेंट्स वाले के पास पैसे जो आ रहे थे और भाई क्यों ना आए उसने भी तो रेस्टोरेंट की चमक -दमक के लिए कितना पैसा लगाया था साफ सुथरा भी बहुत था दरवाजे पर पहरदार खड़ा था ऊंची पगड़ी लगाए, जैसे ही कोई आता, वह पहरदार उस के लिए दरवाजा खोल देता, बहुत सुविधा थी।चलो भाई हमारी गाड़ी तो आगे निकली, आगे जाकर देखा देख कर मन विचलित हो गया। दो बड़े बूढ़े उम्र शायद ,75और 70 साल की रही होगी। वह दोनों अपना सिर्फ पेट पालने के लिए एक छोटा सा ढाबा खोले बैठे थे ढाबे की हालत भी जार जार हो रखी थी, मैं गाड़ी से उतरा और उस ढाबे पर गया। मैंने बात करी बाबा जी से बाबा जी आप इतनी मेहनत इस उम्र में करते हैं कितना चलता है आपका ये ढाबा, बाबा जी बोले बेटा यहां तो जितना पैसा में लगाता हूं मुझे उतना भी नहीं मिल पाता और कहते हुए वह रोने लगे यह सुनकर मेरी भी आंखों में आंसू आ गए। मैंने अपने आप को संभाला। मैंने कहा बाबा जी मैं आपकी मदद करूंगा क्योंकि मेरे अंदर आत्मविश्वास था कि मैं इनके लिए जरूर कुछ करूंगा, फिर मैंने उनकी एक छोटी सी वीडियो बनाई और फेसबुक पर अपलोड कर दी। और मैंने वहां पर बाबा जी का खाना लिया और खाया, खाना वाकई में बहुत स्वादिष्ट था बस वहां एक चीज की कमी थी, चमक दमक की क्योंकि हमारी आंखों को वह रोशनी देखने की आदत हो चुकी है खाना चाहे उनका हाथ की रोटी नरम और स्वादिष्ट सब्जी थी, मगर वहां कोई भी रौनक नहीं थी। उस दिन हम खाना खाकर अपने घर आ गए।

रात को भी मन विचलित था जैसे तैसे रात निकली। सुबह हम जैसे ही जागे मोबाइल देखा तो देख कर मैं बहुत खुश हुआ, बाबा के ढाबे पर खाने वालों की लाइन लगी और रौनक लगी हुई थी। सिर्फ एक वीडियो अपलोड करने से, सब ने मिलकर क्या से क्या कर दिया, बिन रोशनी के हमने बाबा के यहां उनका जहां रोशन कर दिया।

यही थी हम सबकी सोच घर में रहते हुए भी हम सब ने दूसरे के घर रोशन कर दिया और खुशियों से भर दिया उसका जहां।

जीत गया मेरा आत्मविश्वास ।



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