Lamhe zindagi ke by Pooja bharadawaj

Tragedy

4.5  

Lamhe zindagi ke by Pooja bharadawaj

Tragedy

लाल रंग या कफन

लाल रंग या कफन

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लाल रंग बन जाता है कफन

पता नहीं चलता कब

मां से बेटी बोली एक ही सवाल मां मैं भी तो सिर्फ 100 ग्राम का वजन लेकर

 इस दुनिया में आई थी

कब मैं इतनी भारी हो गई कि तुमने मेरा बचपन ही छीन लिया

खाने पीने की उम्र में जिम्मेदारियों का टोकरा मेरे हाथ में थमा दिया

स्कूल की खाकी रंग की वजह यह लाल रंग का कफन तुमने मुझे उड़ा दिया

क्या जानू मैं इसका मतलब दिखने में तो सुंदर है

पर मुझे अपने अंदर लोहे की सलाखों की तरह इसने मुझे जकड़ लिया है

मां से पूछे बेटी एक ही सवाल

"पैरों में स्कूल के जूते की वजह यह बेड़ी क्यों डाल दी मां बहुत भारी लगती हैं" 

यह बेड़ी लगता है जैसे रोक लगा दी गई है मेरी उड़ान को

मां से पूछे बेटी एक ही सवाल

मां मैं अभी तो 13 साल की ही हुई थी

अभी तो मैं तुम्हारी तरह बड़ी भी नहीं बन पाई थी

कद अभी छोटा सा था

तो फिर क्यों इस शरीर को एक मांस का टुकड़ा समझ कर दूसरे को तुमने दे दिया?

क्या वो समझेगा मेरी पीड़ा को या इस मास के टुकड़े को वह लूट खसोट के खाएगा

मां बहुत दर्द होगा जब पापा की उम्र का आदमी मेरे इस मास के टुकड़े को हाथ लगाएगा

मां मैं भी बच्चों के साथ खेलने की उम्र में एक बच्चे की मां मैं भी बन जाऊंगी

मां नहीं पता मुझे कि इस पीड़ा को मैं कैसे सह पाऊंगी

या इस लाल जोड़े में जब तुमने मुझे भेजा था एक सफेद कफन में लपेट कर वापस तुम्हारे पास मैं आ जाऊंगी

मां से पूछे बेटी एक ही यही सवाल?????

मां मुझे माफ कर देना यदि कुछ गलत पूछ लिया हो छोटी सी हूँ ना

नहीं समझ मुझे कि क्या पूछना है मुझे तुमसे

अपने छोटे दिल में जो आया वह तुमसे पूछ लिया

तुम्हारे दिल को दुख हुआ हो तो मुझे माफ कर देना!


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