उम्मीद का दामन
उम्मीद का दामन
नमित ने नए साल की पहली सुबह में आँख खोली। ठंड बहुत थी पर फिर भी नए साल के नए दिन का स्वागत करने के लिए वह बिस्तर छोड़ कर बाहर आ गया। बालकनी में खड़े होकर उसने दूर तक नज़र दौड़ाई। जहाँ तक नज़र गई सब कुछ कोहरे की चादर ओढ़े कांप रहा था।
वह अंदर आ गया। बीता हुआ साल उसके लिए कोई खास नहीं गया था। कई मामलों में असफलता ही हाथ लगी थी। सबसे तकलीफ़ देने वाली बात थी दो साल से उसकी गर्लफ्रेंड रही विभा का उसे छोड़ कर चले जाना।
वह पिछले तीन साल से दिल्ली में रहकर सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा था। पर सफल नहीं हो पा रहा था। अपना खर्च चलाने के लिए वह एक कोचिंग सेंटर में पढ़ा भी रहा था।
वह लखनऊ के एक धनी व्यापारी परिवार से था। घरवालों का कहना था कि वह बेकार ही समय बर्बाद कर रहा है। इतनी मेहनत अगर घर के व्यापार में करता तो बहुत सफल होता। पर नमित का सपना आईएएस अधिकारी बनना था। वह अपने दम पर अपनी पहचान बनाना चाहता था। इसलिए घर से पैसे ना लेकर खुद कमाता था।
कल साल के अंतिम दिन उसके पापा का फोन आया था।
उन्होंने उससे कहा कि वह अब अपनी ज़िद छोड़ कर वापस लौट आए। कल रात जब वह सोया था तब मन बहुत उदास था। बहुत देर तक वह सोचता रहा कि क्या वह गलत है। उसे सचमुच ही लौट जाना चाहिए।
पर इस नई सुबह में उसके मन में नई उम्मीद थी। उसने संकल्प लिया कि कोई कुछ कहे। वह उम्मीद का दामन नहीं छोड़ेगा।