उदय भाग १३

उदय भाग १३

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भभूतनाथजी ने आगे बताया उनकी आँखे स्वप्निल हो गयी थी। वो बोले महाशक्ति ने जैसे हम १० दिव्यपुरुषों का निर्माण किया वैसे ही कालीशक्ति ने १० पापी पुरुषों का निर्माण किया था।

इस वजह से कुदरत का संतुलन बना हुआ था उनका काम तीसरे परिमाण में पाप फैलाना और हमारा काम पुण्य को बढ़ावा देकर सतुलन बनाना था इस वजह से शक्ति का संतुलन बना हुआ था और दुनिया का सञ्चालन सही से हो रहा था और अलिखित नियम था की हम एक दूसरे को नुक्सान तो पहुचायेंगे लेकिन जान से नहीं मरेंगे। हमने एक सूक्ष्म रूप से योद्धाओं के शरीर में रहकर हजारों युद्ध किये है। एक रावण नाम का रक्ष संस्कृति का राजा था उसके शरीर में कालीशक्ति ने खुद प्रवेश किया तब महाशक्ति ने राम नाम के राजा के शरीर में प्रवेश किया और उसे हराया था और हम दिव्यपुरुषों ने उन्हें मदद की थी। ये युद्ध काफी मशहूर है इतिहास में। एक और युद्ध में मैंने भीम नामके योद्धा के शरीर में और तुमने अर्जुन नाम के योद्धा के शरीर में प्रवेश किया और बाकि दिव्यपुरुषों ने अलग अलग योद्धाओं में प्रवेश करके काली शक्ति को हराया था, जिसे महाभारत का युद्ध कहा जाता है।

उस वक़्त महाशक्ति ने शस्त्र को न उठाने का प्राण लिया था लेकिन उनकी सलाह के हिसाब से चलने की वजह से हम जीत गए थे। ऐसा नहीं है के तीसरे परिमाण में हमने सिर्फ युद्ध किये हैं। हमने भक्तिरस को भी बढ़ावा दिया। कभी संत बनकर कभी गुरु बनकर उपदेश दिए और लोगों को सही राह दिखाई है।

मुसीबत तब शुरू हुई जब पापी पुरुषों ने नियम तोड़कर असीमनाथ को भ्रष्ट किया और उसके मन में कर्म की जगह शक्तिशाली बनाने के लालसा जगाई और उसने अपनी इच्छा पूर्ण करने के लिए तैमूर नाम के व्यक्ति के शरीर में प्रवेश किया जब वो उसमे सफल नहीं हुआ तो उसने नेपोलियन नामकी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश किया और फिर हिटलर नामकी व्यक्ति के शरीर में प्रवेश किया।

कही भी उसे हमने उसे सफल होने नहीं दिया लेकिन शक्ति का संतुलन बिगड़ गया हमने हर जगह उन्हें परास्त किया। जब उसे लगा की वह हमें हरा नहीं पायेगा तो उसने छठे परिमाण में जाकर हमारे नाश के लिए हथियार लाने का निर्णय लिया जिसके लिए उसने कालीशक्ति की पूजा शुरू कर दी, जिससे उसकी शक्ति हमसे काफी बढ़ गयी। हमारे साथ निर्माण किया गया एक दिव्यपुरुष ही हमारा ही दुश्मन था। कालीशक्तिओ ने हमें परास्त करने के लिए उसे शस्त्र भी दिए।

और फिर शुरू हुई हमारी अंदरूनी लड़ाई। हम तीसरे परिमाण में थे और वह एक देश है वियतनाम जहा हम थे उस वक़्त असीमनाथ ने घात करके हमारे साथ भायों को पांचवें परिमाण में कैद कर लिया जो की महाशक्ति के बड़े नियम की अवहेलना थी। इससे क्रोधित होकर महाशक्ति ने उसे तीसरे परिमाण में फेंक दिया और उसको चौथे और पांचवें परिमाण ने प्रवेश निषिद्ध कर दिया। असीमनाथ ने इसके जवाब में तुम जिस शरीर में थे उस शरीर को नष्ट कर दिया और हमारे जाने के समय से पहले ये होने की वजह से मैंने न चाहते हुए भी महाशक्ति न नियम तोड़कर तुम्हारी आत्मा का प्रवेश एक पवित्र शरीर के गर्भ में किया जिसका नाम निर्मला था और जब समयसीमा पूरी हुई तो मैं पांचवें परिमाण में लौट गया लेकिन नियम तोड़ने की सजा मुझे भी मिली मुझे चौथे परिमाण में जाना पड़ा।


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