तूफ़ान से पहले की शांति
तूफ़ान से पहले की शांति
पति सुबह से उससे बात नहीं कर रहे थे। वो भी एक अपराधी की तरह चुप्पी साधे बैठी थी। वैसे वो हमेंशा बेहद सावधान रहती थी। पति को कभी पता न चले इसका ख्याल रखती थी। पति के ऑफिस जाने के बाद और सारे काम ख़त्म करने के बाद ही...
किसी को भी तो कभी पता नहीं चलने दिया उसने। न माता पिता न भाई बहन। सहेलियां तो स्कूल के साथ ही छूट गयी थी। पास पड़ोस में भी कभी किसी को उसने इतना घनिष्ठ होने ही नहीं दिया था कि वो ये राज की बात जान पाते। इतने सालों से इस बात को छिपा के रखा था। शायद इसीलिये कुछ लापरवाह हो गयी थी वो। अब जब बच्चे बड़े हो गए हैं और अपने अपने घर बसा चुके हैं तब पति ने उसकी चोरी पकड़ ही ली।
वो अटैची में अपनी साड़ियाँ संभालने लगी। पति ज्यादा ही नाराज हुए, तो बड़े बेटे के पास जा कर कुछ दिन बिता लेगी। लेकिन उसके बाद? पति ने बच्चों को सब कुछ बता दिया, तो कैसे नजरें मिला पाएगी अपने ही कोखजनों से।
“क्या सोचेंगे वो? कहीं पति ने उसके पिता को ये बातें बताईं तो...”
अपने आप पर गुस्सा भी आ रहा था। स्कूल में उसकी गहरी सहेली को जब पता चला था तो उसने उसे सलाह दी थी की उसे ऐसा नहीं करना चाहिए। पर उसे चैन ही नहीं मिलता था उनके बिना। वो ही तो उसकी जिंदगी के सब राज जानते थे। वो सब जो वो कभी किसी से नहीं कह पायी। वो दिन जब पहली बार किसी ने उसे छेड़ा था। साईकिल से आते हुए उसका दुपट्टा छीन लिया था। और वो दिन भी जब अल्हड़पन में प्यार के नाम पर उसने ......
उसके तन मन से जुडी हर घटना उन्हें पता थी। ये भी कि पति उसे पसंद नहीं थे। घरवालों के जोर डालने पर उसने शादी कर ली थी। ये भी कि शुरू शुरू में पति का साथ उसे यंत्रणा ही लगता था जिससे पीछा छूटने का एक एक पल गिन रही होती थी। पर उन्हें ये भी तो पता था कि धीरे धीरे वो सच में पति से प्रेम करने लगी थी।
पता नहीं पति को भी क्या सूझी ये करने की। रिटायर हो गए तो समय बिताने के लिए कुछ कुछ करते रहते थे। वो कल बाजार क्या गयी, पीछे से परछत्ती साफ़ करने लगे। वहीं उन्हें देख लिया। ढेरों डायरियों को। जिनके हर कागज़ पर उसने स्याही से अपनी आत्मा के हर अच्छे- बुरे, छोटे- बड़े अनुभव को उकेर रखा था। कुछ भी नहीं छुपाया था, पहला प्यार, पहली लड़ाई, पहली जीत, पहली हार।
शादी के पंद्रह साल बाद फेसबुक में एक अनजान पुरुष से घनिष्ठता। पड़ोस के अधेड़वय पुरुष द्वारा नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश। पति के व्हाट्सप्प अकाउंट की जासूसी। सब कुछ।
अब पति भी सब पढ़ चुके थे। पत्नी का हर राज। हर छुपाई बात। दोनों चुप थे। जैसे तूफ़ान से पहले की शांति। तूफ़ान जो अपने साथ उनका तीस साल का वैवाहिक जीवन बहा ले जा सकता था। पूरा दिन यूं ही बीता।
शाम को पति ने ही पहल की। चलो आज बाहर खाना खाने चलते हैं। वो असमंजस में थी। पर झट से तैयार हो आयी। दोनों रेस्टोरेंट गए तो उसने हमेंशा की तरह मसाला डोसा मंगवाने को कहा। पर पति ने टोक दिया। वेटर से कह उसके लिए सूप , स्टार्टर, मैन कोर्स , स्वीट डिश सब मंगवाई। उसकी पसंद की।
फिर हँस कर बोले “तुम्हारी डायरियां न मिलती तो हमें तो पता ही नहीं चलता की बस पैसे बचाने के लिए मसाला डोसा खाती आ रही हो”
ये बोलते हुए उनकी नजर में कोई गिला शिकायत नहीं थी; बस प्यार ही प्यार था।
वो उसे मुस्कुरा कर बोले "कोई नहीं पहले हमें पसंद नहीं करती थी। अब तो हमें ही प्यार करती हो और हाँ वो जूही हमारी बस सहकर्मी थी। दोस्त भी नहीं। तुम बेकार ही हमारी जासूसी करती थी"
कुछ रुक कर ठहाका मार कर बोले "वो पड़ोस का अरविन्द तुम पर डोरे डाल रहा था हमें मालूम था। आड़े हाथों लिया था उसे। बस तुम्हे बताया नहीं था। "
पति की बातें सुन वो शरमा गयी। इस उम्र में भी गाल नवविवाहिता की तरह लाल हो गए। वो ही पगली थी जो अपना घर संसार टूटने के डर से जूझ रही थी। उन दोनों का अटूट बंधन तो इतने सालों में इतना मजबूत हो गया था की दोनों की आत्माओं में प्रेम की स्याही से दिल के कागज पर अमिट हो चला था। सात जन्मों, अरे नहीं नहीं , जन्मों जन्मों के लिए।