तुमसे प्यार हुआ.....
तुमसे प्यार हुआ.....


तुम बिन मैं...कुछ भी नहीं।
तुम हो तो मैं हूँ।
तुम्हारे आने के बाद मेरी जिंदगी संवर गयी।
आशीष जब भी खुश होता वो अपने प्यार का इज़हार ऐसे ही गुड़िया के सामने करता।
गुड़िया मुस्कुराते हुए कहती अब बस भी करो।
जब शादी की बात करने घर आयोगे तब पता चलेगा कि मुझसे सच में कितना प्यार करते हो।
आशीष कहता देख लेना तुम तो मेरे ही गले में वर माला डालोगी।
गुड़िया ऐसी ही प्यार भरी नोकझोंक के बीच अपने पुराने दिनों को याद करने लगी।
उसके घर के पास की एक दीदी की शादी थी। वो भी शादी में गयी। बारात आयी, नाच गाना हुआ। उसे लगा कोई उसे बड़ी देर से देख रहा है। देखा तो एक लड़का उसे सबसे नजरे चुरा कर बार बार देख रहा था।
पूरी शादी ऐसे ही छुप छुप कर देखने का सिलसिला चलता रहा। आइस क्रीम खाने के समय भी बारातियों के सत्कार को लेकर दोनों के बीच थोड़ी नोकझोंक हुई। दूसरे दिन सुबह विदाई बाद दोनों अपने अपने रास्ते चले गए। दोनों के बीच ज्यादा बात तो नहीं हुई। बस आँखों आँखों में थोड़ी जान पहचान हो गयी।
वापस अपने घर आकर आशीष को मन नहीं लगा।
उसने सोशल मीडिया पर गुड़िया को सर्च करके फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दी। गुड़िया ने भी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर ली। फिर बातों का सिलसिला शुरू हो गया। ऑनलाइन से फिर फोन पर बातें होने लगी।
3 महीने बाद गुड़िया का जन्मदिन था। उसने आशीष से कहा कि मैं आपसे मिलना चाहती हूँ।
बस फिर क्या, आशीष घर से दोस्तों साथ घूमने जाने का बहाना बना प्यार की राहों पर चल पड़ा। वो जिंदगी में पहली बार ट्रैन में अकेले सफर
कर रहा था। उसे डर भी लग रहा क्योंकि उसने एक प्यार सा टेड्डी बियर लिया था और कुछ छोटे छोटे गिफ्ट। पूरी रात उसे नींद नहीं आयी।
प्यार का इज़हार होने के 4 महीने बाद आशीष और गुड़िया दोनों एक दूजे से मिल रहे थे। मंदिर में दोनों ने साथ में पूजा की। पुजारी जी ने कहा शादी का इरादा है क्या, गुड़िया ने कहा अभी नहीं पंडित जी, पहले घर वालों को मना ले। फिर शादी भी कर लेंगे। आशीष ने भी मुस्कुराते हुए अपनी हामी दे दी।
दूसरे दिन आशीष वापस अपने घर आ गया।
कुछ दिनों बाद आशीष के मामा की शादी थी। इत्तेफाक कहे या इनके प्यार की ताकत। बारात गुड़िया के घर के थोड़ा पास वाली जगह ही जानी थी।
प्यार से मिलने की खुशी लिए आशीष निकल पड़ा अपने प्यार से मिलने।
शादी के दूसरे दिन ही आशीष चुपके से सबसे झूठ बोल कर निकल गया कि कुछ काम है और पूरा दिन गुड़िया के साथ वक्त बिताया।
वो कहते है ना कि इश्क़ हो तो चेहरे पर नूर आ ही जाता है। कभी बिना बात का उदास होना तो कभी फोन को देख कर स्माइल करते रहना। बस गुड़िया की दादी को शक होने लगा था उस पर कि कुछ बात जरूर है और उन्होंने पता कर ही लिया।
लेकिन आशीष और गुड़िया एक ही समाज के है। ये जान कर और आशीष से बात करके उन्होंने अपनी रजामंदी दे दी।
अभी भी दोनों के घर वालों को नहीं पता इनके प्यार के बारे में।
आशीष अच्छे से सेटल होने के बाद गुड़िया के घर शादी की बात करने जाना चाहता है। दादी भी इस फैसले में उनके साथ है।
गुड़िया बस उस दिन का इतंज़ार कर रही है, जब वो आशीष की दुल्हन बने। लेकिन वो इससे पहले अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हैं।