The Stamp Paper Scam, Real Story by Jayant Tinaikar, on Telgi's takedown & unveiling the scam of ₹30,000 Cr. READ NOW
The Stamp Paper Scam, Real Story by Jayant Tinaikar, on Telgi's takedown & unveiling the scam of ₹30,000 Cr. READ NOW

Janhavi Mistry

Romance

4.6  

Janhavi Mistry

Romance

तुमको पाना चाहती है मेरी बरसातें।

तुमको पाना चाहती है मेरी बरसातें।

19 mins
377


आरज़ू नाम की एक लड़की पंजाब से चेन्नई जाने के लिए ट्रेन में सफर कर रही थी। सफर लंबा था और टाइमपास करने के लिए अब मोबाईल में बैटरी भी ज़्यादा नहीं बची थी। बारिश ज़्यादा होने वजह से खिड़कियां भी बंद थी। वो बहुत बोर हो रही थी। उसके साथ सफर करनेवाले लोग में ज़्यादातर बुजुर्ग ही थे। एक ही परिवार के लग रहे थे सब। लेकिन, बात करे भी तो क्या ? ये सोचकर वो चुपचाप आंखे बंद करके बैठी हुई थी। थोड़ी देर बाद एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी। आरज़ू ने अपनी आंखे खोली और बाहर देखने लगी। उसने सोचा कि, थोड़ी देर वो बाहर घूम आए।

जैसे ही वो बाहर निकली तो उसने सामने एक बुकस्टोल देखा। उसे पढ़ने का ज़्यादा शौक़ तो था नहीं लेकिन, उसने सोचा कि इसी बहाने बैठे बैठे टाईमपास हो जाएगा। इसलिए वो बूक खरीदने वहां जाती है।

वहां जाकर वो सारी बूक देखती है। फ़िर उसकी नज़र एक बूक पे पड़ती है। उस बूक का टाईटल था, " तुम को पाना चाहती है मेरी बरसातें।" 

टाईटल देखकर वो बोली, " इंटरेस्टिंग ... । "

उसके हाथ में वो बूक देखकर दुकानदार बोला, " बहुत अच्छी किताब है, मैडम। बहुत लोग ये किताब लेकर जाते है। बहुत डिमांड है इस किताब की हमारे यहां। "

आरज़ू मुस्कुराती है और बोलती है, "ठीक है, मुझे भी यही बूक दे दीजिए। कितने की है?"

दुकानदार ने कहा," जी 100 रूपए ।"

आरज़ू बूक के पैसे देकर ट्रेन में बैठ जाती है और किताब पढ़ने लगती है।

उस बूक में कहानी कुछ इस तरह होती है :

सब से पहले तो मैं आपको थैंक यू कहना चाहता हूं। मैंने आप सबके ई - मेल्स पढ़े। जानकार ख़ुशी हुई कि, आपको मेरी कहानियां अच्छी लगती है। थैंक यू सो मच फॉर योर लव और आगे भी ऐसे प्यार देते रहना।

चलो , तो अब मुद्दे पर आता हूं। मैंने आजतक जितनी भी कहानियां लिखी, वो सब मेरी कल्पना थी। उसके कैरेक्टर्स को मैंने जनम दिया था। लेकिन, ये कहानी मेरी अपनी है। जी हां, मेरी यानि की अरमान अख़्तर की। मेरे बचपन वाली बातें, मेरी लाइफ वगैरा वगैरा...ये तो आप मेरे 2 महीने पहले हुए इंटरव्यू में देख ही चूके हो। लेकिन, इस कहानी मैं आपको मेरी लव स्टोरी के बारे में बताऊंगा। तो चलो, मेरे साथ मेरे साथ मेरे सफ़र में सफ़र करने के लिए तैयार हो जाइए।

जैसे आपको पता है, मैं एक जर्नलिस्ट हूं। ये बात तब की है, जब मेरी नई नई जॉब लगी थी। मिडल क्लास फैमिली से हूं, इसलिए नौकरी पर आने के लिए मेरे पास ख़ुद का व्हिकल नहीं था। इसलिए मैं बस से अप - डाउन करता था। 

वैसे तो मैं एक दम टेढ़े किस्म का इंसान था। मेरे दोस्त कहते थे जब मैं कॉलेज में था, तब बहुत सारी लड़कियों का क्रश था। वैसे सच बताऊं तो मुझे भी ये बात पता थी। लेकिन, मुझे ये प्यार, मोहब्बत वगैरा वगैरा.... ये सब बात में ज़रा सी भी दिलचस्पी नहीं थी। ये सब बकवास लगता था। और हां, जहां तक ये स्टोरी , पोएम , ग़ज़ल, नज़म की बात है, इन सबसे तो हज़ारों किलोमीटर दूर रहता था। फ़िर एक दिन मेरे इस दिल की बंजर ज़मीन पे फूल खिला। कैसे खिला? चलो बताता हूं।

एक दिन की बात है। ऑफ़िस से छुट्टी होने के बाद मैं बस स्टॉप पर गया। वहां मैंने एक लड़की को देखा। बहुत ख़ूबसूरत थी वो। सागर की लहरों जैसे उसके बाल और आसमान के सितारों जैसी चमक वाली उसकी दो आंखे और उस आँखो को हाई लाईट करता हुआ काजल। सही में ऐसा ही लग रहा था कि, दिल की बंजर ज़मीन पे एक बेहद ख़ूबसूरत फूल खिल गया हो। उसके नाज़ुक से कंधे पर एक बड़ा सा बैग था। जो उसके वज़न से ज़्यादा हेवी लग रहा था। उसके मोबाईल में वो इतनी व्यस्त थी कि, कोई उसे देख रहा है ,इतना भी ख़्याल नहीं था उसे। पता नहीं ये अपसरा ने मेरे दिल पे जादू कर दिया था। बिल्कुल जन्नत की कोई हूर ही लग रही थी।

लेकिन, किसी को इस तरह से घूरना बूरी बात है ऐसा बोल कर मेरे दिमाग ने दिल को काबू में कर लिया। बस जब से उसे देखा , तब से उसे बार बार देखने की ख़्वाहिश जगने लगी। धीरे धीरे करके बस स्टॉप से सारे लोग चले गए। फ़िर एक बस आई और वो भी चली गई। लेकिन, सिर्फ मेरी आंखों के सामने से। मेरे खयालों में तो अभी भी वहीं थी। ऐसा अट्रैक्शन पहली बार हुआ था। 

फ़िर दूसरे दिन भी वो लड़की आई। फ़िर पहले दिन जैसा मेरे साथ हुआ, वैसा ही उस दिन भी हुआ। पहले दिन के जैसे ही सब लोग एक एक करके वहां से चले गए और आख़िर में वो भी चली गई। 

वो रोज़ वहां आती थी। इसलिए इतना तो पता चल गया था कि, वो भी मेरी तरह अप डाउन करती है और ये भी पता था कि, वो एक कॉलेज स्टूडेंट है। मैं रोज़ उस हूर को देखता था। कुछ कहना चाहता था उसे ,पर कह नहीं पाता था। 

ऐसे ही देखते देखते दो महीने बीत गए। रोज़ यही होता था। उसको रोज़ ऐसे देखना मेरी रिवायत बन गई थी। वैसे किसी को इस क़दर देखते रहना ख़ता तो है। इसलिए मैं उसे सिर्फ एक ही बाद देखता था। जैसे हम कहीं घूमने जाते है, तब कोई नेचरल लोकेशन देखकर उसकी तस्वीर हम अपने कैमरे में कैद कर लेते है और फ़िर इत्मीनान से बैठकर देखते है और ख़ुश हो जाते है, वैसे मैं भी उसे एक बार उसकी ओर देखकर उसकी तस्वीर अपनी आंखों के कैमरे में कैद कर लेता था और पूरे दिन उसको अपने ख़्वाबों और खयालों में बार बार देखता रहता था। बस यही सोचकर कि, शामिल ना हो भले हमारी तक़दीर में, जी भर लेंगे देखकर उनको उनकी तस्वीर में। शायद इश्क़ हो गया था उस अजनबी से। 

लेकिन क्या करता? इज़हार - ए - इश्क़ करता तो करता कैसे? वो थोड़ी एक अजनबी से बात करती!!? और वैसी भी कहते है ना, " प्यार करना ख़ता तो नहीं, ख़ता तो तब है जब हाल - ए - दिल किसी से बयान करे। तो इस तरह मेरे दिल की बात मेरे दिल में रहती थी। इसलिए मैंने मेरे दिल में उस लड़की के लिए जो भी जज़्बात थे, वो एक डायरी में लिखने शुरू कर दिए और यही डायरी अभी आप पढ़ रहे हो। हां, थोड़ा बहुत एडिट किया है मैंने। 

जब भी कभी टाइम मिलता था तो, उसे याद करके इक डायरी में लिखा करता था। लिखते लिखते पता नहीं कैसे राईटर बन गया। वैसे भी इंसान की तन्हाई उसे कवि या लेखक बना ही देती है। वैसे मैंने आज तक कोई कविता , ग़ज़ल या नज़म नहीं लिखी। लिखता भी कैसे और क्या लिखता?? वो ख़ुद एक नज़म थी। वो नज़म जो ख़ुदा ने मेरे दिल पे लिख दी थी। आती तो थी मेरे पास , पर मेरे ख़्वाबों में। लेकिन यार, बात करने की हिम्मत ख्वाबों में भी नहीं जूटा पाता था।

मेरी हर दुआओं में उसका ज़िक्र रहता था। ख़ुदा से एक ही गुज़ारिश थी कि, एक बार सिर्फ एक बार उनसे मुलाक़ात हो जाए, ज़्यादा नहीं, बस थोड़ी सी गुफ़्तगू हो जाए। अरमान के दिल का अरमान बन चूकी थी ,वो नाज़नीन । 

कहते है ना , अगर किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो, तो पूरी कायनात तुम्हें उनसे मिलाने में लग जाती है। बेशक वो चीज़ नहीं थी लेकिन, पूरी शिद्दत से उनको चाहा था। आख़िर ख़ुदा को मेरे दिल पे रहेम आ गया और हमें मिलाने में बारिश को भेज दिया।

एक दिन की बात थी। बारिश मौसम था। हड़बड़ी में मैं अपना छाता घर पर ही भूल गया था। बस स्टॉप पर बहुत भीड़ थी क्योंकि, अगले दिन रक्षाबंधन जो था। 

मैं बाहर खड़ा भीग रहा था। वो लड़की भी वहीं खड़ी थी अपना छाता लेकर। दो - तीन बार उसने अपनी निगाहों मेरी ओर देखा। मुझे अजीब भी लग रहा था और ख़ुशी भी हो रही थी। फ़िर अचानक वो मेरे पास आई और अपना छाते से मेरे सिर को ढक लिया।

वो बोली, " आप कब से बारिश में भीग रहे हो। इधर आ जाओ वरना सर्दी हो जाएगी।"

मुझे थोड़ी सी झिझक महसूस हुई लेकिन, उसने सामने से हेल्प की , तो मैंने भी मना नहीं किया। लेकिन मैं एकदम म्यूट ही खड़ा था। 

वो ही बोली, " आप जर्नलिस्ट हो ना? मैंने आपको दो - तीन बार टीवी पे देखा था। "

जब वो बात कर रही थी, तो आपको अंदाज़ा भी नहीं हो सकता कि, मुझे कितनी ख़ुशी हुई।

उसके लबों से निकला हुआ एक एक लफ़्ज़ सुनकर ऐसा महसूस होता था, जैसे शहद मुंह में टपक रहा हो। क्या बोल रहा हूं है ना मैं भी...? आपको पढ़ के भी हँसी आ रही होगी। लेकिन, सच में ऐसा ही कुछ लग रहा था। 

मैंने उसे कहा, " जी हां, मैं जर्नलिस्ट हूं, मगर मैं अभी जूनियर हूं अभी। वो तो कभी कभी जब सीनियर नहीं थे और उनको कुछ काम था, दो बार आ गया था। "

उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा, " ओह आई सी । आपका नाम तो अरमान मलिक है ना?”

मुझे इतनी ज़ोर से हँसी आई । मैं अपनी हँसी रोक नहीं पाया। उसे भी फ़िर हँसी आई और वो बोली, "ओह , ये आई एम सॉरी...। लेकिन, अरमान ऐसा ही कुछ नाम है ना? "

मैंने हँसते हुए कहा, " जी...नाम तो अरमान ही है लेकिन, मलिक नहीं अख़्तर। अरमान अख़्तर। लगता है, आप उनकी बहुत बड़ी फैन है। इसीलिए आपको मेरे जैसे जूनियर जर्नलिस्ट, जो अभी दो बार ही टीवी पर आया है उसका नाम याद रह गया। "

फ़िर वो सिर्फ इतना ही बोली, " जी हां । "

फ़िर थोड़ी देर में उसकी बस आ गई और वो चली गई।

उस दिन की रात भी कितनी सुहानी थी। अल्फाज़ों में बयान नहीं कर सकता। बस उसी के बारे में सोचता रहा पूरी रात। उसके लबों से निकले एक एक लफ़्ज़ मेरे कानो में गूंज रहे थे। वो जब हंस रही थी, तब उसकी मुस्कान...। काश !!! ज़िंदगी में भी ctrl + z जैसा बटन होता तो वापस उसी वक़्त में चला जाता। उसकी मुस्कान और मुस्कुराते वक़्त उसके चेहरे पे आकर बार बार उसे सताती हुई उसकी रेशमी ज़ुल्फें और बार बार उसकी ज़ुल्फों को बार बार अपने नाज़ुक से हाथों से अपने कान के पीछे करना....। वो वक़्त भी कितना हसीन था, जब मैं उसके करीब था। बस ऐसी ही क़ुर्बत की चाह बार बार रखता हूं । 

इस बात को एक महीना हो चुका था। एक दिन मैं जब बस स्टॉप पर गया, तो वो वहां नहीं थी। बारिश उस दिन भी बहुत हो रही थी और हवा भी बड़ी तेज़ चल रही थी। मैं वहां अपना छाता लेकर खड़ा था। अचानक मैंने सामने देखा, तो वो लड़की वहां खड़ी थी। शायद इस ओर आना चाहती थी, पर बारिश उसे रोक रही थी। ऐसा लग रहा था उसके पास छाता नहीं था। मैं रास्ता क्रॉस करते उसके पास गया और बोला, " चलिए , आज हमें आपकी मदद करने का मौका दीजिए। आइए। " वो उस पार आने के लिए तैयार हो गई। हम रोड़ क्रॉस कर रहे थे, तब बड़ी ज़ोर की हवा की लहर आई और मेरा छाता बीच रास्ते में ही टूट गया। बारिश इतनी ज़्यादा थी, इसलिए रोड़ क्रॉस करने में हमें बड़ी दिक्कत हुई। बड़ी मुश्किल से हम बस स्टॉप पर पहुंचे। हम दोनों बहुत भीग गए थे और वो लड़की वो ठंड मारे कांप रही थी। मैंने उसे पूछा, " यहां पास ही में एक होटल है वहां से मैं आपके लिए गरमा गर्म कॉफ़ी लेकर आता हूं। मेरे पास छोटा थर्मोस है।" 

उसने मेरी ओर देखकर कहा, " जी नहीं, आई एम फाईन। थैंक यू फॉर हेल्प।" 

उसकी बात सुनकर साफ लग रहा था कि, वो बात करने में झिझक रही थी। फ़िर हम दोनों वहीं खड़े रहे चुपचाप, जैसे रोज़ खड़े रहते थे।

अचानक उसको छींके आनी शुरू हो गई । छींकते छींकते उसका नाक भी लाल हो गया था। मैंने उसे कहा, " देखिए, मेरी बात मान लीजिए। कोई एहसान नहीं कर रहा हूं आप पे। आपकी बस आने में अभी देर है। मैं अभी जाकर कॉफ़ी ले आता हूं। आप वहीं ठहरिये।" 

इस बार वो मुझे मना नहीं कर पाई। करती भी कैसे ?!! छींक छींक कर उसकी हालत ख़राब हो गई थी। हां, लेकिन वो इतना बोली," मुझे कॉफ़ी नहीं पसंद। क्या आप चाय ले आएँगे? इफ यू डोंट माइंड??! "

उसने मुझसे इतना कहा, वो भी मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं मुस्कुराकर बोला, " श्यॉर। व्हाई नॉट !!! आप यहीं रुकिए , में अभी आता हूं।"

मैं अंदर अंदर ख़ुश होता हुआ वहां से गया और उसके लिए चाय ले आया। उसने चाय पीते हुए मुझे कहा, " अरमान..आप अपने लिए नहीं लाए? " पहले तो इतना अच्छा लगा अपना नाम उसके मुंह से सुनकर। 

फ़िर मैंने कहा," अ...वो मैं वहीं पे पीकर आया कॉफ़ी।" उसने कहा, " ओके।"

फ़िर वापस म्यूट मॉड पे दोनों चले गए। फ़िर उसकी बस आई और वो चली गई। 

उस दिन की रात भी बहुत हसीन लग रही थी। उसने जब अपने होठों से मेरा नाम लिया था, दिल मेरा वहीं पे पिगल गया था। बस सारी रात अरमान...अरमान बस यही उसकी आवाज़ गूंजती रही। दिल तो कर रहा था कि, जब वापस उसके साथ बात हो, तब फ़ोन का रेकॉर्डर ऑन रखूंगा और उसकी आवाज़ को अपने मोबाईल में कैद कर दूंगा। बेइंतहां इश्क़ हो गया था। बस , अब तो उसकी ही चाह थी। ख़ुदा ने आज भी इस मुफलिस दुआ सुन ली थी और मेरे दिल पे रहम खाकर बारिश को भेज दिया था। लगता है, बारिश ख़ुदा की असिस्टेंट होगी।

वही आई दो बार मिलाने में हमें। वैसे मुझे ये बारिश वाला मौसम पसंद ही नहीं था।

लेकिन , अब बारिश से भी प्यार हो गया था। 

ऐसे ही दिन बीतते गए। वो आती थी बस स्टॉप पर। मैं उसे दूर से एकबार देख लेता था। फ़िर इत्तेफ़ाक से कभी उसको अपने मोबाईल से फुरसत मिल जाती थी , तब अगर मेरी नज़र से नजरें मिल जाए, तो थोड़ा मुस्कुरा दिया करती थी। जैसे कोई दूर का रिश्तेदार मिल जाए तो, हम कंजुसाई करके मुस्कान देते है न वैसे। लेकिन, उसका एक बार दीदार हो जाता था और सारी तन्हाई दूर हो जाती थी। 

एक दिन की बात है। मैं हमेशा कि तरह नौकरी से छुट्टी हो जाने के बाद बस स्टॉप गया। लेकिन, वो लड़की वहां नहीं थी। मैंने सोचा, शायद वो आज कॉलेज नहीं आई होगी। लेकिन, उसके दूसरे दिन भी नहीं आई और तीसरे दिन भी नहीं। दो हफ़्ते हो गए लेकिन, वो दिखी ही नहीं। फ़िर मुझे मेरे एक दोस्त से पता चला कि, कॉलेज के लास्ट यर ख़तम हो चूका है। मैं बहुत मायूस हो गया। अब तो ना उसका दीदार होगा, ना बातें, ना मुलाकातें। मैं बहुत उदास हो गया था। क्या करूं ? उसे उसे कहां ढूंढू??। मैंने सोचा, " ज़िंदगी में एक बार मोहब्बत हुई लेकिन, वो भी अधूरी रह गई। " फ़िर भी मैंने उम्मीद ना छोड़ी। ख़ुदा से रोज़ दुआएँ करता रहा। बस स्टॉप के पास हररोज उसका इंतज़ार करता रहा। लेकिन, वो नहीं आई ।

एक साल ख़तम हो चूका था इस बात को और हमारी मुलाकात को। लेकिन, मैं उसे भूल नहीं पाया।

उस साल बहुत बारिश हो रही थी। उस समय एक दिन एक गांव में हमें रिपोर्टिंग करने जाना था। उस दिन बहुत ही ज़्यादा बारिश हो रहे थी। रेईनकॉट पहनने के बावजूद मैं पूरा का पूरा भीग चूका था। मैं और मेरे साथी एक घर की छत के नीचे खड़े रहे। हम जिस घर के पास खड़े थे, वहां से पीछे से आवाज़ आई , " चाय बना दूं आपके लिए?”

 आवाज़ बहुत जानी पहचानी लगी। मैंने तुरंत पलटकर देखा, तो वही लड़की खड़ी थी। उसे देखकर बहुत अच्छा लगा। इतने दिनों के बाद उसे ऐसे देखकर ऐसा लगा , जैसे रेगिस्तान में फंसे किसी मुसाफ़िर को पानी मिल गया हो। मैंने उसको कहा, "नहीं जी, इट्स ओके। ये तो हमारा रोज़ का काम है। आदत है हमें। " 

फ़िर उसने नीचे देखकर कहा, " एहसान नहीं कर रहे है। सिर्फ़ चाय के लिए पूछ रहे है। देर नहीं लगेगी। अभी बन जाएगी।" 

मेरा ही डायलॉग उसने मुझे सुनाया। फ़िर उपर मेरी ओर देखकर हल्की सी मुस्कान दी। 

मैंने भी हंसते हुए कहा," ठीक है।"

मेरा एक साथी कुछ बोल रहा था। लेकिन, अपने पैर से उसकी उंगली को ज़ोर से दबाकर उसको चूप रहने को कहा। 

वो लड़की अपने घर के अंदर चली गई। उसके जाने के बाद मेरे साथी ने मुझसे कहा, "क्यों भाई , ऑफीस में तो चाय नहीं पीता। तुझे तो उल्टी आती है न चाय का नाम सुनकर ?।?आज तक कभी चाय नहीं पी और आज इस लड़की को चाय के लिए हां बोल दिया? चक्कर क्या है भाई? "

मैंने जूठा गुस्सा दिखाकर कहा, " हां , नहीं पसंद। लेकिन, आज पीने का मूड है। चूप रहो तुम अब।"

मेरी बात सुनकर वो हंस पड़ा।

उतने में वो लड़की चाय लेकर अाई। आपको पता है, बड़ी मुश्किल से चाय पी मैंने। लेकिन, कुछ नहीं उसके हाथों से तो ज़हर पीना भी ग़वारा‌‌ है मुझे। फ़िर ये चाय क्या चीज़ है।!! 

मैंने चाय पीकर उसे कहा," जी, चाय बहुत अच्छी थी। थैंक यू फॉर चाई।"

वो कुछ नहीं बोली।

सिर्फ मुस्कुराई और चाय का कप लेकर अपने घर के अंदर चली गई।

फ़िर मैं और मेरे साथी भी वहां से चले गए। जाते वक़्त रास्ते में अचानक मेरी तबियत ख़राब हो गई। मुझे वॉमिटींग होने लगी। वो तो अच्छा था कि, वहां एक डिस्पैंसरी थी। उधर से दवाई ली, तब थोड़ी राहत मिली। मेरे साथी ने मुझसे कहा, " पता था ना, चाय पीने से ऐसा होगा। चाय से इतनी एलर्जी होने के बावजूद तूने चाय पी। चक्कर क्या है, भाई?" 

मैंने उसे कहा, " तुम नहीं समझोगे। " 

वो मेरी और देकर मुस्कुराया जैसे वो समझ चूका था। फ़िर ज़्यादा वक़्त बर्बाद ना करते हुए हम वहां से ऑफिस वापस आने के लिए निकल गए। 

उस दिन की रात भी बहुत हसीन थी। उस दिन का हर एक लम्हा मैंने याद किया और उसके मुलाक़ात हुई थी, उस वक़्त को बार बार रिवाइंड किया। हां, चाय पीने से थोड़ी से तकलीफ तो हुई, पर वो कहते है ना, प्यार में थोड़ा सा दर्द तो होता ही है। बाय ध वे, चाय बहुत अच्छी थी, उस अप्सरा के हाथों से जो बनी थी। 

अब तो मुझे मॉनसून सीज़न से प्यार हो चूका था । आख़िर, तीसरी बार भी उसी ने ही तो हम दोनों को मिलाया था। 

बस ये हमारी आख़री मुलाक़ात थी। उसके बाद से लेकर आज तक हम दोनों नहीं मिले। 

एक बार की बात थी। जब मैं अपने घर था, तब मेरी अम्मी ने मुझसे कहा, " तो, इश्क़ हो गया है हमारे साहबज़ादे को क्यों? और ये बात अपनी अम्मी से छुपाई, हं ??!! "

मैं हैरान हो गया कि, अम्मी को कैसे पता चला? फ़िर मुझे कुछ याद आया और मैं बोला, " मतलब अम्मी आपने मेरा कमरा साफ किया? वो भी बिना मेरी इजाज़त के?"

अम्मी मेरी बात सुनकर दुःखी हो गए। फ़िर मैंने अपनी अम्मी को गले लगाया और कहा, " सॉरी अम्मी ।"

अम्मी ने कहा," ठीक है, ठीक है। अच्छा ये तो बता उस लड़की नाम क्या है? पूरी डायरी में

' वो लड़की ' , ' उस लड़की ' ऐसा ही लिखा है!!?"

मैंने अपने सिर पर हाथ रखकर कहा, " ओ तेरी, मैंने तो उसका नाम ही नहीं पूछा।!!"

अम्मी ने प्यार से मेरे सिर पर थपकी लगाते हुए कहा, " लो कर लो बात। तीन बार साहब मिले और उस लड़की का नाम तक नहीं पता?

अच्छा छोड़ो; जब मिलो, तब पूछ लेना और हां, इश्क़ तो कर लिया, अब इज़हार कब करोगे?”

अम्मी के इस सवाल से मैं सोच में पड़ गया।

फ़िर अम्मी ने मेरे सिर पे हाथ रखकर प्यार से कहा, " बेटा, इश्क़ करना ख़ता नहीं है और ना ही इज़हार करना। ख़ता तो ज़बरदस्ती करने में है। देखो, इश्क़ का इज़हार बेशक़ करो। मगर, दो परिस्थिति के लिए रेडी रहो। पहली, अगर वो हां करे तो वेरी गुड़ और दूसरी अगर वो ना करे, तो कोई बात नहीं। उसकी मर्ज़ी । मगर इश्क़ करने के लिए किसी पे ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं करते। समझे??”

अम्मी की बात सुनकर मैंने कहा, " हां अम्मी, अब जब भी मैं उसे मिलूंगा, तो दिल की बात करने कि कोशिश करूंगा।"

अम्मी ने मेरे गालों पे हाथ रखकर कहा, " ठीक है बेटा, अब सो जाओ। वो तुम्हारा इंतेज़ार कर रही होगी, तुम्हारे ख़्वाबों में। "

मैं शर्मा गया। मुझे देखकर अम्मी ने हल्की सी मुस्कान दी और चले गए।

और वाकई , वो मेरा इंतज़ार कर रही थी, ख़्वाबों में । 

मैंने ठान लिया था कि, अगली बार वो मिले तो अपनी दिल की बात उसे कहकर ही रहूंगा। मगर जैसे कि मैंने आगे भी बताया, वो मुलाक़ात हमारी आख़री मुलाक़ात थी। फ़िर हम कभी नहीं मिले। आज 3 साल हो गए। लेकिन, उसका कोई अता पता नहीं। उसके घर जाकर मैंने देखा भी था, लेकिन हर बार जब भी गया, ताला ही मिला। लेकिन, मैं मायूस नहीं हुआ। मेरे पास भले वो नहीं थी, पर उसके साथ बिताए हुए कुछ पल की यादें थी । इतना भी बहुत था मेरे लिए।

3 तीन साल में बहुत कुछ बदल चूका था। मेरा प्रमोशन भी हो चूका था। एक आलीशान महल जैसा एक घर था। अपनी ख़ुद की गाड़ी थी। बस कमी थी, तो बस उसकी, जिसको मैं अपना दिल दे बैठा था। जिसके दीदार के लिए मेरी आंखे तरस गई थी। अम्मी ने कई बार मुझसे कहा कि, बेटा कोई अच्छी लड़की देखकर शादी कर ले। लेकिन, नहीं मुझे ये मंज़ूर नहीं था। 

मुझे आज भी विश्वास है मेरे अल्लाह पे और उनकी अस्सिटेंट वो बारिश पे। वो मुझे उस नाज़नीन से मिलाने ज़रूर आएगी। बारिश का मुझे हमेशा ही बेसब्री से इंतज़ार रहता है। जब भी बारिश होती है, उसके क़ुरबत की उम्मीद रहती है। वो मुझे मिलेगी और ज़रूर मिलेगी आज नहीं तो कल और वो ही बनेगी मेरी शरीक - ए - हयात, ओर कोई नहीं ।


चेन्नई का स्टेशन आ गया और ट्रेन रुक जाती गई। आरज़ू का अभी बुक का आख़री पन्ना पढ़ना बाकी था। लेकिन, आरज़ू फटाफट से वो आख़री पन्ना पढ़ के ट्रेन से उतर गई।

स्टेशन पे उसके दोस्त उसका इंतज़ार कर रहे थे।

उनमें से एक दोस्त बोला," अच्छा हुआ तुम आ गई, थोड़ी सी देर हुई, मगर कुछ नहीं। चलो, अब जल्दी।"

आरज़ू ने कहा, " नहीं यार, मम्मी का मैसेज था। मेरी मुंबई वाली मौसी की तबियत थोड़ी ख़राब है। मम्मी का जाना पॉसिबल नहीं, इसलिए, इमेडियटैली मुझे ही जाना पड़ेगा। अभी अभी मैसेज आया। "

उसके दोस्त मायूस हो गए क्योंकि, उनकी बेस्ट फ्रैंड उनके साथ नहीं आ रही थी।

उन्होंने कहा," ठीक है। तुम जाओ।"

आरज़ू चेन्नई से मुंबई जाने वाली ट्रेन का इंतज़ार करने लगी। थोड़ी देर में ट्रेन आ गई और आरज़ू उसमे बैठ गई। घंटो बाद मुंबई स्टेशन आ गया।

आरज़ू जल्दी से ट्रेन से उतर गई और रिक्शा लेकर एक घर पर पहुंची। वहां एक औरत ने दरवाज़ा खोला और उससे कुछ कहा।

फ़िर वो भागती हुई वापस एक रिक्शा में बैठकर जुहू बीच पे पहुंची।

वहां जाकर वो एक लड़के के पीछे खड़ी हो गई और बोली, " अरमान....!!!।"

दरसअल बात ये थी कि, आरज़ू ही वो लड़की थी, जिसका ज़िक्र अरमान ने अपनी बुक में किया था। पूरी बुक पढ़ने के बाद, वो अरमान से मिलने के लिए बेताब थी। उसने पब्लिशर का नाम पढ़ा और उनसे कॉन्टैक्ट किया। दिलचस्प बात तो ये थी कि, पब्लिशर अरमान का दोस्त था। उस जब ये पता चला, तो वो बहुत ख़ुश हो गया और उसने अरमान का एड्रेस ही आरज़ू को दे दिया। इसलिए उसने चेन्नई से मुंबई आनेवाली ट्रेन पकड़ी। जिस घर पे वो गई थी, वो घर अरमान का ही था। वहां अरमान कि अम्मी को जब उसने अपना परिचय दिया, तो उसकी अम्मी बहुत ख़ुश हो गई और अरमान जुहू बीच पर गया है , वो भी उन्होंने ही आरज़ू को बताया।

अरमान की बुक के आख़िरी पन्ने पे क्या लिखा था पता है आपको? - ' मुझे उसका नाम तो पता नहीं, पर वो अरमान कि आरज़ू थी। बस अब मुझे मेरी आरज़ू की जुस्तजू रहेगी। ' 

अरमान 3 साल पहले वाली जानी पहचानी आवाज़, जो अक्सर उसके कानों में गूंजती रहती है, वो सुनकर सहसा पलट गया और आरज़ू को उसके सामने देखा। ऐसे तीन साल बाद आरज़ू को अपने सामने देखकर उसे पता ही नहीं चला कि, वो उसे क्या कहे? और कैसा बर्ताव करे?

उसने हैरानी से कहा," आप...??? यहां??? मुंबई में??? कैसे?"

अरमान कुछ समझ पाता, आरज़ू उसके गले लग गई और बोली, " अगर मैं अरमान की आरज़ू हूं, तो तुम आरज़ू के अरमान हो। "

अरमान ने आरज़ू को अपने से अलग करते हुए उसकी आंखों में देखकर पूछा, " तो क्या तुमने मेरी बुक...??

आरज़ू ने कहा," हां, आज ही पढ़ी। इतना प्यार करते थे मुझसे कि, पूरी बुक ही लिख डाली मुझ पे??"

अरमान ने कहा, " हद से ज़्यादा। उतना की तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं होगा।"

आरज़ू ने कहा," है अंदाज़ा, तुम्हारे अल्फ़ाज़ों के ज़रिए , तुम्हारे जज़्बात समझ गई हूं और मैं ही तुम्हारी शरीक - ए - हायात बनूंगी।"

अरमान हंस पड़ा और बोला, " शरीक - ए - हायात नहीं, शरीक - ए - हयात।"

आरज़ू बोली, " वो जो भी हो, मैं ही बनूंगी।"

ऐसा बोलकर वो अरमान के गले लग गई।

अरमान की आंखों में आँसू थे। आख़िर उसकी जुस्तजू जो पूरी गई थी। और मज़े कि बात तो ये थी कि, बारिश तब भी हो रही थी।



Rate this content
Log in

More hindi story from Janhavi Mistry

Similar hindi story from Romance