कीचड़ का फूल
कीचड़ का फूल
रात का वक़्त था। दिन की भागदौड़ और शोर से थका हुआ यह शहर रात के 3:30 बजे एक दम शांत शांत सोया हुआ था। बस थोड़ी थोड़ी चहल पहल मुश्किल से हो रही थी गाड़ियों की।
इस शांत शांत शहर की गेहरी अंधियारी सड़क पे रोशनी डालती हुई डॉ. कार्तिक की काले रंग की Hundai Creta car जा रही थी। अचानक डॉ. कार्तिक ने देखा कि सड़क के किनारे एक छोटे से मंदिर के पास एक 67-69 साल की एक महिला बैठी थी और उसकी गोद में 20-21 साल की एक ख़ूबसूरत सी लड़की सोई हुई थी। दोनों खानदानी घर के लग रहे थे। गाड़ी पे डॉक्टर का लोगो देखकर उस बूढ़ी महिला ने हाथ दिखा कर गाड़ी को रुकने का इशारा किया। इंसानियत के नाते डॉ. कार्तिक ने गाड़ी रोकी।
उस महिला ने कहा, "आप डॉक्टर हो ना? मेरी ये बच्ची बहुत बीमार है और अपनी आँखें नहीं खोल रही। मैं हाथ जोड़ती हूँ, आप कुछ मदद कीजिए ना।"
डॉ. कार्तिक ने कहा, "माँजी, आप टेंशन मत लीजिए, मैं देखता हूँ इन्हें।"
डॉ. कार्तिक उस लड़की को देखता है और बोलता है,"माँजी, इनकी हालत बहुत नाज़ुक है और मैं तो एक psychiatrist हूँ और इन्हें तो किसी specialist की ज़रुरत है।"
उस महिला ने कहा, "अब मैं इसे ऐसे लेकर कहाँ जाऊँगी? "
डॉ. कार्तिक ने कहा, "माँजी, आप मेरी गाड़ी में बैठ जाइए, मैं आपको डॉक्टर के पास ले जाता हूँ, वो मेरा दोस्त भी है।"
उस महिला ने कहा, "ठीक है।"
डॉ. कार्तिक उस लड़की और महिला को लेकर एक हॉस्पिटल में जाते हैं।
डॉ. कार्तिक एक अपने दोस्त के केबिन में जाते हैं।
डॉ. कार्तिक को देखकर वो डॉक्टर बोलते है, "आओ कार्तिक, बोलो आज आपको हमारी याद कैसे आ गई? "
डॉ. कार्तिक बोले, " यार अभिषेक, एक प्रॉब्लम है। एक लड़की को हाई फिवर है और वो बेहोश हो गई है। तू ज़रा थोड़ी हेल्प कर दे ना। उसके साथ एक बूढ़ी माँजी है। वो दोनों मुझे एक सुनसान सड़क के किनारे मिले...
डॉ. कार्तिक की बात बीच में रोक कर डॉ. अभिषेक बोलते हैं, "ठीक ठीक है। मैं उस चेक कर लेता हूँ। अगर बातों मे टाईम बर्बाद किया तो शायद उसकी जान जा सकती है।
डॉ. अभिषेक थोड़ी देर बाद रूम से बाहर आते है।
डॉ. कार्तिक और माँजी उनसे पूछते हैं कि ,"क्या हुआ? वो ठीक तो है ना ?"
डॉ. अभिषेक बड़ी शांति से उस महिला को पूछते हैं, "क्या इन्हें कोई मानसिक तनाव है?"
उस महिला ने कहा, "हाँ, डॉक्टर साहब, इसकी अभी तक की पूरी जिंदगी तनाव में ही गुज़री है। लेकिन, आप ये क्यूँ पूछ रहे हैं?? "
डॉ. अभिषेक ने कहा, "इसका इनके दिमाग पे काफी गहरा असर हुआ है। इसलिए इनकी ऐसी हालत हुई थी। मैंने उनको ठीक कर दिया है लेकिन..... "
"लेकिन क्या??? " उस महिला ने पूछा।
डॉ. अभिषेक ने कहा, "देखिए माँजी, मेरी बात ध्यान से सुनिए। मैंने आपको पहले कहा की इन सब तनाव की वजह से इनके दिमाग पर गहरा असर हुआ है। ये लड़की का दिमाग एक छोटे बच्चे जैसा हो गया है मानसिक तौर से और अब ये एक छोटे बच्चे की तरह से ही बर्ताव करेगी, लेकिन उसको उसकी बीती हुई ज़िंदग़ी याद रहेगी। आपको इनका बहुत ही ध्यान रखना होगा, इसे पिछली जिंदगी को याद करके दुःख नहीं होना चाहिए वरना इसकी दिमागी हालत और ख़राब हो सकती है।"
ये सुनकर वो महिला चौक सी गई और वो फूट फूट कर रोने लगी। "
डॉ. कार्तिक ने उनसे कहा," माँजी आप फ़िक्र मत कीजिए, मैं हूँ ना। मैं एक psychiatrist हूँ। मैं आपकी मदद करूँगा, जब तक ये पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती। आप इनको मेरी क्लिनिक पे लेकर आना। ठीक है? "
वो महिला उदास होकर बोले, "लेकिन हमारा ना तो कोई ठिकाना है और ना आपको देने के लिए पैसा। ये थोड़े पैसे वो अभी यहाँ खर्च हो जाएँगे।"
डॉ. कार्तिक ने कहा,"आप टेंशन मत लीजिए। आप दोनों मेरे घर रह सकते हो और आपसे fees किसने माँगी? वैसे भी मैं घर पर अकेला रहता हूँ। मेरे मम्मी - पापा बिज़नस के सिलसिले में विदेश में ही रहते हैं। मुझे इस बहाने कंपनी भी मिल जाएगी। ठीक है? "
उस महिला ने कहा, " लेकिन..... "
"लेकिन वेकिन कुछ नहीं, आप मेरे साथ रहेगी बस।"
वो महिला फ़िर कुछ बोल नहीं पाई।
असल में बात ये थी कि जब डॉ. कार्तिक ने उस लड़की को देखा था तब उनको दिल में कुछ अजीब सा महसूस हुआ था, जो ऐसा आज से पहले कभी नहीं हुआ था। उनको उस लड़की से प्यार हो गया था पहली ही नज़र में।
उन्होंने डॉक्टर की fees भी ख़ुद चुका दी और दोनों को अपने घर ले आए।
डॉ. कार्तिक ने उस लड़की से बड़े प्यार से पूछा, " आपका नाम क्या है? "
क्योंकि वो लड़की का मन एकदम छोटे 3-4 साल के बच्चे जैसा हो गया था इसलिए वो बोली, " मेला नाम छिवांछी है।"
डॉ. कार्तिक ने प्यार से हँसकर पूछा, " छिवांछी??? ये कैसा नाम है? "
वो लड़की बहुत जोर जोर से हँसने लगी और कहा, "छिवांछी नहीं छिवांछी....।"
डॉ. कार्तिक हँसने लगे। फ़िर उस माँजी ने कहा, "इसका नाम शिवांशी है।"
डॉ. कार्तिक ने शिवांशी से कहा, " अरे, आपका नाम तो बहुत प्यारा है और मैं पागल आपका नाम बिगाड़ रहा था, छिवांछी कहकर... "
सब हँसने लगे।
शिवांशी ने डॉ. कार्तिक से पूछा, " आप का नाम त्या है? "
डॉ. कार्तिक ने प्यार से कहा," मेरा नाम कार्तिक है और मैं एक डॉक्टर हूँ। "
शिवांशी ने कहा, "आपका नाम भी बोहोत अत्छा है ,
डॉ. टारतिक। "
अपना ये बिगड़ा हुआ नाम भी उनको बहुत प्यारा लग रहा था। वो बस शिवांशी के मासूम चेहरे को प्यार से देखते रहे और उसकी प्यारी प्यारी बच्चों जैसी बातें सुनते रहे।
जब शिवांशी रात को सो गई, तब डॉ. कार्तिक माँजी के पास गए और बोले, " माँजी, आपने हॉस्पिटल में कहा था की शिवांशीजी की सारी ज़िंदग़ी तनाव से भरी हुई है। आप बताइए इनकी कहानी क्या है? और आप उनकी क्या लगती हो? मैं इन्हें जानना चाहता हूँ, तभी तो इनका इलाज कर पाऊँगा। ”
उस महिला ने कहा, " मेरा नाम सरिता है और मैं शिवांशी की आया हूँ। उसके बचपन में मैं ही उसका ख़याल रखती थी और उसकी परवरिश भी मैंने ही की है। उसको मुझसे अलावा कहीं से भी प्यार नहीं मिला। उसके माँ - बाप ने एक अनाथ बच्ची को पनाह दी थी उनके घर में और दिल में। उस बच्ची के साथ अन्याय और भेदभाव न हो इसका ख़याल रखते रखते वो अपनी ख़ुद की बेटी के साथ नाइंसाफी कर बैठे। शिवांशी को कभी भी माँ - बाप का प्यार नहीं मिला। जब दोनों बच्चियाँ बड़ी हुई तब शिवांशी पढ़ाई लिखाई में हमेशा पीछे रही। क्योंकि उसको आर्ट्स में interest था। Dancing, Writing, Crafting , Singing ये सब इसकी hobbies हैं और ये बात उसके माँ - बाप को अच्छी नहीं लगती थी और एक दिन इसी वजह से शिवांशी के माँ बाप उसके साथ बहुत बड़ा झगड़ा हुआ और उन्होंने इसको घर से बाहर निकल जाने के लिए कह दिया। जब मैंने उनको समझाने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि, "इतना ही इसपे रहम आ रहा है तो इसको लेकर निकाल जा यहाँ से, हम इसकी सूरत भी नहीं देखना चाहते। " मैं तुरंत उसको लेकर निकल गई, लेकिन कहाँ जाए ? ये समझ में नहीं आ रहा था हमें। इसलिए मंदिर के पास बैठे थे हम। पूरी रात वो मेरे गोद में सर रखकर रोती रही और फ़िर अचानक से उसका बदन गरम होने लगा और वो बेहोश हो गई। अब आगे की कहानी तो आपको पता ही हैं। शिवांशी हमेशा उसके दिल की बात एक डायरी में लिखती थी।
डॉ. कार्तिक की आँखों में नमी दिख रही थी। वो बोले, " क़ाफ़ी दर्द भरी कहानी है इनकी। अच्छा क्या मैं इनकी डायरी देख सकता हूँ? "
सरिताजी ने उनको शिवांशी की डायरी दिखाई। डॉ. कार्तिक ध्यान से वो डायरी पढ़ने लगे। डायरी के आखरी पन्ने पे facts करके कुछ पंक्तियाँ लिखी ही थी। उसमें से एक पंक्ति को देख के वो बोले, " प्रोमिस करता हूँ, तुम्हारी ये बात ग़लत साबित करके ही दम लूँगा।"
उसके बाद हर दिन सुबह शिवांशी को सरिताजी कहती थी कि बेटा नाश्ता बन गया है डॉक्टर साहब को बुलाओ। तब शिवांशी बड़े प्यार से बुलाती थी, " डॉक्टल टारतिक, तलो नात्ता लेडी है। " शिवांशी की ये आवाज़ डॉ. कार्तिक की मॉर्निंग को और भी गुड बना देती थी।
डॉ. कार्तिक शिवांशी के साथ उसके जैसे ही बच्चे बन जाते थे। उनको शिवांशी के साथ वक़्त बिताना अच्छा लगा था।
वो बहुत प्यार करते थे उससे।
अगले हफ़्ते क्रिसमस आ रही थी। शिवांशी ने डॉ. कार्तिक से पूछा, " डॉक्टल टारतिक, ये संता क्लॉज सच में होते है ? "
डॉ. कार्तिक ने कहा, " हाँ, होते तो है। "
शिवांशी ने कहा, "तो त्या वो मेली विस् पुली करेंगे?? "
डॉ. कार्तिक ने कहा, " हाँ, आप अपनी wish को सॉक्स में रख के उसको विंडो पे लगा देना। वो आपकी wish पूरी कर देंगे।"
शिवांशी ने कहा, "ठीत है, मैं ऐछा ही कलूँगी। "
क्रिसमस के दिन डॉ. कार्तिक ने जब उसकी wish देखी तो उनको पता चला कि शिवांशी रिहान ख़ान से मिलना चाहती थी। डॉ. कार्तिक उसको जानते थे। रिहान ख़ान उसका दोस्त था और मशहूर राइटर भी। शिवांशी जब ठीक थी तब हमेशा उसकी लिखी हुई किताबें पढ़ती थी और उसकी बहुत बड़ी फेन थी। उसने ये बात उसकी डायरी में लिखी थी, इसलिए डॉ. कार्तिक को पता था।
वो क्रिसमस के दिन संता क्लॉज बनके उसके दोस्त को ले आए। शिवांशी रिहान ख़ान को देखकर बहुत ख़ुश हुई और बहुत बातें की उसके साथ।
फ़िर जाते वक़्त रिहान ने डॉ. कार्तिक से पूछा, " कैसे.... मतलब तुम इस लड़की को कैसे प्यार कर सकते हो? तुम्हारा कोई भविष्य नहीं है इस लड़की के साथ और ये तुम्हारी हमदर्दी है प्यार नहीं। "
डॉ. कार्तिक ने कहा, " रिहान, at least तुमसे ये उम्मीद नहीं थी। तुम एक लेखक होकर भी मेरे प्यार को नहीं समझ पाए तो किसी और से क्या उम्मीद रखना!! ? इसके साथ मेरा भविष्य है या नहीं मुझे नही पता, लेकिन मेरा वर्तमान बहुत अच्छा है। मैं बहुत ख़ुश हूँ। प्यार में ना तुम होता है न मैं। प्यार में हम होता है। इस तरह मैं उसका हमदर्द हूँ । जब से इसे साथ रहने लगा हूँ तब से मानो मेरी ज़िंदग़ी को मुस्कुराने की वजह मिल गयी है। मुस्कुराना सिख गया हूँ मैं। I really love her Rihaan.
मुझे इसकी डायरी में लिखी हुई एक लाइन को ग़लत साबित करना है, " कीचड़ में खिले फूल को लेने कोई राजकुमार नहीं आता।"
रिहान ने कहा, "तो तुम उसके राजकुमार बनना चाहते हो? "
डॉ. कार्तिक ने मुस्कुराकर हाँ कहा।
रिहान ने कहा, " और शनाया का क्या? "
डॉ. कार्तिक ने कहा, "उसके साथ मेरा दो महीने पहले ब्रेकअप हो गया।"
रिहान ने कहा, "दुआ करता हूँ कि तुम को तुम्हारा प्यार मिल जाए।"
डॉ. कार्तिक ने कहा, " बस एक बार उसके मुँह से कार्तिक सुनना चाहता हूँ। वैसे डॉक्टल टारतिक भी बड़ा प्यारा लगता है। "
रिहान डॉक्टर साहब का सच्चा प्यार देख के बस इतना ही बोल पाए ALL THE BEST.
देखते देखते 3 साल बीत गए। धीरे धीरे करके शिवांशी पूरी ठीक हो गई वो एकदम नॉर्मल इंसान जैसी हो गई और वो भी धीरे धीरे वो डॉ. कार्तिक से प्यार करने लगी थी। लेकिन, वो उनसे कह नहीं पाती थी क्योंकि, वो डॉ. कार्तिक के एहसान और इंसानियत का फायदा नहीं उठाना चाहती थी।
और इस तरफ डॉ. कार्तिक भी उस अपने दिल की बात नहीं की क्योंकि, कई बार शिवांशी ने उनसे कहा था कि उनके इस एहसान के बदले वो उनसे जो मांगेंगे वो देने की लिए तैयार है। और डॉ. कार्तिक इसकी ये बात का प्यार माँगकर फायदा नहीं उठाना चाहते थे। उनका मानना था कि अगर वो अपने प्यार का इज़हार भी करते तो वो उनके एहसान का बदला चुकाने के लिए हाँ कहती और उनका प्यार तो एक सच्चा प्यार था, कोई एहसान वेहसान तो था नहीं । डॉ. कार्तिक को उनके दोस्त रिहान समझाते भी थे, लेकिन उन्होंने अपने दिल की बात दिल में ही रखी।
शिवांशी पूरी तरह से ठीक हो गई, लेकिन वो डॉ. कार्तिक को डॉक्टर साहब ही कहती थी।
देखते देखते और एक साल बीत गया। एक दिन शिवांशी डॉ. कार्तिक के पास आकर बोली, " डॉक्टर साहब, मुझे एक लड़के से प्यार हो गया है। क्या उसे मिलाने में आप मेरी हेल्प करोगे? "
ये बात सुनकर धक्का तो बहुत लगा लेकिन वो मुस्कुराकर बोले, " क्यों नहीं शिवांशी! कौन है वो? उसकी तस्वीर तो दिखाओ। तुम्हारे लिए मोती ढूँढने मैं सागर में कूदने के लिए भी तैयार हूँ। "
शिवांशी उनको अपने कमरे में ले गई और आईने के सामने उनको खड़ा कर दिया और बोली, " ये है वो लड़का।"
डॉ. कार्तिक बड़ी हैरानी से देख रहे थे तब शिवांशी बोली, "अगर मोती ढूँढना चाहते हो मेरे लिए, तो मेरी आँखों में देखो, सागर में कूदने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी। कीचड़ में से तो वैसे भी निकाल लाए आप मुझे राजकुमार जी, अब मेरा हाथ भी थाम लीजिए। "
डॉ. कार्तिक ख़ुश तो बहुत हुए, लेकिन उनके चेहरे पे हैरानी दिख रही थी ।
शिवांशी उनकी हैरानीयत समझ गई और बोली, " ये किताब देखो ' TRUE LOVE '। ये रिहान ख़ान ने लिखी है। ज़रा देखो इसे।"
डॉ. कार्तिक ने जब वो किताब देखी तो उन्हें पता चला कि ये पूरी किताब रिहान ने उनके उपर ही लिखी थी और वो हर बात लिखी थी जो उन्होंने रिहान को कही थी।
डॉ. कार्तिक कुछ न बोल पाए क्योंकि, वो जो भी बोलना चाहते थे वो ये किताब पहले ही बोल चुकी थी।
फ़िर अचानक शिवांशी बोली, " I LOVE YOU KARTIK "
डॉ. कार्तिक भावुक आवाज़ में बोले , " क्या बोली तुम?
कार्तिक....!?? तुम ....तुम सच में कार्तिक बोली? "
शिवांशी ने कहा, " हाँ कार्तिक.... "
और उनकी आँखें ख़ुशी से भर आई और उन्होंने प्यार से शिवांशी को गले लगा लिया और बोले, " I LOVE YOU TOO SHIVAANSHI."
तो इस तरह कीचड़ में खिले इस प्यारे से फूल को उसका राजकुमार मिल गया।