तुम्हारा काम नहीं है क्या
तुम्हारा काम नहीं है क्या
मैं उन दिनों अपना कालेज की पढ़ाई पूरी कर अपने गांव में रह रहा था। साइंस का छात्र होने के कारण में छोटे छोटे मशीन के कार्य प्रणाली को बखूबी समझता था I मैंने ट्राईसेम योजना से इलेक्ट्रिशियन का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था I कुछ सामन्य मेडिसिन की जानकारी भी थी कि कौन सी फार्मूला की मेडिसिन किस काम आता है I खास बात तो य़ह था कि मैं अँग्रेजी अच्छे से समझ जाता जो प्रायः गांव मे इक्के दुक्कों को आता है।
मैं जब फुर्सत में होता गांव में दोस्तों के पास बैठता उनके साथ घूमता। उन लोगों को मेरे योग्यता का ग्यान होते गया और वे अपने छोटे छोटे समस्या को मुझे बताते और में उनका काम कर दिया करता ,जिसके काम के लिए वे दिनों तक किसी मेकेनिक का चक्कर लगाते।
अब मेरी ख्याति बढने लगा कोई पंखा न चलने पर तो कोई डॉक्टर के पर्चे के अनुसार मेडिसिन खाने के लिए या किसी को ईलाज करवाने शहर ले जाना हो अन्य कोई सुझाव या सहयोग। मैं हमेशा ब्यस्त रहता वो भी बिन पैसे लिए।
दिन ब दिन काम बढ़ चला। मै निस्वार्थ काम लगन से करता पर एक बार की घटना ने मेरे आगे सवाल खड़ा कर दिया , जिसका उत्तर मै आज भी ढूढ़ता हूं।
हुआ ये कि गांव मे एक लड़का मेहमान बनके एक घर आया, और संयोग से उनके घर का टेबल पंखा बिगड़ गया। उन लोगों ने मुझे बुलवा भेजा और मैं सामन्य जांच परख के बाद पंखे को खोल कर बनाने लगा ,वह लड़का पास बैठ सब देख रहा था, उस घर के लोगों ने मेरा परिचय और काम उसको बताने लगे I मैं उस लड़के को लगन से देखते देख पूछ बैठा-"क्या तुम्हें भी पंखा बनाना आता है I" लड़के ने तबाक से कहा-"मैं ये सब काम नहीं करता ये सब लताड़ू लोगों का काम है,तुम्हारा काम नहीं है क्या ?" मैं तब भी निरुत्तर था और आज भी निरुत्तर हूं ।
आज मै रोजगार करता हूं और मेरे पास उन सब काम के लिए समय नहीं है।पर आज मै खुद से पुछता हूं कि यदि किसी कोई काम कर खुशी मिलता है और वो निस्वार्थ बिन पैसे लिए काम कर दे तो क्या वह काम, काम नहीं है क्या ?
उस दिन से मेरे मन मस्तिष्क में सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहे हैं वो चेहरा मेरे सामने दृष्टी पटल पर, वो आवाज कर्ण पटल को बेधती हुई।
औऱ मैं मानव समाज से पूछता हूं क्या वह काम , काम नहीं है, क्या यह सिर्फ निठल्लों का काम है,या यह समाज निठल्ला है जो सिर्फ अपने खातिर काम करता है।