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Sheikh Shahzad Usmani शेख़ शहज़ाद उस्मानी

Tragedy

3.8  

Sheikh Shahzad Usmani शेख़ शहज़ाद उस्मानी

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तुम यूँ ही ख़ूबसूरत हो (लघुकथा)

तुम यूँ ही ख़ूबसूरत हो (लघुकथा)

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वह एक नवीन मेकअप के साथ किसी मोबाइल ऐप्लिकेशन माफ़िक़ अपडेटिड रूपेण सब के समक्ष इतरा रही थी। वर्षों बाद उसने ऐसा आकर्षक मेकअप करवाया था ब्यूटी पार्लर से। सभी से तारीफ़ों की अपेक्षायें कर रही थी। तारीफ़ों के पुल बाँधे या बँधवाये भी गये। कुछ उसकी सुंदरता में उलझ या फँस से गये। वह बहुतों के चेहरों और करिअर के लिए आइना या मैग्नीफाइंग ग्लास सी बन गई थी। वह मुल्क की नवीनतम शिक्षा नीति जो थी!

उसने सब को शतरंज का गेम याद दिला दिया था। वह शतरंज की बिसात भी थी और आइना भी। पियादे भी हैरान थे; और राजा, रानी और वज़ीर भी! घोड़े अपनी चालों के लिये मुस्तैद थे; हाथी अपनी जगह पर। विशेष बात यह थी कि हर कोई इस शिक्षा नीति में अपना उज्जवल भविष्य देख रहा था; अवसर की संभावनाएं देख रहा था। सबके साथ सबका विश्वास था ही; हर कोई स्वयं को भूलकर राजा बनता देख रहा था शिक्षा नीति के आइने में।

छात्र सोच रहे थे कि अब तो बारहवीं तक की पढ़ाई करते ही विदेश माइग्रेट कर सकेंगे; विदेशी कंपनियों के शानदार पैकेज मिलेंगे ही। हिंदी और क्षेत्रीय भाषाई लोग अंग्रेज़ी वालों पर व्यंगात्मक दृष्टि से देख रहे थे। डिग्री धारी, प्रमाणपत्र धारियों और डिप्लोमाधारियों से आगामी प्रतियोगिताओं पर चिंतन या चिंता कर रहे थे। देसी छोटे और बड़े सभी उद्योगपतियों के यही हाल थे। विदेशी डील वाले उद्योगपति अब अपना युवा प्रतिभा मार्केट फलता-फूलता देख पा रहे थे। कक्षा नौ से ही विद्यार्थी विदेश पलायन की, विदेशी कंपनियों में नौकरी पाने की परिकल्पनाओं में लिप्त थे। नीति-निर्धारकों की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा सभी कर रहे थे; यहाँ तक कि वे भी, जिनको नीति की बहुत सी बातें पल्ले ही नहीं पड़ीं! 

"देश बदल रहा है... अब शिक्षा, रोज़गार, डील्स, व्यवहार और व्यापार भी बदल जायेंगे!" मुल्क का एक वर्ग सोच रहा था।

"देश बिक रहा है... किशोरावस्था और युवावस्था की प्रतिभायें अब आसानी से बिक सकेंगी... सब कुछ विदेशी ताक़तों और दलाल उद्योगपतियों के हाथों में हो जायेगा!" एक दूसरा वर्ग इस सोच से दो-चार हो रहा था।

"हम हैं तो सब मुमकिन है! नया भारत हम ही बना रहे हैं और बनवा रहे हैं!" मुल्क का एक राजनीतिक, प्रशासनिक, कट्टर और औद्योगिक वर्ग गर्वोक्ति हर माध्यम से करता चला जा रहा था। जबकि निचला और पिछड़ा तबका हमेशा की तरह भौंचक्का था या अपनी आँखें मल रहा था अथवा हथेलियाँ मल रहा था।



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