तुम फिर आओगे
तुम फिर आओगे
मधुरिका सुनी पहाड़ियों से गुज़रती हुई टेढ़े मेढ़े रास्तों को निहार रही है शायद वो आज आ जाए। पर शाम के अंधेरों के साथ उसके उम्मीदें धीरे धीरे अंधेरे के आगोश में विलीन हो जाती है। वो चाह कर भी देख नहीं सकती बस दूर दूर तक निराशा की अंधेरा पूरी तरह स्याह होते भयानक खौफनाक नजर आने लगती है जिसके साये में कोई भी आशाओं की कोई वजूद नहीं सब विलीन होता प्रतीत होता है। मधुरिका अपना अपने मन की आशाओं को अपने में समेटे घर की ओर लौट आती है मानों कहीं ये भी विलीन न हो जाये।
आज की कहानी एक ऐसी युवती की जो दुनियां के नजर में शहीद की बीवी मात्र है पर उसके मन की हलचल आज भी उतना ही जीवंत है जो दो वर्ष पूर्व था।
आप सोच रहे होंगे ऐसे तो हज़ारों शहीद होते हैं फिर इसमें क्या खास है कि इसे पढ़कर समय बर्बाद करें वहीँ पुराना घिरा पीटा कहानी जो अपने शब्दों मे लेखक पिरो जाते हैं।
पर मेरा मकसद किसी का समय नष्ट करने का नहीं है। मैं तो उन ह्रदय की व्यथा को लिखना चाहता हूँ जिनके साथ ये गुजरता है, वे देश वासियों के उज्जवल भविष्य के लिए अपने जीवन मे अंधेरे और आँधी को अपने दामन में समेट कर खामोश रह जाते हैं।
कई पाठक का सवाल ये होता है कि ये तो उनका कर्तब्य है पर साहब आप का फर्ज क्या है। क्या आप सब जो उनके आसपास रहते है वे उनकी पूछ परख कर उनके साथ हमदर्दी भी नहीं दिखा सकते ?क्या मानवता के नाते इतना भी हम नहीं कर सकते।
फर्ज वे भी निभा सकते हैं साहब उन पर बिना आंच आए, पर वे ऐसे नहीं करते क्योंकि एक देश का वीर सिपाही होना सब के वश की बात नहीं। इस रास्ते को चुनने के लिए ही कलेजा चाहिए जो आम इंसान में नहीं होता।
आप अब निश्चित ही पढ़ना बंद कर रहे होंगे पर रुकिए कहानी बहुत छोटी है। पढ़ लीजिए आप शायद पढ़ कर कम से कम उनका सम्मान तो करने लगेंगे तो मेरा लिखना सार्थक हो जायेगा।
मधुरिका का शादी हुए आज ठीक दो साल हो रहा है, रस्मो रिवाज के साथ अतुल के साथ व्याह हुआ। अपने फैसले से वो बहुत खुश थी। अब आप सोच रहे होंगे कि अपने फैसले का मतलब क्या है। पर मैं यहां ये बता दूं, अतुल के साथ शादी को उसके माँ बाप राजी नहीं हो रहे थे वे जानते थे कि कई ल़डकियों के मांग सुनी हो जाती हैं कहीं दुर्भाग्य वश मधु के साथ भी ऐसा न हो जाए हाँ घर वाले मधुरिका को प्यार से मधु ही बुलाते थे। मधु दिखने में बहुत ही सुंदर थी, और सुन्दर शरीर के साथ उसके हर आचरण भी सुन्दर थे, बचपन से युवा तक कभी भी कोई शिकायत का मौका किसी को नहीं मिला।
मधु में देश प्रेम की भावना थी जब घर वाले अतुल को रिजेक्ट कर रहे थे तो मधु का देश प्रेम जाग उठा अतुल भी सुन्दर था ,और सिर्फ इस कारण से की वह एक सैनिक है नकारना, उसे अच्छा न लगा, वो घर वालों से बोल पड़ी कि वह अतुल से ही शादी करेगी और घर वालों को उसके आगे झुकना पड़ा।
मधु अपने ख्वाब के राजकुमार को पाकर अपने को गौरवांवित महसूस कर रही थी, अतुल के साथ उसने अपनी हर खुशियाँ को साकार करने की कोशिश की उसे पता ही नहीं चला कि महिने दिन का समय कैसे खत्म हो गया। और अतुल का छुट्टी का मियाद खत्म हो गया ,वह आँखों में आंसू लिए अतुल को जल्दी आने का वादा लेकर विदा किया।
मुश्किल से दो माह बिता होगा कि अचानक खबर आयी कि अतुल आतंकियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गया, पर उसके पार्थिव शरीर नहीं मिल पाया क्योंकि बर्फीली पहाड़ पर ठीक उसी दिन बर्फ फिसलने के कारण कई शहीदों का शव नहीं मिल पाया। कई दिनों तक मधु रोती रही। उसके माता पिता उसे ले जाने आए पर वह उनके साथ ये कह कर नहीं गयी कि अतुल जरूर आयेंगे यदि नहीं भी आए तो शाहिद के माँ बाप की देखरेख में वह समय बीतायेगी,उन्हें छोड़ कर नहीं जाएगी। उसके इस फैसले के पीछे एक भाव और छुपा था कि एक शहीद की पत्नि कमजोर नहीं।
एक महिने बाद उसके पिता फिर आये एवं मधु के सास ससुर से मधु को समझाने के लिए कहा, वे चाहते थे कि मधु का शादी फिर से कर दें ताकि वह फिर से सुखी जीवन जी सके आखिर इतनी लम्बी उम्र वह कैसे अकेले बिताएगी। पर मधु के मन में अतुल जिंदा था वह किसी और से शादी कर उसे अपमान करना नहीं चाहती थी उसके पिता थक हार कर वापस चले गए।
और आज उनके शादी के पूरे दो साल हो रहे थे। हर रोज की तरह मधु शाम को अतुल का राह अपने घर के द्वार में खड़ी हो देख रही थी कभी इसी रास्ते अतुल को जाते हुए देखी थीI
अचानक शाम के धुंधले साये से एक आकृति अपने ओर आते हुए देखी उसे समझते देर न लगा कि वह अतुल ही है ,इतने दिनों तक वो जिसका इन्तजार कर रहीं थीं उसके नजर आने पर आज उसको विस्वास नहीं हो रहा था। अपने नज़रों पर जोर डाल वह देखती रही।
आज हकीकत उसे भ्रम लग रहा था उसके आंखे और मन में जंग चलने लगा जैसे अतुल और दुश्मन के बीच छिड़ा था अंततः वास्तविकता की जीत हुई कुछ पास आने के बाद अतुल सामने मधु को देख दौड़ कर अपने बाहों में भर लिया। दोनों फुट फुट कर रोने लगे।
मधु रोते हुए पूछ रही थी अतुल तुम कहां थे, तुम्हें आना ही पड़ा न, तुम जब भी आते मुझे यहीं पाते तुम्हारे रास्ता देखते हुए।
अतुल ने बताया- आतंकवादियों से लड़ाई के दौरान
पैर में गोली लगने से वह ज़ख्मी हो गया, फिर अचानक बर्फीले चट्टान को गिरते देख दूर भागा ,वहां पाकिस्तान सैनिकों का चौकी था, कई सैनिक पोस्ट पर थे वे तूफानी बर्फ के गिरने के कारण अल्लाह से क्षमा मांग रहे थे कि वह उन पर रहम करे और शायद भगवान मुझे बाचना चाहते थे उन्होंने मुझे देख कर उस वक्त गोली नहीं चलाए, पर उन्होंने मुझे बंदी बना कर अपने साथ ले गए, उनमें से कई अपने अफ़सरों के मंसा से परेशान थे,वे जानते थे कि आतंकवादियो से हमला करवाना अनैतिक एवं गलत है। कुछ दिन मुझे रखकर ईलाज कर मेरे ठीक होने पर कोर्ट मे पेश किया गया । जहां उन भले लोगों ने मेरी सहायता की तथा कोर्ट में बताया- कि मैंने उन पर कोई हमला नही किया यह पास के गांव का रहने वाला एक ग्रामीण है,मुझे भगवान पर विश्वास था पर उसका महिमा मैं प्रत्यक्ष देख था ।
कोर्ट ने मुझे छोडने एवं सलामत सीमा पार करवाने का फैसला सुनाया। तब मुझे लगा कि सीमा पार भी कुछ लोग है जो मानव धर्म के समर्थक हैं ।
मुझे अपने देश के आर्मी को सौंप कर वे अपने कोर्ट के आदेश का पालन किया। तब अपने अफसरों के आवश्यक जांच-पड़ताल के बाद मुझे घर आने का मौका मिला ।
"मधु मैं कभी वापस आऊंगा ये मुझे विश्वास नहीं था पर तुम्हारे प्यार ने मुझे वापस बुला लिया " अतुल ने मधु के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
मधु के आँखों में खुशी छलक कर आंसू के रुप मे बहने लगे।
मधु अतुल को देखते हुए बोली -- मुझे उपर वाले पर भरोसा है अतुल और मुझे विश्वास था कि तुम आओगे।
और दोनों ने अपने घर की ओर कदम बढ़ा दिए ,I
आज वर्षों की तपस्या का सुखद फल से अंत और देश भक्ति का जीत हुआ। जिसे आप ने कहानी के रूप में पढ़ा।
जय जवानI वन्दे मातरम I
