Anita Koiri

Tragedy

4.2  

Anita Koiri

Tragedy

तुम मूर्ख हो

तुम मूर्ख हो

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मनुष्य के जीवन की हर एक कल्पना वास्तविक होती हैं, कल्पना अगर वास्तविक न हो तो वह कहानी का रूप कैसे लेंगी।ये कहानी है मेरे विद्यालय के प्रधानाध्यापिका की जो मुझसे दोगुने उम्र कि हैं (मैं २३वर्ष की हूं)। हम दोनों तीन वर्ष से साथ कार्यरत हैं। उनके जीवन की वास्तविकता आज के समाज की प्रत्येक महिला की कहानी हैं।

मिसेज गिरिजा की उम्र कुछ १८ वर्ष के लग्भग रही होगी,उसने मैट्रिक की परीक्षा दी थी,जब उनका विवाह २५वर्षीय एक सरकारी कर्मचारी शंकर के साथ कर दी जाती है। गिरिजा के पिता ने एक समर्थवान लड़के के साथ बिटिया का विवाह कर दिया।गिरिजा आगे पढ़ना चाहती थी अतः पति की सहमति से कालेज में दाखिला तो ले लिया, लेकिन गर्भवती होने के कारण पढ़ाई कुछ ही महीनों में खत्म करनी पड़ गई।

मातृत्व कि जिम्मेदारी परमात्मा द्वारा सिर्फ स्त्रियों को ही दी गई हैं,यह आशीष सबको नहीं मिलती, लेकिन यह आशीर्वाद एक ऐसी अदृश्य जंजीर हैं जो कई सपनों का गला घोंट देती हैं। देखते-देखते कई वर्ष बीत गए, गिरिजा का जीवन अपने पति और दो बेटों के साथ बीत रहा था।

अब गिरिजा ३५वर्ष कि हो चुकी थी और जीवन जी रही थी, अपने पति को अपने सास ससुर की सेवा करते देख खुश होती परन्तु अपने माता-पिता को भी याद करती थी।इन सबके बीच खुद को हमेशा पराधीन समझती।

जीवन का यह पड़ाव सरकारी नौकरी लेकर आएगा ये तो उसने कभी नहीं सोचा था, न ही नौकरी करने की कोई इच्छा थी, परन्तु पति की सहमति और परिवार के दबाव में नौकरी ज्वाइन कर लिया।अचानक जीवन हाऊस वाइफ से वर्किंग वुमन वाला बनना कितना आसान होता होगा यह समझ ही सकते हैं!!

समाज के नजरों में यह एक ऐसा परिवर्तन था जिसे समाज इतनी सहजता से न तो स्वीकार करता है और न ही सराह पाता है।गिरिजा का सुबह सूर्योदय से पूर्व शुरू हो जाता और दिन उतना ही लंबा होता जितनी देर तक घर परिवार की सारी जिम्मेदारी खत्म न हो।सबके लिए करते-करते गिरिजा के पास अपने लिए समय नहीं बचता।ये नौकरी,इतना बड़ा घर,पति और दो बेटों का साथ कुछ भी गिरिजा को शांति प्रदान नहीं करते, ये सब सिर्फ उसकी जिम्मेदारी हैं आज और कुछ नहीं। मन कभी-कभी अशांत होता तो भाग जाना चाहती, परंतु जाए भी तो कहां?गिरिजा की शादी मैट्रिक के बाद हो गई थी लेकिन पढ़ने कि इच्छा फिर हुई तो आगे की पढ़ाई फिर शुरू कर दिया।आज गिरिजा और शंकर की शादी की सालगिरह हैं, दोनों खुश हैं, गिरिजा ने अपनी कमाई से शंकर के लिए गिफ्ट खरीदी हैं।शाम हो गई और बच्चों ने केक भी कटवाया। चारों ओर लोगों की चहल-पहल थी और दोनों थोड़ा एकांत चाहते थे।

गिरिजा के मन में कई दिनों से एक बात थी,वो ये बात अपने पति से कहने के लिए सही समय चाहती थी।आज का मौका उसे अपने दिल की बात करने के लिए बिल्कुल सही लग रहा है।

गिरिजा ने अपने पति से प्रेम से पूछा कि,"मेरे मन की एक इच्छा है,आपसे कुछ पूछना है", शंकर ने सुनने का आग्रह किया। गिरिजा ने कहा,"आपकी सैलरी से हमारा घर तो अच्छे से चल जाता हैं और अब मैं भी कुछ कमाती ही हूं...मेरे माता-पिता भी बूढ़े हो चुके हैं,मैं चाहती हूं कि मेरे सैलरी का एक हिस्सा मैं अपने माता-पिता को हर महीने दूं, मेरी बहुत इच्छा थी परन्तु मैं स्वनिर्भर नहीं थी इसलिए मैं कुछ कह नहीं पाई।"

यह सुनकर गिरिजा के पति ने उत्तर दिया कि,"तुम मुर्ख हो क्या? तुम ऐसा क्यो करोगी तुम्हें अपने बूढ़ापे कि चिंता करनी चाहिए...और हर महीने कुछ देने की कोई जरूरत नहीं, तुम चाहो तो कभी- कभी कुछ गिफ्ट दे सकती हो।"

आज गिरिजा का वो सुसुप्त स्वप्न बिल्कुल चकनाचूर हो गया। आज गिरिजा स्वनिर्भर तो है लेकिन अपने पति के द्वारा दी गई स्वाधीनता पर।आज गिरिजा सोच रही है कि शायद उसके पति ने ठीक ही कहा, कि "तुम मूर्ख हो!"... ईश्वर ने सभी स्त्रियों को मुर्ख इसलिए बनाया ताकि वो सदैव पराधीन और सुखी रहें...!

       



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