Aaradhya Ark

Fantasy Inspirational

3  

Aaradhya Ark

Fantasy Inspirational

तुम मेरी बहू नहीं बेटी हो

तुम मेरी बहू नहीं बेटी हो

8 mins
277


"भाभी! क्या ही अच्छा होता अगर इस रॉयल लंच के साथ कुछ देशी प्याज़ के पकौड़े मिल जाते!"

चिराग लंच पर अपना मनपसंद खाना देखकर चहकते हुए बोला।

वैसे और कोई दिन होता तो पकौड़े के नाम से आशी बहुत खुश हो जाती पर...

आज आशी ने सोच रखा था कि आज टी. वी. में अपनी पसंद की मूवी ज़रूर देखेगी। यही सोचकर आज वह सबको दोपहर का खाना जल्दी सर्व कर रही थी कि, देवर ने प्याज़ के पकौड़ों की फरमाइश कर दी। उसे दाल चावल के साथ पकौड़े खाने की आदत थी। सास और ससुर दोनों मधुमेह के मरीज़ थे इसलिए घर में चावल कभी कभी ही बनता था। इन दिनों चूंकि चिराग कुरुक्षेत्र से आया हुआ था और आज इतवार भी था अतः खाना उसी की पसंद का बना था।


अब आशी की पसंद की फ़िल्म शुरू होने ही वाली थी कि, चिराग ने पकौड़ों की माँग करके आशी को किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में डाल दिया था। वैसे आशी को पकौड़े बहुत पसंद थे पर यहाँ ससुराल में सब बिल्कुल सादा खाना खाते थे और पकौड़े तो यहाँ कभी रिमझिम बरसात की शाम को ही खाए जाते, कभी सर्दियों में या कभी मेहमान के आने पर ही बनते थे सुनहरे करारे पकौड़े। पहले पहल जब आशी अपने मन से पकौड़े बना लाती तो सास ससुर यह कहकर टाल देते कि...


"पकौड़ों का मज़ा तो बारिश में है। भला गर्मियों में कौन खाता है तेल से बने पकौड़े!"

बस आशी का सारा उत्साह ठंढा पड़ जाता था। फिर धीरे धीरे आशी ने भी बंद कर दिया था। अब अकेले अकेले क्या बनाना... और क्या ही खाना।

उस दिन भी चिराग के माँगने पर आशी ने सास के डर से कह दिया कि,

"अभी लंच का समय है। शाम को बना दूँगी पकौड़े!"


उसकी बात सुनकर देवर तो चुप ही रहा और पति ने भी ससुर के साथ हामी भर दी। पर सासुमाँ आशी की बात को सर्वोपरि कैसे रहने देतीं? इसलिए आशी को आँखें तरेरकर आदेश दिया कि,

"ज़ब छोटू कह रहा है तो बना दो ना पकौड़े। यह बचपन से अक्सर चावल दाल के साथ प्याज़, आलू और बैगन के पकौड़े खाता रहा है। जाओ बहू थोड़े से पकौड़े तल लाओ!"

आशी चौंक गई बेटे और बहू में ये फर्क? चूंकि उसका देवर कभी कभी आता है और इस घर का बेटा है इसलिए उसके लिए सारे नियम ताक पर रखकर पकौड़े तलने को कहा जा रहा है और आशी चूंकि इस घर की बहू है तो उसकी इच्छा का कोई मोल नहीं?

अब तक आशी समझ चुकी थी कि उसके फ़िल्म देखने के कार्यक्रम का भी सत्यानाश हो चुका है।


इधर रसोई में पकौड़े के साथ आशी के फ़िल्म देखने के अरमान भी जल रहे थे। और फिल्म बीती जा रही थी। अब पता नहीं यह फ़िल्म 'बदलते रिश्ते' कब देख पाएगी? इतनी पुरानी फ़िल्म थिएटर में लगने से तो रही। आशी को टी. वी. में दो ही चीज तो देखना पसंद था... पुरानी क्लासिक फ़िल्में और रोमांटिक कहानी वाले सीरीज़। कबसे कह रही है अपने पति दीपक से कि एक स्मार्ट टी. वी. लगा दो। पर पता नहीं इस बाबा आदम के ज़माने के इस टी. वी. से जुड़े कैसे इमोशन को सीने से लगाए बैठा है। जब भी नई टी. वी. लाने कहो तो उसका एक ही घिसा पिटा जवाब आता कि,

"यह टी. वी. मैंने अपनी पहली कमाई से ख़रीदा था। जब तक चलता है चलने दो। और तुम अपने वेब सीरीज़ वगैरह फ़ोन पर ही देख लिया करो। घर में बड़े बुज़ुर्गों के सामने तुम 'फोर मोर शॉट्स प्लीज' थोड़े ना देख पाओगी!"

पति का इतना लम्बा चौड़ा भाषण सुनकर आशी चुप हो जाती। और बात आई गई हो जाती। आशी के हिस्से में सिर्फ अफ़सोस आता।


खैर... उस दिन पकौड़े बने तो पर आशी के खाने तक पकौड़े एकदम ठंढे हो चुके थे और मूवी भी आधी आधी तक पहुँच रही थी।

खैर... उस दिन आशी इतना तो ज़रूर समझ गई थी कि इस घर में बेटे और बहू में बहुत भेदभाव किया जाता है। आशी को थोड़ा दुख तो हुआ पर रात को दीपक के बांहों के घेरे में सब भूल गई। पति का प्यार सास की झिड़कियों से मिले दर्द पर मलहम का काम करती हैं। एक बात तो बहुत अच्छी थी कि उसका पति दीपक उसे बहुत प्यार करता था।


सब कुछ ठीक ठाक ही चलता रहता अगर उस दिन किटीपार्टी वाला वो फनी वीडियो किसी ने सासुमाँ के व्हाट्सएप पर फॉरवर्ड ना कर दिया होता।


हुआ ये कि आशी सोसाइटी की कुछ महिलाओं द्वारा चलाई जा रही एक किटी की मेंबर थी। उस दिन हँसी मज़ाक में सभी एक दूसरे की सास की एक दो ऐसी आदतों के बारे में ज़िक्र कर रहे थे जो उन्हें मतलब उनकी बहुओं को पसंद नहीं थी। जब आशी का नंबर आया तो उसने एकदम मुखर होकर कह दिया कि,

"उसके घर में वह टी. वी. पर मनपसंद कार्यक्रम नहीं देख सकती और बिना बरसात के पकौड़े बनाना और खाना अक्सर नहीं होता!"


अगले सवाल में जब महिलाओं की कमेटी की एक बिंदास सदस्या रोहिणी ने आशी से पूछ लिया था कि...

"आपको अपनी ससुराल में क्या चीज सबसे ज़्यादा नापसंद है, और कौन इसे बदलने से रोकता है तो आशी ने तपाक से अपनी सास का नाम ले लिया था। उसका वीडियो भी बना था। आज किसी ने सोसाइटी के महिला ग्रुप में उस वीडियो को फॉरवर्ड कर दिया था। अम्माजी भी उस ग्रुप में ऐड थी। जैसे ही उन्होंने वीडियो देखा वह काफ़ी नाराज़ भी हुई थी। अब रूठी सास को कैसे मनाए आशी?


वैसे तो उस वीडियो को आशी अपने आज तक के अच्छे वीडियो में से एक मानती है क्योंकि उसमें उसने पहली बार अपने मन का सच बोला था, और अपने खिलाफ हो रहे बेइंसाफी के लिए आवाज़ उठाई थी। उसने तो एकदम साफ साफ कह दिया था कि,"खामखा मेरे ससुराल वाले स्पेशली मेरी सासु मां मुझ अकेले को जब तब पकौड़े खाने नहीं देती। बस बरसात की शाम या जब कभी देवर आता है तभी असमय पकौड़े खाने को मिलते वरना नहीं। मेरा कितना जी ललचता है, पर जब भी खाने की इच्छा जतलाओ तो सासु माँ कहती हैं कि,

"बारिश का इंतजार करो क्योंकि बारिश में पकौड़ों का मज़ा दोगुना हो जाता है!"

आशी ने अपनी आवाज़ में थोड़ा रोष लाते हुए यह भी कह डाला था कि,

"अपनी मर्ज़ी का खा भी ना सको ना कोई प्रोग्राम देख सको, लो, यह भी कोई बात हुई?"


वैसे तो आशी का कहना सही थी और वाजिब भी। पर सासु मां को तो नाराज़ होना था और वह हुईं भी।


बहरहाल...

बहुधा ऐसी बातों का खुलासा होने पर टी.वी. और फिल्मों वाली सास अपनी गलती मानकर बहू को गले से लगाकर माफ़ी माँगती है। पर...आशी की सास तो असली वाली सास थी। गले लगाना तो दूर उन्होंने तो आशी से कोई बात ही नहीं की थी।


भला कौन सी सास अपनी बुराई सुनकर खुश होगी? अब आशी के सामने बड़ा सवाल यह था कि रूठी सास को मनाए कैसे?

सासु मां से जब तीन दिनों तक अबोला रहा तो फिर आशी से यह चुप्पी असहनीय सी लगने लगी। चौथे दिन जब सासु माँ की बेरुखी मुझसे सही नहीं गई तो आशी ने उन्हें एक प्यारा सा मैसेज किया।


"मुझे माफ कर दीजिए माँ, बहू समझकर नहीं बेटी समझकर !"

बस फिर क्या था...सास पिघल गईं। उन्होंने आशी के मैसेज का तो कोई जवाब नहीं दिया पर सीधे रसोई में आईं और उसे मुस्कुराकर देखते हुए बोलीं,


"अगर बेटी बनना चाहती थी तो अपनी इच्छा मुझे ना बताकर अपनी किटी की सहेलियों को क्यों बताया? ये तो टिपिकल बहू वाली हरकत हुई ना?"

सुनकर आशी को तो एकबारगी यकीन ही नहीं आया कि यह वही खड़ूस सास बोल रही है जो हमेशा अपनी बहू पर अपना दबदबा बनाए रखना चाहती है।

मुझे लगा अब हम दोनों का रिश्ता काफ़ी हद तक सामान्य हो जायेगा।

मैं भावातिरेक में उनके गले लग गई।


उस दिन आशी शाम की चाय बनाने ज्यों ही रसोई में गई तो सासु मां को पहले ही वहाँ देखकर उतना आश्चर्य नहीं हुआ जितना कि उनके हाथों में बेसन लगा हुआ और कड़ाही के तेल में पकौड़े को सुनहरे रंग का होता हुआ देखकर हुआ। आशी एकदम से पूछ बैठी,

"माँ, इस वक़्त पकौड़े? इतनी गर्मी में। अभी तो बरसात का कोई अंदेशा भी नहीं?"

"क्या करूँ, बहू की इच्छा होती तो टाल जाती या डांट देती पर वो क्या है ना... मेरी बेटी को पकौड़े बहुत पसंद हैं और वह भी पालक के, मेथी के, गोभी के तो उसके लिए बरसात का इंतजार थोड़े ना करूँगी!"

सासु माँ ने बड़ी अदा से हाथ नचाकर कहा तो आशी को भी हँसी आ गई।


आज ज़ब अम्माजी ने आशी को पकौड़े बनाकर खिलाए तो कसम से आशी को अपनी माँ के हाथों से बने पकौड़े की याद आ गई। उसके मायके में भी तो माँ ऐसे ही प्यार से मान जाती थी फिर दोनों माँ बेटी मज़े करते थे।मज़ा तो तब और आया ज़ब आशी धनिए, पुदीने की चटनी भी पीस लाई और सासु माँ के चेहरे की चेहरे की मुस्कान भी खिल उठी तीखी चटनी और चाय की मिठास के साथ करारे पकौड़े जैसे सास और बहू के मुँह में घुले जा रहे थे और साथ ही घुलमिल रहा था सास बहू बनाम माँ बेटी का रिश्ता भी।


उसके बाद ना ही आशी ने उनका दिल नहीं दिखाया और ना ही सॉरी बोलने की ज़रूरत पड़ी। वैसे भी अब आशी उनकी बहू थोड़े ना थी और माँएं कब देर तक बेटियों से नाराज़ रह पाती हैं?

उस बिन बरसात के पकौड़े वाली शाम को बरसात तो हुई थी पर आशी की सासु मां के प्यार और आशीर्वाद की।

एक दिन आशी ने अपनी सास /माँ के गले लगकर स्मार्ट टी. वी. पर पुरानी क्लासिक फ़िल्में, नए नए प्रोग्राम और वेब सीरीज देखने की इच्छा जताई तो दीवाली पर वह भी आ गई। और पुराना टी. वी. पहुँच गया चिराग के कमरे में जहाँ बाप बेटे मैच देखते या एक ही न्यूज़ को अलग अलग चैनल पर देखकर सच झूठ का पता लगाते हुए व्यस्त रहते।


इधर सास बहु...ना... ना... माँ बेटी नए स्मार्ट टी. वी. पर अपने मनपसंद कार्यक्रम देखती वो भी बिन बरसात के पकौड़ों के साथ।

क्योंकि अब...

अब आशी और उसकी सासू माँ के बीच दोस्ती जो हो गई है, पकौड़ेवाली........ ना... ना... पक्कीवाली।


(समाप्त )


प्रिय दोस्तों कैसी लगी आपको मेरी यह कहानी?







Rate this content
Log in

Similar hindi story from Fantasy