तुम आज भी हो यहीं कहीं
तुम आज भी हो यहीं कहीं
"ये पायल तो नेहा की है, जैसे जान बसती थी उसकी इसमें"
"हाँ माँ, पता है कितना नाटक किया था उन्होंने इस पायल के लिए, पर हार गई थी आप और आपको दिलाना ही पड़ा था"
और माँ की आँखों से आँसू टप टप बह रहे थे।
"तृप्ति, ये संभाल के रख दे, इसकी एक जोड़ी मेरी अलमारी में है।"
"चलो बहुत देर हो गयी, खाना भी बनाना है, वरना रौशनी गुस्सा करेगी। "
"हाँ माँ, वैसे है कहाँ वो?"
"पास में आंटी के यहाँ खेल रही है। "
"ठीक है"
रसोई में जाकर शोभा जी खाने की तैयारियों में लग गयी, पर दिल जाने क्यों आज नेहा को याद कर रहा था।
"ये क्या माँ! आज दी के पसंद का बेसन का हलवा बनाई हो?"
"हाँ रौशनी को भी पसंद है तो सोचा बना लेती हूँ और तू भी तो चाट चाट के खाती है!"
"हाँ खाती तो हूँ, पर इतना पसंद नहीं मुझे। तभी रौशनी की आवाज़ आई, माँ, माँ, कहाँ हो आप? मुझे भूख लगी है, जल्दी कुछ दो खाने को। "
"हाँ, मुझे पता था तुम आकर ऐसे ही चिल्लाओगी, इसलिए आज मैंने तुम्हारी पसंद का बेसन का हलवा बनाया है। "
"अरे वाह! मज़ा आ गया" शाम को अलमारी में कपड़े रखते वक़्त आचनक पायल की दूसरी जोड़ी पर निगाह गयी।
अब ये जोड़ी पूरी हो चुकी थी।
तभी रौशनी वहाँ आ गयी, माँ मुझे ये पायल दो ना, ये किसकी पयाल है? बहुत सुंदर है। मैं पहनू क्या? और शोभा जी रौशनी के गले लग कर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी।
"क्या हुआ माँ? क्यों रो रही हो?
"ये पायल तुम्हारी माँ की है बेटा"
"मेरी माँ! पर मेरी माँ तो तुम हो ना?"
"हाँ मैं भी तुम्हारी माँ हूँ, तुम्हारी माँ की भी मैं ही माँ
रौशनी, शायद ये बातें समझने के लिए बहुत छोटी थी, इसीलिए बस पायल ली और भाग गई।
कब से फोन बज रहा है, कोई उठाता क्यों नहीं, अरे तृप्ति फोन उठा, माँ आप उठा लो।
"हेलो? कौन? माँ मैं साहिल बोल रहा हूँ। "
"अरे दामाद जी आप, कहिये कैसे हैं? माँ जल्दी हॉस्पिटल आ जाइये, नेहा की डिलीवरी होने वाली है। "
"अरे ये तो खुशख़बरी है, मैं आती हूँ।" तभी सब लोग हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गए।
वहाँ नेहा की सास को शोभा जी फूटी आँख भी नहीं सुहा रही थी, साहिल जानता था माँ नेहा को पसंद नहीं करती, पर साहिल की जान थी नेहा।
"डॉ साहब, नेहा कैसी है?"
"सॉरी, हम पूरी कोशिश करेंगे, कोई एक ही बच पायेगा।"
"मुझे नेहा चाहिए और कोई नहीं।"
"अरे पोता हुआ तो मर जाने देगा उसे!"
"तो आप क्या चाहती हो माँ? अगर पोती हो गयी तो मरने में कोई परेशानी नहीं आपको? समझ नहीं आता आज भी किन ढकोसलों में जीती हो आप!"
"हम कोशिश करेंगे कि नेहा को कुछ ना हो। आप बस भगवान से प्रार्थना कीजिये।"
ये सुन शोभा जी की हलक ही सूख गई, ये कैसी खुशख़बरी है भगवान, क्यों ? क्या बिगाड़ा मेरी बेटी ने तेरा? उसके साथ ही ऐसा क्यों?
लगभग 1 घण्टे बाद डॉ ने बाहर आकर बताया, बेटी हुई है
"और नेहा?"
"सॉरी उन्हें हम नहीं बचा पाए।
पर हमने तो कहा था मेरी नेहा को बचाओ फिर क्यों! हमने नेहा को ही बचाने की कोशिश की थी, पर भगवान के आगे विज्ञान भी फेल है, शायद उनकी यही मर्ज़ी थी। वो वक़्त भी मुझे याद आया जब साहिल ने मेरे हाथों में रौशनी को थमाया था, माँ आज से आप इसकी माँ भी हो, मुझे पता है मैं नेहा की जगह कभी नहीं ले सकता पर, आप नेहा की जगह ले सकती हो। मेरे घर में मेरी और नेहा की निशानी को वो प्यार कभी नहीं मिल पायेगा जिसकी वो हक़दार है, ये आपकी बेटी है आज से। नेहा के बारे में इसे कभी मत बताना, मैं आता रहूँगा इससे मिलने, जहाँ ये महफूज रहेगी, तब से लेकर आज तक रौशनी मुझे ही अपनी माँ मानती है। माँ क्या हुआ, कहाँ गुम हो गयी, क्यों रो रही हो आज इतना? क्या करूँ तृप्ति, नेहा तो चली गयी, पर उसकी यादें आज भी हर जगह बिखरी हैं। तुम हो आज भी यहीं कहीं।