ठन ठन के लड्डू
ठन ठन के लड्डू
हो रहा है जो जहाँ सो हो रहा है।
यदि वह हमने कहा तो क्या कहा।
किंतु होना चाहिए कब क्या कहाँ।
व्यक्त करती है कला ही ये य ह। गुप्ता जी साकेत।
इन पंक्तियों को ठन ठन पढ़ रहा था।
पढ़ते हुए ठन ठन को एक संदेश मिलने का आभार हुआ।
वह भी कुछ ऐसा कार्य कर सकता है जिसमें कला निहित हो।
ठन ठन के पिता कुछ ही समय पहले दरभंगा से आए और अब से परिवार मथुरा में रहने लगे।
वहां दरभंगा में ठन ठन के पिता मखाने की खेती करते थे अनेक बार ठन ठन ने पिता को कहते हुए सुना था कि मखाने में लाभदायक पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में रहते। ठन ठन मखाने के लड्डू बनाने का विचार करने लगा।ठन ठन की माता प्रसाद के लड्डू बनाती थी अब ठन ठन अपने मखाने न के लड्डू बनाकर मां के लड्डू के साथ रखने लगा। ठन ठन लड्डू के बनाने में अपनी मानसिक, भावनात्मक, शारीरिक, शक्ति पूरी तरह से प्रयोग करता।परिणाम स्वरूप लड्डू।अति उत्तम बनकर तैयार होने लगे। ठन ठन की सफलता के साथ साथ अपनी साधना सत्संग सेवा मोन में आनंद की अपूर्व अनुभूति प्राप्त करता। मंदिर में वर्ष में दो बार उत्सव मनाया जाता था। होली पर विशेष उत्सव का आयोजन होता।होली के उत्सव में भक्तजन, जापान, थाईलैंड।रंगो के अवसर पर 56 प्रकार की मखाने के लड्डू बनाए देखने में सभी लड्डू लोहावट और स्वादिष्ट थे। लड्डुओं का व्रत उपवास और पूजा के कार्य में होता था।इस बार होली के अवसर पर श्री कृष्ण को चढ़ाने और लगाने के लिए छन छन ने 10 से 20 मिनट में लड्डू तैयार करें सभी सुगंध आनंद और प्रेम से भरे हुए थे। भक्त लोगों ने होली का उत्सव आनंद प्रेम से इन लड्डुओं के साथ मनाया।
धीरे-धीरे मखाने के लड्डू की मांग बढ़ने लगी अपने कार्यक्रम में लोक मखाने के लड्डू अवश्य रखना चाहते अपने कार्यक्रम आनंद और प्रेम से भरकर " सब कुछ तू ही है " की भावना से प्रेम रस सहित लड्डू तैयार करता |आज फिर वहीं पंक्ति ठन ठन को याद आ गई " हो रहा है जो जहां हो रहा " साथ ही अनसूया की मधुर मुस्कान अधरो पर आ गई | होली के रंग में प्रेम रस का मिलन होने से ठन ठन को एक संतुष्टि का आभास हो रहा | होली के बधाई के साथ - साथ वह सब लोगों को लड्डू दे रहा था | आज जीवन का सौंदर्य सही अर्थों में उसको प्राप्त हो गया।