जब मैंने जाना
जब मैंने जाना
इस बार जब हम सब का गंगा स्नान के लिये प्रोग्राम बना मेरा मन उत्साह उमंग से भर गया इस बार सावन मास में जाना हो रहा था इस स्थान पर देवादिदेव शिव जी ने अपने में विष को धारण करने के बाद, विष की गर्मी को शान्त करने लिये हरिद्वार में. , स्नान किया था, स्नान के बाद उस स्थान की गंगा की धारा नीली पड़ गई, उस धारा को नीलगंगा कहने लगे, हम लोग गंगा जल भी अपने घर में लेकर आते है। इस जल का प्रयोग पूजा के कार्य तथा अन्य कार्य में करते हैं।
इस इन सब भावनाओं के साथ हमसब हरिद्वार पहुँच गये। मौसम सुहावना हो रहा था कभी कभी हल्की बूंदे पड़ने लगती थी, शीघ्र ही गंगा स्नान का प्रोग्राम बन गया जब हम लोग स्नान कर रहे थे, वहाँ कुछ ही दूरी पर दूसरा परिवार भी स्नान कर रहा था । हमारा ध्यान उन हम ऊमर के बच्चों पर गया, वे आपस में हँसी मज़ाक करते करते आपस में उलझने लगे थे, ऑटी उन बच्चों को शांत रखने का प्रयत्न कर बच्चों को बता रही थी गंगा की धारा में स्नान करते समय सावधानी रखो। ऑटी ने ज़ोर से, बोल कर कहा- "शांति से स्नान करो नहीं तो चटनी बना दूंगी।" यह सुनते ही हमारे मुँह से अनायास निकला "अरे, बहुत अच्छा हम खा लेगें।" चाचा जी की रौबदार आवाज़ ने हमें चुप करा दिया तथा ऑटी से माफी मांगी | चाचा जी ने हमें सावधान करते हुए कहा हमारी वाणी में शक्ति होती है। कड़वा बोलने वाले का शहद भी नहीं बिकता और मीठा बोलने वाले की मिर्ची भी बिक जाती है। चाचाजी ने बतलाया इस संसार में दूध तथा दोनों का ही मिश्रण रहता है। हमें विवेक पूर्वक दूध लेकर पानी को छोड़ देना है।
हम सब स्नान के बाद वही गंगा तट पर बैठ कर शीतल जल का आनन्द लेने लगे। हमारे चाचा जी के पास घटनाओं तथा कहानियों का खजाना रहता है। हम लोग चाचा जी से घटना सुनाने के लिये कहने लगे। चाचा जी हमें एक घटना सुनाई मेरा छोटा भाई आया हुआ था, वह वातावरण को हँस मुख बनाये रखता वह जिधर से गुजरता मीठी हल चल मचा देता. एक दिन चाय पर मेरा मित्र रवि का आना हुआ, नाश्ते में कलाकंद भी था, रवि से इधर उधर की बातें होने लगी रवि ने बतलाया कि उसे कलाकंद बहुत पसन्द है उसका दिन पूरा ही नहीं होता जब तक कलाकंद नहीं ले लेता। मेरे छोटे भाई को तो अवसर मिल गया मित्र से बोला - मै आप को कलाकंद लाकर खिलाता हूँ, पकवान गली से वहाँ पर मावा और पनीर का कलाकंद खास तरीके से बनता है रवि को वह कलाकन्द पसन्द आया मेरा भाई चुल बुला तो है ही वह नाश्ते के समय तो कभी खाने के समय मित्र से पूछता कलाकंद ले आने के लिये कभी कलाकंद लाकर, उस से गुण बताने लगा और कहता खास आप के लिये लाया हूं जब रवि जाने लगा तो मेरे छोटे भाई से बोला कि तुमने तो कलाकंद से मेरा मन ही तृप्त कर दिया इसकी मिठास और तुम्हारी मुस्कान हमें याद आती रहेगी ।
चाचा जो कहने लगे जब साथ साथ रहते हैं बड़ों का संपर्क पाते हैं तो मार्ग में सुंदरता और सरलता आ जाती है और जीवन में मुस्कान खिल जाती है। यह भावना ही हमे अपनो का एहसास कराती है । चाचा जी कहने लगे दूसरा क्या करता है कैसे करता है, क्या दे रहा है क्या छीन रहा है तुम्हे इन सबसे ऊपर उठ कर अपने भीतर रहने वाली सुगन्ध को पहचानना है और उसका हिस्सा बनने की कोशिश करनी है, फिर देखना जो तुम चाहते हो वह सब तुम्हें मिलेगा फिर जीवन की राहे कुछ अलग हो जाती है |कुछ देर बाद वापस आने का प्रोग्राम बना, हम महसूस कर रहे थे हरिद्वार का जल माटी, हवा, खूशबू सब ही के लिये पुण्यकारी हैं। ये सब अपने सूक्ष्म रूप से और सूत्र रूप में विराट उपासना और अर्पण है। वे सब कुछ अपने श्रेष्ठ रूप में जन-जन तक पहुंचाती है। यहाँ आकर सर्वे भवन्तु सुखिन: का भावन साकार रुप ले लेती है |