Alfiya Agarwala

Romance

4.5  

Alfiya Agarwala

Romance

तसव्वुर।

तसव्वुर।

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लिख दूँ मैं या लिख ना पाऊं कह दूँ मैं या बोल न पाऊं

सब रंगों को कैनवस पर बिखेर दूँ या फिर मैं चित्र बना पाऊँ।


फूलों की खुशबू अपने अंदर समेट लूँ और

फिर मैं हवाओं में उड़ जाऊँ और उड़ती जाऊँ कभी।


मुझे समेट लो अपने अंदर कहीं इंद्रधनुष के रंगों

मैं मदमस्त होकर तुम में गुम हो जाऊँ कहीं।


फिर मैं तितली बनकर बिखेर दूँ अपना रंग इधर उधर

खुशनुमा हो जाये फिर मौसम मुझे देखकर ।


रंग भर दूं मैं फिर उन बेरंग कोनों में

जहाँ रंग नजर न आये कभी।


रातों की बुझती रोशनी के फिर से मैं बन जाऊँ चिराग।

उन बुझते दीयों में फिर से रोशनी नजर आये कभी।


उतार दूँ उन सिया रातों का काला रंग।

सितारों की रोशनी की तरह जगमगाउँगा कभी।


पत्थर सी हो गयी है जिनकी आँखें इंतजार करके अपनों का।

काश उनके दिल का चैन और आँखों का सुकून बन जाऊँ कभी।


ख्वाब देखें हैं जिन आँखों ने कभी उम्मीदें लेकर

उन हसीन ख्वाबों को काश सच कर जाऊ कभी

उन हसीन ख्वाबों के "पर" बन जाऊं कभी,

उड़ जाऊं कभी उड़ जाऊं बस उड़ जाऊं कभी।


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